35.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

स्वास्थ्य हो प्राथमिकता

यह जगजाहिर है कि देश में नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य भारी उपेक्षा का शिकार है. पिछले दिनों अनेक राज्यों से बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं और बच्चों के अकाल मौत मरने की खबरें आयीं. बीमारी का समय पर समुचित उपचार सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक पक्ष है. इस मोर्चे की हर कमी पर हमारा ध्यान तुरंत […]

यह जगजाहिर है कि देश में नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य भारी उपेक्षा का शिकार है. पिछले दिनों अनेक राज्यों से बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं और बच्चों के अकाल मौत मरने की खबरें आयीं. बीमारी का समय पर समुचित उपचार सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक पक्ष है.

इस मोर्चे की हर कमी पर हमारा ध्यान तुरंत जाता है और जाना भी चाहिए, परंतु क्या हम उसी संवेदनशीलता के साथ इस सवाल पर भी सोचते हैं कि व्यक्ति को बीमार बनानेवाले हालात देश में किस मजबूती से कायम हैं और देश की प्रगति के लिए जरूरी मानव संसाधन के विकास में ये कितनी बड़ी बाधा हैं? अपने तेज प्रसार और त्वरित उपचार के अभाव में मौत के मुंह में ढकेलने वाली डेंगू या इंसेफ्लाइटिस जैसी कुछ बीमारियों की तरफ हमारा ध्यान बड़ी तेजी से जाता है.

कैंसर जैसी कुछ बीमारियां उपचार के लिहाज से बहुत महंगी और एक खास वक्त के बाद तकरीबन लाइलाज साबित होती हैं. ऐसी घातक बीमारियों को लेकर भी हम जितनी संवेदनशीलता दिखाते हैं, उससे कई गुणा ज्यादा जागरुक हमें इस तथ्य को लेकर होने की जरूरत है कि देश की एक बड़ी आबादी पर्याप्त पोषक आहार न मिलने के कारण बीमार पड़ती और दम तोड़ती है.

बीमारियों से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले बोझ के आकलन पर केंद्रित ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ नामक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक दशक में कैंसर से ग्रस्त लोगों की संख्या भारत में 46 फीसदी बढ़ी है और बेशक यह बढ़वार चिंताजनक है, पर कैंसर से अब भी भारत की 0.15 प्रतिशत आबादी प्रभावित है और बीमारियों से होनेवाली कुल मौतों से कैंसर से होनेवाली मौतों की तादाद देश में केवल आठ प्रतिशत है.

रिपोर्ट का कहना है कि भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर सबसे ज्यादा बोझ उन बीमारियों का है, जो पर्याप्त पोषक आहार न मिलने से पैदा होती हैं. देश की 46 फीसदी आबादी आयरन, विटामिन या प्रोटीन समुचित मात्रा में न मिलने के कारण घातक बीमारियों की चपेट में आती है. देश की 39 फीसदी आबादी तपेदिक (टीबी) जैसी बीमारी के असर में है, जबकि इसके उन्मूलन के कार्यक्रम कई सालों से चल रहे हैं. देश में साढ़े पांच करोड़ हृदयरोगी हैं और साढ़े छह करोड़ मधुमेह के मरीज.

ये सारी बीमारियां व्यक्ति की कार्यक्षमता, उत्पादकता और उम्र को कम करती हैं और व्यक्ति की उत्पादकता घटती है. ऐसी बीमारियों से सहज जागरुकता, जीवन-शैली और भोजन की आदतों में जरूरी बदलाव और समय पर समुचित उपचार से बचा जा सकता है. सरकार और समाज को इस तरफ गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें