सत्येंद्र सिंह
स्वतंत्र भारत में अगर जंग-ए-आजादी की चर्चा हाे या फिर देश में स्वतंत्रता संबंधित काेई समाराेह, पलामू की धरती पर जन्मे वीर शहीद नीलांबर और पीतांबर की चरचा हाेगी ही. शहीद नीलांबर-पीतांबर बड़े पराक्रमी धीर-वीर तथा गंभीर राष्ट्रभक्त थे. इनके पिता चेमु सिंह बड़े ही पराक्रमी जागीरदार थे. इनका बनाव कंपनी सरकार से कभी नहीं था, इसके बावजूद कंपनी सरकार ने इन्हें नाम मात्र के शुल्क पर दाे जागीरें उपलब्ध करवा रखी थीं, ताकि खरवार जाति के पराक्रमी जागीदार काे शांत रखा जा सके.
नीलांबर-पीतांबर के नेतृत्व में पूरे पलामू में विद्राेह की ज्वाला धधक रही थी. विद्राेहियाें काे स्थानीय जागीरदाराें तथा अन्य लाेगाें का समर्थन प्राप्त था. कहा जाता है कि इनका संपर्क रांची के प्रमुख क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाही एवं पांडेय गणपत राय से बना रहता था, जिससे घबराकर कमिश्नर डालटन ने मद्रास इंफेंट्री के 140 सैनिक, रामगढ़ घुड़सवार की छाेटी टुकड़ी तथा पिठाैरिया परगणैत के नेतृत्व में उसके कुछ बंदुकची के साथ 16 जनवरी 1858 काे पलामू के लिए कूच किया. वह 21 जनवरी काे मनिका पहुंच कर ले.
ग्राहम से मिला एवं दूसरे दिन पलामू किला से विद्राेह का संचालन कर रहे नीलांबर-पीतांबर पर चढ़ाई कर दी. सैन्य क्षमता अधिक हाेने के कारण नीलांबर-पीतांबर काे पलामू किला छाेड़ना पड़ा. किला छाेड़ने के समय विद्राेही अपना ताेप, भारी मात्रा में गाेला बारूद, असबाव, रसद एवं मवेशी अपने साथ नहीं ले जा सके. ले. डाल्टन काे वहां बाबू कुंवर सिंह की एक चिट्ठी मिली. निलांबर एवं नकलाैत मांझी के नाम लिखे इस पत्र में बाबू कुंवर सिंह ने अविलंब सहयाेग करने की बात लिखी थी. इससे घबरा कर डाल्टन ने कुंवर सिंह से मदद मिलने से पूर्व ही विद्राेहियाें काे कुचल देने की रणनीति बनायी. कमिश्नर डाल्टन ने लेस्लीगंज में रुक कर युद्ध की तैयारी किया. उसने युद्ध के लिए गाेला-बारूद तथा रसद जुटाये साथ ही क्षेत्रीय जागीरदाराें काे सैन्य सहायता उपलब्ध कराने का हुक्म दिया. बहुत सारे जागीरदार ने आदेश का पालन किया, परंतु पलामू राजा से संबंध रखनेवाले प्रमुख चेराे जागीरदार भवानी बक्स राय ने नीलांबर-पीतांबर का समर्थन करते हुए डाल्टन का आदेश नहीं माना. 10 फरवरी काे घाटी के हरिनामाड़ गांव में विद्राेहियाें द्वारा विराेधियाें पर कार्रवाई करने की खबर पर डाल्टन ने ले. ग्राहम काे रामगढ़ सेना एवं देव राजा के सैनिकाें के साथ हरिनामाड़ भेजा.
ग्राहम के पहुंचने से पूर्व ही विद्राेही वहां से निकल चुके थे. फिर भी तीन विद्राेही पकड़े गये, जिनमें दाे विद्राेहियाें काे तत्काल फांसी दी गयी तथा एक विद्राेही काे रास्ता बताने के लिए साथ ले लिया गया. डाल्टन ने विद्राेही बंदी के सहयाेग से 13 फरवरी 1858 काे नीलांबर-पीतांबर के जन्मभूमि में प्रवेश किया. नीलांबर-पीतांबर का दल काेयल नदी पार करते अंगरेजी सेना काे देख चेमू गांव छाेड़ जंगली टिलहाें के पीछे छिपकर वार करने लगा. इस वार से रामगढ़ सेना का एक दफादार मारा गया. उसके बावजूद नीलांबर-पीतांबर काे उस क्षेत्र से हटना पड़ा. दूसरी तरफ शाहपुर एवं बघमारा घाटी में डटे विद्राेहियाें से भी अंगरेजी सेना का मुकाबला हुआ. यहां भी विद्राेहियाें काे भारी क्षति उठानी पड़ी. विद्राेहियाें के पास से 1200 मवेशी एवं भारी मात्रा में रसद अंग्रेजी सेना ने जब्त किये परंतु नीलांबर-पीतांबर बच निकलने में कामयाब रहे, जिससे खिन्न हाेकर डाल्टन ने 12 फरवरी काे चेमू-सेनया स्थित नीलांबर-पीतांबर के गढ़ सहित पूरे गांव में लूट-पाट कर सभी घराें काे जला दिया. इनके संपत्ति, मवेशियाें तथा जागीराें काे जब्त कर लिया और लाेहरदगा के तरफ बढ़ गया. जनवरी 1859 में कप्तान नेशन पलामू पहुंचा और ग्राहम के साथ विद्राेह काे दबाना शुरू किया. तब तक ब्रिगेडियर डाेग्लाज भी पलामू के विद्राेहियाें के विरुद्ध मुहिम चला दी. शाहाबाद से आनेवाले विद्राेहियाें काे राेकने का काम कर्नल टर्नर काे साैंपा गया. इस कार्रवाई से पलामू के जागीरदारों ने अंगरेजाें से डर कर नीलांबर-पीतांबर काे सहयाेग देना बंद कर दिया.
अंगरेज खरवार एवं चेरवाें के बीच फूट डालने में भी सफल रहे. परिणाम स्वरूप नीलांबर-पीतांबर काे अपना इलाका छाेड़ना पड़ा. चेराे जाति से अलग हुए खरवार-भाेगताओं पर 08 फरवरी से 23 फरवरी तक लगातार हमले किये गये, जिससे इनकी शक्ति समाप्त हाे गयी. जासूसाें की सूचना पर अंगरेजी सेना ने पलामू में आंदाेलन के सूत्रधार नीलांबर-पीतांबर काे एक संबंधी के यहां से गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाये ही 28 मार्च 1859 काे लेस्लीगंज में फांसी दे दी.