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रघुवर सरकार के चार साल : बहुमत के कारण ही कड़े फैसले ले सकी है सरकार

अनुज कुमार सिन्हा रघुवर दास सरकार के चार साल पूरे हाे गये. एक साल का समय बचा है. अगर इसे क्रिकेट मैच से जाेड़ कर देखें ताे 50 आेवर में 40 आेवर खत्म हाे गये. अब सिर्फ 10 आेवर (यानी अंतिम एक साल) का खेल बाकी है. अंतिम दस आेवराें का खेल बहुत कुछ तय […]

अनुज कुमार सिन्हा
रघुवर दास सरकार के चार साल पूरे हाे गये. एक साल का समय बचा है. अगर इसे क्रिकेट मैच से जाेड़ कर देखें ताे 50 आेवर में 40 आेवर खत्म हाे गये. अब सिर्फ 10 आेवर (यानी अंतिम एक साल) का खेल बाकी है. अंतिम दस आेवराें का खेल बहुत कुछ तय करता है. वह खेल का पासा पलट देता है, इसलिए सरकार के लिए यह पांचवां वर्ष सबसे महत्वपूर्ण है. यही निर्णायक हाेगा भी.
अब वक्त आ गया है चार साल के कार्यकाल का आंकलन करने का. सभी इसका आंकलन अपने-अपने चश्मे से करेंगे. अखबार अपने हिसाब से देखेगा-लिखेगा, सत्ता आैर विपक्ष अपने हिसाब से. लेकिन असली आंकलन ताे जनता तय करती है, जाे अधिकांश समय चुप रहती है आैर सही समय पर अपना फैसला सुनाती है. असली मालिक, असली जज ताे जनता (यहां मतदाता की बात हाे रही है) है.
चार साल के कामाें पर भी चर्चा हाे जाये. 14 साल के जद्दाेजहद के बाद झारखंड में पहली बार बहुमत की सरकार बनी थी. दाे नयी बातें हुई थीं. एक बहुमत की सरकार आैर दूसरा गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का चयन.
बहुमत की सरकार हाेने के कारण सरकार काे बात-बात में धमकानेवाले विधायकाें से छुटकारा मिल गया. यही कारण है कि कुछ कड़े-महत्वपूर्ण फैसले लेने में मुख्यमंत्री सफल रहे. दूसरी चर्चा इस बात की हाेती थी कि गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बना ताे अनर्थ हाे जायेगा.
आदिवासी बहुल इस राज्य में आदिवासियाें पर से फाेकस हट जायेगा. आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि चार साल में रघुवर दास की सरकार ने आदिवासी कल्याण पर जितना खर्च किया, उतना पहले कभी किसी सरकार में नहीं हुआ. सरकार आदिवासी कल्याण पर लगभग 20,765 कराेड़ खर्च कर रही है.
अब राज्य अनुसूचित जनजाति आयाेग का गठन करने की प्रक्रिया चल रही है. यह आयाेग पहले की सरकार भी कर सकती थी, अब तक बन जाना चाहिए था, लेकिन नहीं बना था. अगर रघुवर सरकार के द्वारा लिये गये प्रमुख निर्णयाें काे देखें ताे साफ है कि इस सरकार के फाेकस में आदिवासी, दलित, किसान आैर महिलाएं हैं. बजट का बड़ा हिस्सा इन पर खर्च हाे रहा है.
किसानाें काे प्रति एकड़ पांच हजार रुपये देने का त्वरित फैसला, एक रुपये में महिलाआें काे 50 लाख तक की संपत्ति की रजिस्ट्री आदि इसी कड़ी में आते हैं. इसके अलावा सरकार ने हाल ही में पिछड़ी जाति के कल्याण के लिए अहम घोषणा की. पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम के साथ-साथ जिलों में सर्वेक्षण कराकर आबादी के अनुसार आरक्षण देने की बात कही गयी है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने चार साल में कुछ बड़े फैसले लिये. कुछ किसी के लिए प्रिय हुए ताे किसी के लिए अप्रिय. लेकिन फैसले लिये ताे गये. लटकाना किसी समस्या का समाधान नहीं हाेता. जाे फैसले लिये गये, उनमें से एक फैसला था स्थानीय नीति का. काेई भी सरकार यह जाेखिम नहीं लेना चाहती थी, टाल रही थी, लेकिन रघुवर सरकार ने फैसला लिया. स्थानीय नीति लागू कर दी.
इसका लाभ नियुक्तियाें में झारखंड के लाेगाें काे मिला. अपवाद काे छाेड़ दें ताे सरकारी नाैकरी में 90-95 फीसदी बहाली झारखंड के स्थानीय लाेगाें की हुई है. अपवाद में शिक्षकाें की बहाली है. स्थानीय नीति में जरूर कुछ कमियां रह गयी हैं, जिसका फायदा उठाते हुए बड़ी संख्या में दूसरे राज्याें के लाेगाें की बहाली हाे गयी. इसे आैर इस तरह की कमियाें काे ठीक करना रघुवर सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनाैती हाेगी. मूलवासियाें यानी सदानाें की जाे शिकायतें हैं, उन्हें दूर करना हाेगा, वह भी एक साल के भीतर.
सीएनटी में संशाेधन के प्रस्ताव (जाे बाद में वापस ले लिया गया) से जमीन काे लेकर जाे गलतफहमी फैली, उसका नुकसान यह हुआ कि जाे अच्छे काम हुए, उसका श्रेय सरकार काे नहीं मिल पा रहा. सरकार के पास आगे यही चुनाैती है कि आदिवासियाें, महिलाआें आैर किसानाें के हित के लिए सरकार ने जितना कुछ किया है, वह संदेश उन तक पहुंच जाये. यह काम सिर्फ सरकार नहीं कर सकती है. संगठन-कार्यकर्ता के जिम्मे यह काम हाेता है.
इसमें काेई दाे राय नहीं कि इन चार सालाें में झारखंड कई कदम आगे बढ़ा है. संतालपरगना ताे सरकार की प्राथमिकता में है. देवघर में एम्स का आना, साहेबगंज में गंगा पर पुल, गाेविंदपुर-साहेबगंज सड़क का बनना, साहेबगंज बंदरगाह आनेवाले दिनाें में संतालपरगना की तसवीर बदलेगी. राज्य के बाकी हिस्साें में भी सड़कें बनी हैं, पुल बने हैं. 14 साल में विधानसभा का अपना भवन नहीं था. इसी सरकार ने विधानसभा बनाने का फैसला किया आैर अब बन कर लगभग तैयार है. हाइकाेर्ट का विशाल भवन बन चुका है. राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम हुए हैं. कई मेडिकल कॉलेज तैयार हाे रहे हैं. खेती के क्षेत्र में काम हुए हैं. अनाज का उत्पादन बढ़ा है, मछली आैर दूध उत्पादन के क्षेत्र में काम हुए हैं. शाैचालय निर्माण में काम हुए हैं. बिजली की स्थिति पहले से बेहतर हुई है, लगभग सभी गांवाें में बिजली पहुंच चुकी है. सरकार किसी भी दल की हाे, ये काम ताे हाेते ही रहते हैं पहले भी हुए हैं, आगे भी हाेंगे. लेकिन बड़े कामाें काे जनता याद रखती है.
झारखंड में जाे कुछ हाे पाया है, उसका बड़ा कारण सरकार का बहुमत में हाेना आैर केंद्रीय नेतृत्व से खुली छूट मिलना है. यह ताे विराेधी भी मानते हैं कि मुख्यमंत्री में जुनून है आैर खुद कड़ी मेहनत करते हैं, खुद क्षेत्राें का दाैरा करते हैं. जमीनी हकीकत जानने के लिए खुद लाेगाें के बीच जाते हैं. जाे काम संगठन काे करना चाहिए था, वह भी मुख्यमंत्री काे करना पड़ता है. जनसंवाद सबसे लाेकप्रिय कार्यक्रम है आैर इसने जनता काे सीधे मुख्यमंत्री से बात करने का माैका दिया है. जनसंवाद में उठे मामलाें पर कार्रवाई हाेती है. इसके बावजूद कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सुधार की जरूरत है. खास कर अफसराें की आेर से. गलती अफसर करते हैं, खामियाजा सरकार काे भुगतना पड़ता है.
यह सही है कि चार साल में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार का काेई मामला (ट्रांसफर, ठेका आदि) सामने नहीं आया लेकिन मुख्यमंत्री की तमाम चेतावनी के बावजूद नीचे के स्तर पर गड़बड़ी हाे रही है. इन्हीं से ताे जनता काे राेज पाला पड़ता है. पारा टीचर्स का मामला सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है. शिक्षा का स्तर ठीक करने के लिए बड़े परिवर्तन आैर बड़े काम करने हाेंगे, लेकिन हड़ताल-काम ठप की धमकी से कुछ हाे नहीं पाता. अब राज्य की अर्थ-व्यवस्था में कृषि क्षेत्र बड़ी भूमिका अदा कर रहा है, इसलिए अब ताे सिंचाई के क्षेत्र में तेजी से काम करने की जरूरत है.
समय आ गया है जब सरकार में शामिल पूरी टीम, पूरा प्रशासनिक महकमा झारखंड काे आगे बढ़ाने में लग जाये. अगर अफसर नहीं चाहें ताे मुख्यमंत्री-मंत्री कुछ भी कर लें, याेजनाआें का लाभ लाेगाें तक नहीं पहुंच पायेगा. सही-ईमानदार आैर काम करनेवाले अफसर सही जगह पर हाें, अपने दायित्व काे निभाने लगें ताे काम दिखने लगेगा. बहुत याेजनाएं ली जा चुकी हैं. अब समय आ गया है कि उन कामाें काे समय के भीतर पूरा कर दिया जाये. जाे भी अधूरे काम हैं, उन्हें युद्ध स्तर पर पूरा किया जाये. रांची के कांटाटाेली में जाे फ्लाइआेवर बन रहा है, उसे रात-दिन लग कर जल्द पूरा किया जाये.
अंडरग्राउंड केबलिंग, रांची-टाटा राेड आैर सिवरेज का जाे काम कई साल से चल रहा है (मनमाैजी तरीके से), उसे जल्द पूरा किया जाये. चार साल में जाे बुनियाद रखी गयी है, जाे काम आगे बढ़ा है, उसे हर हाल में आनेवाले एक साल में पूरा करना हाेगा. और, अंतिम बात. सरकार ने चार साल में जो भी वादे िकये हैं, घोषणाएं की हैं, उन्हें पूरा करने के िलए अब सिर्फ 10 ओवर यानी एक साल का समय बचा रहेगा.

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