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शहर सरोकार : प्रतिभाओं से भरे स्कूल भवन को बनाया डस्टबीन

डाकबंगला के पास है राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, हाल देखकर अफसोस करेंगे ‘हार्ट ऑफ द सिटी’ कहे जाने वाले डाकबंगला चौराहे के निकट पेड़ों के झुरमुट के बीच एक खंडहरनुमा अधकच्चे तीन छोटे-छोटे कमरों में संचालित राजकीय कन्या विद्यालय का रिजल्ट इस साल 85 फीसदी रहा है. बावजूद इस स्कूल को संसाधन के नाम पर […]

डाकबंगला के पास है राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, हाल देखकर अफसोस करेंगे
‘हार्ट ऑफ द सिटी’ कहे जाने वाले डाकबंगला चौराहे के निकट पेड़ों के झुरमुट के बीच एक खंडहरनुमा अधकच्चे तीन
छोटे-छोटे कमरों में संचालित राजकीय कन्या विद्यालय का रिजल्ट इस साल 85 फीसदी रहा है. बावजूद इस स्कूल को संसाधन के नाम पर साल में चार आने भी नहीं मिलते, ताकि वह लिखने के लिए चॉक भी खरीद सके. इस स्कूल में बच्चियों के बैठने के लिए ठीक से जगह भी नहीं है. पास में बहुमंजिली इमारतों में रहने वाले लोग इस जर्जर हो रहे स्कूल भवन को डस्टबीन बना चुके हैं. आये दिन उनके कचरे के थैले यहां फेंक दिये जाते हैं. गजब यह है कि इस स्कूल के सामने से रोज आलाधिकारी गुजरते हैं, लेकिन 85 फीसदी रिजल्ट देने वाले इस स्कूल पर किसी की नजर तक नहीं जाती.
गर्मी के चलते बेहोश हो जाती हैं बच्चियां
गर्मी में यहां पढ़ाई कराना कठिन होता है. गर्मी के कारण बच्चियां कई बार बेहोश तक हो जाती हैं. इधर बिजली बिल भुगतान नहीं होने की वजह से बिजली कंपनी ने इस स्कूल की मार्च माह में बिजली काट दी. प्रार्थना के दौरान बच्ची बेहोश भी हुई. प्राचार्य ने जब बिजली कंपनियों से गुहार लगायी, तब जाकर बिजली बहाल की गयी. गजब की बात यह है कि बिजली बिल भुगतान करने की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग की है. इस बार स्कूल प्रबंधन की रणनीति है कि बच्चियों को गर्मी से बचाने के लिए सितंबर तक सुबह की शिफ्ट में स्कूल संचालित किया जायेगा. इसके लिए इस साल अनुमति ली जायेगी.
नाम बोरिंग रोड, पर डाकबंगला पर स्कूल
1962 से संचालित इस स्कूल को 1997 में बोरिंग रोड से डाकबंगला में शिफ्ट किया गया, लेकिन इसके नाम से बोरिंग रोड अब भी जुड़ा हुआ है. इस स्कूल के जर्जर कमरे कभी स्कूल इंस्पेक्टर कार्यालय का हिस्सा हुआ करते थे.
उस समय इसकी स्थिति बहुत अच्छी थी, लेकिन जैसे ही कार्यालय बंद हुआ, इस परिसर की रौनक छिन गयी. आज स्कूल को इतना भी फंड नहीं मिलता, जिससे फर्नीचर को रिपेयर भी कराया जा सके. हैंडपंप सूखा पड़ा है. परिसर की छतें टपक रही हैं. फर्नीचर कुछ कमरों में डंप है. मकड़ी के जाले लगे हैं.
इंग्लिश और सामाजिक विज्ञान के टीचर नहीं
इस स्कूल में आर्ट एंड क्राफ्ट और संगीत जैसे दुर्लभ विषयों के टीचर हैं, लेकिन इंग्लिश और सामाजिक विज्ञान के नहीं हैं. इंग्लिश की क्लास हिंदी की टीचर लेती हैं. टीचर की प्रतिनियुक्ति इसलिए नहीं की गयी कि बच्चियां कम हैं और अंंग्रेजी में पास होने की अनिवार्यता नहीं है.
अव्वल दर्जे की पढ़ाई
इस स्कूल में अभी पिछले कुछ वर्षों से छात्राओं की संख्या 50 से नीचे ही रही है. यहां सात टीचर हैं. यहां पढ़ाई अव्वल दर्जे की है. इसी कारण इस साल रिजल्ट बेहद अच्छा रहा है. वर्तमान सत्र में यहां अभी एक या दो ही बच्चियां आयी हैं, लेकिन पढ़ाई शुरू हो चुकी है. संस्कृत और अंग्रेजी को छोड़ कर सभी विषयों में एक या दो अध्याय पढ़ाये जा चुके हैं. नोट बुक भी बनवायी गयी हैं.
इसलिए नहीं मिली राशि
स्कूल का अपना भवन नहीं होने से लैब के उपकरण खरीदने के लिए पांच लाख रुपये नहीं मिले. हैरत की बात यह है कि अगर किसी स्कूल के पास अपना भवन नहीं है, तो बच्चों का कसूर क्या है? जानकारों के मुताबिक बच्चियों की पढ़ाई के साथ समझौता क्यों किया जा रहा है. कंप्यूटर भी नहीं है, जबकि यह समय की मांग है.
जब एक कलेक्टर ने कसा तंज
कुछ साल पहले जब एक कलेक्टर यहां निरीक्षण करने पहुंचे, तो बच्चियों और टीचरों ने अभावों की जानकारी दी, तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया. ऊपर से तंज कस दिया कि पेड़ों के बीच आप लोग पढ़ते हैं. शांति निकेतन विश्वविद्यालय की तरह परिवेश है. मजे से पढ़िए और पढ़ाइए. उनके जाने के कुछ दिन बाद ही एक पेड़ कक्षा पर पर गिरा और कमरा ध्वस्त हो गया. हादसा छुट्टी होने के बाद हुआ इसलिए बच्चियों को चोट नहीं आयी.
टूर जाने को फंड नहीं
हाल ही में स्कूल की छात्राओं को एक टूर पर जाने की सूचना मिली. पर उस समस्या निराशा हुई, जब कह दिया गया कि चूंकि आपके स्कूल में बच्चियों की संख्या पचास से कम है, इसलिए उन्हें टूर पर जाने के लिए फंड नहीं मिलेगा. बच्चियों ने इसे सौतेला व्यवहार बताया.

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