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पटना : दर्ज केसों के प्राय: छठे हिस्से का ही हो पाता है अनुसंधान

राज्य में प्रति माह औसतन 21,900 मामले होते हैं दर्ज पटना : बिहार में एफआइआर दर्ज होने और इनके निष्पादन की गति में काफी बड़ा अंतर है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार, सूबे के सभी 1064 थानों में प्रति महीने औसतन 21 हजार 900 मामले दर्ज होते हैं. परंतु इसका छठवां हिस्सा का ही […]

राज्य में प्रति माह औसतन 21,900 मामले होते हैं दर्ज
पटना : बिहार में एफआइआर दर्ज होने और इनके निष्पादन की गति में काफी बड़ा अंतर है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार, सूबे के सभी 1064 थानों में प्रति महीने औसतन 21 हजार 900 मामले दर्ज होते हैं. परंतु इसका छठवां हिस्सा का ही अनुसंधान या निपटारा हो पाता है. यानी करीब तीन हजार 600 के आसपास मामलों का ही निपटारा हो पाता है. बाकी मामले लंबित पड़े रह जाते हैं. लंबित मामलों की यह फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है.
दिसंबर, 2018 तक लंबित कांडों या मामलों की संख्या एक लाख 27 हजार 542 है. पुलिस मुख्यालय ने इसमें मई 2017 तक के लंबित पड़े चुनिंदा 45 हजार 126 मामलों का निष्पादन 30 जून 2019 तक करने का आदेश जारी किया है. एडीजी (सीआइडी) विनय कुमार ने इस मामले में सभी जिलों को सख्त निर्देश जारी किया है कि वे इस मामले को गंभीरता से लेते हुए निर्धारित समयसीमा में हर हाल में मामलों का निपटारा कर दें. समय पर मामलों का निपटारा नहीं करने पर संबंधित जिलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी.
लंबित मामलों का औसत मानक से दोगुना : राज्य में लंबित पड़े मामलों की संख्या एक लाख 27 हजार से ज्यादा है, जो मानक के दोगुना से भी ज्यादा है.
राष्ट्रीय मानक के अनुसार, प्रतिमाह दर्ज कांडों की संख्या से 2.50 या ढाई गुणा से ज्यादा लंबित मामलों की संख्या नहीं होनी चाहिए. परंतु राज्य में यह 5.82 गुणा है. मुख्यालय स्तर पर इसके लिए व्यापक कवायद शुरू की गयी है. नियमानुसार, गंभीर अपराध से जुड़े मामलों का निष्पादन तीन महीने में हो जाना चाहिए. अगर नहीं होता है, तो जोनल डीआइजी इसमें छह महीने की अवधि विस्तार दे सकते हैं. ऐसे मामलों की समीक्षा भी डीआइजी ही करेंगे.
हत्या से गबन, डकैती समेत अन्य मामले लंबित : लंबित मामलों की लंबी फेहरिस्त में हत्या से ज्यादा गबन, डकैती, अपहरण, गुमशुदगी, आर्म्स एक्ट, शराबबंदी समेत अन्य मामले शामिल हैं.

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