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बॉन्ड से दलों को चंदा देने में अब भी नहीं दिखी रुचि

पटना : केंद्र सरकार ने चुनाव में पारदर्शिता लाने और राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदा की जानकारी आम लोगों को भी देने के उद्देश्य से 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू की है. यह बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चुनिंदा शाखाओं से मिलता है. परंतु बिहार में पिछले दो साल के दौरान इसके […]

पटना : केंद्र सरकार ने चुनाव में पारदर्शिता लाने और राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदा की जानकारी आम लोगों को भी देने के उद्देश्य से 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू की है.

यह बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चुनिंदा शाखाओं से मिलता है. परंतु बिहार में पिछले दो साल के दौरान इसके जरिये चंदा देने की शुरुआत किसी पार्टी को नहीं हुई है.
यहां सभी चंदा अब भी कैश में ही लिया जाता है. जबकि नियम के अनुसार, कोई दल दो हजार से ज्यादा चंदा कैश में नहीं ले सकता है. दरअसल चंदा लेने और देने वाले दोनों ही इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं.
इसकी जानकारी किसी को नहीं हो, इसका ध्यान रखते हुए बॉड का ही उपयोग नहीं हो रहा है. लॉ कमीशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों को 75 फीसदी चंदा अज्ञात स्रोत से आते हैं.
पिछले साल तक 600 करोड़ के बिके इलेक्टोरल बॉन्ड : हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति एकदम अलग है.
पिछले वर्ष तक 600 करोड़ से ज्यादा के इलेक्ट्रोरल बॉन्ड बिके थे. भाजपा को पिछले साल तक जितना चंदा मिला था, उसमें 487 करोड़ सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले थे. हालांकि पार्टी रिपोर्ट में 437 करोड़ मिलने की बात है. कांग्रेस को 12 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले हैं.

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