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पटना : जनता ने आइएएस को स्वीकारा, आइपीएस में डीजीपी तक को वोटरों ने नकारा

शशिभूषण कुंवर, पटना : लोकतंत्र के महापर्व में जनता भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के अधिकारियों को तो स्वीकार करती है, लेकिन भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को वोट देने में हाथ पीछे खींच लेती है. राज्य में अब तक एकमात्र आइपीएस अधिकारी चुनाव में जीत हासिल कर पाये हैं. पुलिस अधिकारियों में आइपीएस अधिकारी से […]

शशिभूषण कुंवर, पटना : लोकतंत्र के महापर्व में जनता भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के अधिकारियों को तो स्वीकार करती है, लेकिन भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को वोट देने में हाथ पीछे खींच लेती है.
राज्य में अब तक एकमात्र आइपीएस अधिकारी चुनाव में जीत हासिल कर पाये हैं. पुलिस अधिकारियों में आइपीएस अधिकारी से अधिक सफलता दारोगा को मिली. दो दारोगा सोम प्रकाश और रवि ज्योति चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच चुके हैं.
लोकसभा व विधानसभा चुनावों में कई पूर्व डीजीपी भी अपनी किस्मत अाजमा चुके हैं, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाये. वहीं, आइएएस अधिकारियों के माथे पर लोकतंत्र में विजय का सेहरा अधिक बंधा है.
यह दीगर बात है कि मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी पंचम लाल चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली. अब जब लोकसभा का चुनाव आया है, तो ब्यूरोक्रेसी में बैठे लोगों के मन में जनप्रतिनिधि बनने की इच्छा बलवती होने लगी है.
जिन आइएएस अधिकारियों को राजनीति के माध्यम से जनता की सेवा का मौका मिला, उनमें तत्कालीन सीएम कर्पूरी ठाकुर के सचिव रहे यशवंत सिन्हा (लोकसभा), 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह (राज्यसभा), पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह (लोकसभा), केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय में सचिव रहे आरएस पांडेय (विधानसभा) व संयुक्त बिहार में बोकारो के डीसी रहे मुनीलाल (लोकसभा) प्रमुख हैं. यशवंत सिन्हा वित्त व विदेश मंत्री बने तो आरके सिंह वर्तमान में ऊर्जा राज्यमंत्री है.
वहीं, मुनि लाल केंद्र में श्रम राज्यमंत्री रह चुके हैं. चुनावी अखाड़े में आने के बाद जिन आइएएस अधिकारियों को जनता ने स्वीकार नहीं किया, उनमें केपी रमैया, पंचम लाल और गोरेलाल यादव शामिल हैं. पंचमलाल 1974 बैच के आइएएस अधिकारी हैं. वह 2012 में रिटायर हुए.
आइपीएस अधिकारी रहे मनोहर प्रसाद सिंह को 2010 में जदयू ने मनिहारी धानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और वह विधायक बन गये. पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने 2004 में बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़ा था.
इनको सिर्फ 5780 वोट मिले. पूर्व डीजीपी आरआर प्रसाद ने आरा से विधान परिषद के लिए चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें भी असफलता हाथ लगी.
पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा 2014 के लोकसभा चुनाव में नालंदा से कांग्रेस के प्रत्याशी बनाये गये, लेकिन तीसरे नंबर पर रहे. इसी तरह से आइपीएस अधिकारी मैकू राम मोहनिया विधानसभा क्षेत्र से आपराधिक छवि के एक नेता सुरेश पासवान से चुनाव हार गये थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में आइपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस लेने का फैसला लिया था. लेकिन वांछित पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर सेवा में लौट आये.
इन आइएएस को राजनीति में मिली सफलता
थानेदारों को 100% सफलता : चुनाव में थानेदारों को 100% सफलता मिली है. दारोगा की नौकरी छोड़कर सोम प्रकाश ने 2010 में औरंगाबाद जिले के ओबरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीता था.
पहले वह ओबरा में थानाप्रभारी रह चुके थे. इसी तरह से राजगीर में थानेदार के रूप में पदस्थापित रहे रवि ज्योति भी वहां से वर्तमान में विधायक हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने रवि ज्योति को राजगीर से प्रत्याशी बनाया और वह िवधायक िनर्वाचित हुए.
यशवंत सिन्हा (लोकसभा)
एनके सिंह (राज्यसभा)
आरके सिंह (लोकसभा)
मुनि लाल (लोकसभा)
आरएस पांडेय (विधानसभा)
l आइपीएस में एकमात्र मनोहर प्रसाद सिंह को मिली है सफलता
l दो पूर्व डीजीपी डीपी ओझा व आरआर प्रसाद राजनीति में रहे असफल
जिला प्रशासन ने कर ली है तैयारी

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