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आपके संकल्प से ही बचेगा पर्यावरण, घर लाना बंद करें पॉलीथिन

जल-थल बचेगा तब, घर लाना बंद करेंगे पॉलीथिन जब बिहार सरकार ने राज्य में पॉलीथिन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है. 24 सितंबर की तारीख तय की गयी है. इसके लिए एक ड्राफ्ट नोटीफिकेशन भी तैयार है जो बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध है. इन ड्राफ्ट नोटीफिकेशन […]

जल-थल बचेगा तब, घर लाना बंद करेंगे पॉलीथिन जब
बिहार सरकार ने राज्य में पॉलीथिन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर ली है. 24 सितंबर की तारीख तय की गयी है. इसके लिए एक ड्राफ्ट नोटीफिकेशन भी तैयार है जो बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध है. इन ड्राफ्ट नोटीफिकेशन के मुताबिक इसके जारी होने के 30 दिनों के भीतर निम्न नियमों का पालन अनिवार्य होगा.
राज्य के नगर निगम, नगर पालिका या नगर पंचायत के भीतर किसी भी तरह और मोटाई का प्लास्टिक बैग न निर्माण किया जा सकेगा, न भंडार और न बेचा जा सकेगा. इसके परिवहन पर भी प्रतिबंध रहेगा.
अपवाद स्वरूप जीव चिकित्सा कचरों के निस्तार के लिए 50 माइक्रोंस से अधिक मोटे प्लास्टिक का बैग का इस्तेमाल किया जा सकेगा. साथ ही खाद्य उत्पादों के पैकेट, दुग्ध उत्पादों के पैकेट और पौधों को उगाने के लिए उपयोग होने वाले प्लास्टिक को प्लास्टिक थैली नहीं माना जायेगा. यानी इनको छूट रहेगी.
बिहार में भी 2013 में हुआ था बैन
बिहार सरकार ने 2013 में भी एक बार पॉलीथिन को बैन किया था. उस वक्त यह नियम बना था कि 40 माइक्रोन से कम मोटाई के पॉलीथिन को प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके अलावा यह नियम भी बना था कि दुकानदार किसी खरीदार को मुफ्त में पॉलीथिन बैग नहीं देंगे.
40 माइक्रोन से अधिक मोटाई वाले पॉलीथिन का इस्तेमाल भी तभी किया जा सकेगा, जब उस पर निर्माता का नाम और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी लाइसेंस का विवरण हो. उस वक्त पटना नगर निगम ने इस पॉलीथिन बैग की कीमत 5 रुपये तय की थी. हालांकि यह प्रतिबंध तब ठीक से लागू नहीं हो पाया.
जब गाय के पेट से निकला 70 किलो पॉलीथिन
अब यह जानकारी आम है कि माल मवेशी अक्सर खाने के साथ पॉलीथिन भी खा जाते हैं जो उनकी सेहत को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है. मगर इसी साल फरवरी महीने में पटना के वेटनरी कॉलेज में एक ऐसी सर्जरी हुई जिससे यह जानकारी और पुष्ट हो गयी.
दरअसल, इस कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर जीडी सिंह ने एक गाय का ऑपरेशन किया और उसके पेट से 70 किलो पॉलीथिन निकाला. यह संभवतः पूरे देश में अपनी तरह का अकेला ऑपरेशन होगा, जिसमें पॉलीथिन की इतनी मात्रा निकली होगी. खुद डॉक्टर ने मीडिया को बताया कि उन्होंने अपने 13 साल के कैरियर में कभी ऐसा ऑपरेशन नहीं किया था.
सिक्किम में कहीं नहीं दिखता पॉलीथिन
वैसे तो देश के 20 राज्यों ने पॉलीथिन बैग पर प्रतिबंध लगा रखा है. मगर यह प्रतिबंध कहीं भी ठीक से लागू नहीं हो पाया. यही वजह है कि दिन-बदिन देश में प्लास्टिक कचरा बढ़ता ही जा रहा है. मगर देश में कम से कम एक राज्य ऐसा जरूर है, जहां प्लास्टिक पर प्रतिबंध काफी हद तक सफल रहा है. वह है, पूर्वोत्तर का छोटा सा प्रांत सिक्किम. सिक्किम की कहानी से देश का हर राज्य सीख सकता है.
जैविक खेती और पर्यटन आज की तारीख में सिक्किम की पहचान हैं. देश और दुनिया से बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने के लिए सिक्किम आते हैं. मगर आप अगर सिक्किम जायेंगे तो आपके लिए वहां मिनरल वाटर की बोतल ढूंढ पाना एक असंभव काम होगा. राज्य ने बोतलबंद पानी को प्रतिबंधित कर दिया है, सरकार पर्यटकों से अपील करती है कि वे अपने साथ अपनी बोतल लेकर आयें और अधिकांश जगह शुद्ध और खनिज युक्त पेयजल उपलब्ध रहता है.
इसके अलावा आपको पूरे राज्य में कहीं प्लास्टिक या थर्मोकोल के कप प्लेट नहीं दिखेंगे. ये भी प्रतिबंधित हैं. सब्जी बाजार में आपको हर आदमी अपना थैला लेकर घूमता नजर आयेगा. दुकानदार केले के पत्ते या किसी अन्य बड़े पत्ते में सब्जियां बांध कर बेचते दिखेंगे. यानी कुल मिलाकर पॉलीथिन बैन का प्रभाव राज्य में नजर आता है. इसकी वजह है इस प्रतिबंध को ठीक से लागू किया जाना.
सरकार ने 1998 में ही पॉलीथिन को प्रतिबंधित कर दिया था, उसके बाद से लगातार निगरानी रखी. दंडात्मक प्रावधान लगाये, साथ ही लोगों को जागरूक भी किया.
सिक्किम में हर साल दुकानदारों के लाइसेंस रेनुअल होते हैं, इनमें अधिकारी इस बात की सख्ती से जांच करते हैं कि कहीं दुकानदार पॉलीथिन का इस्तेमाल तो नहीं करते. इसकी सीसीटीवी कैमरे से निगरानी भी की जाती है, दंड भी काफी अधिक है. यही वजह है कि 2014 में दिल्ली की एक संस्था ने अपने सर्वे में पाया कि सिक्किम में पॉलीथिन शायद ही कहीं दिखता है.
पॉलीथिन जहां रहता है, वहां नुकसान ही करता है
1. शहरों को पॉलीथिन बैग का जो सबसे बड़ा नुकसान इन दिनों झेलना पड़ रहा है वह यह कि इनकी वजह से नालियां जाम हो जाती हैं और बरसात के दिनों में जल निकास में परेशानी होने के कारण हल्की बारिश में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
2. प्लास्टिक बैगों की अधिकता इतनी है कि ये मिट्टी में भी मिलने लगे हैं, जिससे पेड़-पौधों के स्वाभाविक विकास में भी बाधा उत्पन्न होने लगी है. चूंकि ये कभी नष्ट नहीं होते, इसलिए मिट्टी में जहां मिलते हैं, वहां अनंत काल तक जीवित रहते हैं.
3. ऐसी स्थिति में बारिश या बाढ़ का पानी रिस कर भूतल तक भी नहीं पहुंच पाता. यह एक अतिरिक्त नुकसान है.
4. गाय और बकरी जैसे पशु अक्सर पॉलीथिन खा लेते हैं और यह उन्हें गंभीर रूप से बीमार कर देता है.
5. कई लोग जानकारी नहीं होने के कारण पॉलीथिन को जला देते हैं. जलाने पर यह और विषैला हो जाता है, इसकी गंध से श्वांस और फेफड़े संबंधी बीमारियां हो सकती हैं.
6. पॉलीथिन बैग में अगर आप खाद्य सामग्रियां लाते हैं तो प्लास्टिक का अंश आपके भोजन में जा सकता है और यह अंततः आपके पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है.
विशेषज्ञों की राय
हर स्थिति में नुकसान करता है पॉलीथिन
आरके सिंहा
दरअसल पॉलीथिन नष्ट होने वाली चीज नहीं है. यह जहां भी रहती है, लोगों को नुकसान पहुंचाती है. नदी में डाल देंगे तो नदी का भूमिगत जल से संपर्क खत्म कर देगी. वाटर रिचार्ज होना बंद हो जायेगा. नाले में डाल देंगे तो नाला चोक हो जायेगा और थोड़ी सी बारिश में शहर पानी-पानी होने लगेगा. धूप में या खुली हवा में पॉलीथिन माइक्रो प्लास्टिक में टूटने लगता है और हवा में बिखरने लगता है.
फिर वह सांसों के जरिये या अन्य तरीके से हमारे अंदर प्रवेश करता है, जो जहरीला होता है. यह हमारी किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचाता है. नदी या समुद्र में अगर यह हो तो वहां के जानवर खा लेते हैं. ह्वेल इसके सबसे बड़े शिकार हैं. जापान में कई व्हेलों के पेट से 10-10 टन प्लास्टिक निकाला गया है.
निदान : पॉलीथिन की मोटाई 50 माइक्रोन से कम न हो ताकि इसे डिस्पोज किया जा सके. अगर मुमकिन हो तो नेचुरल फाइवर का इस्तेमाल करें, थैला लेकर बाजार जाने की आदत डालें. इसके लिए लोगों की आदत बदलनी पड़ेगी.
साथ ही सामान बेचने वालों को भी फिर से अखबार का ठोंगा रखना चाहिए, या फिर बढ़िया थैला रखें और ग्राहकों से उसकी कीमत वसूलें, जैसा आजकल शॉपिंग मॉल्स में होता है. सबसे सटीक उपाय तो यह है कि पॉलीथिन का निर्माण करने वाली कंपनियों को ही बंद करें.
(डॉल्फिन मैन के नाम मशहूर आरके सिंह फिलहाल नालंदा ओपन विवि के वीसी हैं.)
ऐसे कैरी बैग्स बनाने होंगे जो नष्ट हो सके
अनिल प्रकाश
प्लास्टिक जब आया तो इतना उपयोगी लगा कि देखते ही देखते मानव जीवन का हिस्सा बन गया. यह सस्ता था, हल्का था, टिकाऊ था. लेकिन अब यह भारी मुसीबत बन चुका है. इसके कचरे का ढेर जमा होता जा रहा है.
जानवर खा लेते हैं और मरते हैं. प्लास्टिक नालों को जाम करता है और जल जमाव की समस्या उत्पन्न होती है. कुछ लोग इसे जलाते भी हैं और साधनहीन लोग ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. उनको पता नहीं कि इसके जलने से जो जहरीली गैस निकलती है वह कैंसर तथा अन्य घातक बीमारियों का कारण बनती है.
प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग का काम तेज किया जाना और इसका उपयोग घटाना जरूरी है. सब्जियां व अन्य सामान के लिए हल्के कैरी बैग्स सुलभ कराना होगा जो गलकर नष्ट हो सकें. जन चेतना के बिना इस का मुकाबला नहीं हो सकता. ( अनिल प्रकाश, जाने-माने पर्यावरणविद हैं, गंगा मुक्ति आंदोलन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.)
तोड़ देता है जल स्रोतों का नैसर्गिक संपर्क
रणजीव
पॉलीथिन की थैलियों से ओवरऑल पर्यावरण का तो नुकसान होता ही है. हमारी जलसंपदाओं को बड़ा नुकसान होता है. खास तौर पर नदियों और तालाबों का. अभी भी अपने यहां कचरा नदियों-तालाबों में डंप करने की प्रवृत्ति है.
मगर जब यह पॉलीथिन और प्लास्टिक नदियों-तालाबों के तल में पहुंचता है तो वह बड़ा नुकसान करता है. उसकी वजह से नदियों-तालाबों का पृथ्वी से नैसर्गिक रिश्ता टूट जाता है, पानी नीचे नहीं जाता. मतलब ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं हो पाता है.
इससे कुछ दूसरे तरह की भी परेशानी उत्पन्न होती है. जैसे बारिश के दिनों में नदी और तालाब बहुत जल्द भर जाते हैं और ओवरफ्लो होने लगते हैं. इसलिए मेरी सलाह यह है कि अगर नदियों-तालाबों को बचना है तो और कुछ करें न करें इनमें पॉलीथिन फेंकना या नाले में बहाना बंद कर दें.
(रणजीव बिहार के नदियों के जानकार हैं और जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)
प्लास्टिक से मुक्ति ज़रूरी भी, मजबूरी भी
इश्तेयाक
1950 में प्लास्टिक की शुरुआत के समय से अबतक दुनिया मे 830 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक हमारे पर्यावरण में दाख़िल हो चुका है. इसका नतीजा यह है कि पानी और मिट्टी के अंदर और उनपर आश्रित सभी जीवों समेत हमारे अपने भोजन में भी भारी मात्रा में ज़हर घुलता जा रहा है. दुनिया के 93% ब्रांडेड बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक के अंश भारी मात्रा में पाए जाने लगे हैं. इसके अलावा प्लास्टिक कचरे जलधाराओं, मिट्टी और हवा को भी विषाक्त कर रहे हैं. आज मानवता के सामने यह चुनौती है कि प्लास्टिक और उसके दुष्प्रभावों से बचाव कैसे हो.
कुछ सुझाव
1. सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उत्पादन, बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध.
2. प्लास्टिक स्ट्रॉ, थैलियों, बोतल, पैकिंग के उपयोग पर रोक.
3. प्लास्टिक और जैविक कचरे का अलग ट्रीटमेंट जिसमें प्लास्टिक कचरे की रीसाइक्लिंग या एस्फाल्ट रोड बनाने में उपयोग.
4. काग़ज़ और कपड़े के थैले को प्रोत्साहन.
5. सभी कार्यक्रमों में होने वाली प्लास्टिक बोतलों, प्लेटों, ग्लास आदि के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध.
6. पत्तों और केले के रेशों से बनने वाली प्लेट, कटोरी, ग्लास आदि बनाने के लिए गृह एवं लघु उद्योग को प्रोत्साहन एवं संरक्षण.
(सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ग्रीनपीस से जुड़े हैं.)
पॉलीथिन बैग्स से घर बना रहा है तरु मित्र
फादर राबर्ट
यह सच है कि प्लास्टिक के निबटारे का कोई उपाय नहीं है, मगर पॉलीथिन नहीं होगा तो दिक्कत हो जायेगी. आज यह सच्चाई है कि हमारे पास प्लास्टिक का विकल्प नहीं है. इसलिए हमें प्लास्टिक के खिलाफ न लड़कर उसके निबटारे के बारे में सोचना होगा. तरुमित्र इसके लिए एक मॉडल विकसित कर रहा है. हमसे जुड़े पर्यावरण प्रेमी शशि दर्शन तरु मित्र परिसर में 30 हजार मिनरल वाटर की बोतलों से एक घर बना रहे हैं.
इन बोतलों में पहले से ढेर सारे पॉलीथिन बैग्स भरे होंगे. इस तरह हम प्लास्टिक की बोतलों और पॉलीथिन बैग्स का एक सकारात्मक उपयोग करने की सोच रहे हैं. हमारा मानना है कि अभी जो पॉलीथिन और बोतलें हैं उन्हें इस तरह इस्तेमाल करें, फिर जब इन्हें नष्ट करने का तरीका विकसित हो जायेगा तो हम इन्हें नष्ट कर देंगे.
शशि दर्शन पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और इन्होंने सबसे पहले पटना में ई-ऑटो का संचालन किया था. फिलहाल इनके अभियान में कई स्कूली बच्चे सहयोग कर रहे हैं.
( फादर रोबर्ट एथिकल पर्यावरण पर काम करने वाली पटना की तरु मित्र संस्था के प्रमुख हैं.)

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