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बिहार में चूहों के शराब गटकने के बाद अब शराबी खा गये 100 करोड़ का खाना

पटना : बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद सरकार के सामने एक नयी समस्या मुंह बाये खड़ी है. अभी एक दिन पहले यह खबर आयी थी कि पुलिस थानों के मालखाने में जब्त करोड़ों रुपये की शराब चूहे गटक गये. अब एक नया मामला सामने आया है, जिसके मुताबिक अवैध शराब तस्करी करने और पीनेकेआरोप […]

पटना : बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद सरकार के सामने एक नयी समस्या मुंह बाये खड़ी है. अभी एक दिन पहले यह खबर आयी थी कि पुलिस थानों के मालखाने में जब्त करोड़ों रुपये की शराब चूहे गटक गये. अब एक नया मामला सामने आया है, जिसके मुताबिक अवैध शराब तस्करी करने और पीनेकेआरोप में जेल में बंद कैदियों ने जेलों में करोड़ों का खाना खाने का काम किया है. जानकारी के मुताबिक शराबबंदी के बाद अवैध तस्कर और शराब पीने वालों की गिरफ्तारी से सूबे के जेलों में कैदियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. इस इजाफे से राज्य सरकार के ऊपर अब कैदियों पर होने वाले खर्च का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है.

पहले होती थी सरकार को आमदनी

जानकारी के मुताबिक पहले शराब की बिक्री सरकार के लिए राजस्व का सबसे प्रमुख श्रोत होती थी, लेकिन बिक्री बंद होने और बिहार में शराब निषेध होने का बाद अब ऐसा नहीं है. शराबबंदी के बाद से हजारों की संख्या में अवैध शराब की बिक्री करनेवालों और सेवन करने वालों की गिरफ्तारियां हुई हैं. यह सभी लोग जेल में बंद हैं. जेल में अब कैदियों के भोजन पर खर्च बढ़ जाने से सरकार को करोड़ों रुपये चुकाने पड़ रहे हैं.

भोजन पर सालाना करोड़ों खर्च

उत्पाद विभाग की साइट पर दी गयी जानकारी की मानें तो शराबबंदी के बाद अबतक कुल 44, 594 लोग गिरफ्तार किये गये, जिनमें से 44 हजार कुछ को जेल भेजा गया. इन कैदियों के जेल जाने से, जेल में कैदियों पर होने वाले खर्च में बढ़ोतरी हो गयी है. मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो राज्य सरकार को कैदियों के सिर्फ भोजन और चिकित्सा पर करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. बताया जा रहा है कि एक महीने में कैदियों के सिर्फ भोजन पर साढ़े सात करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं. पूरे साल का हिसाब किया जाये तो यह आंकड़ा 100 करोड़ के आस-पास पहुंच जायेगा. हालांकि, हाल में बिहार सरकार के उत्पाद मद्य निषेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान ने कहा था कि बिहार में जेलों की क्षमता का विस्तार किया जायेगा. फिलहाल, ऐसा होता दिख नहीं रहा है, लेकिन कैदियों की संख्या बढ़ने से सरकार को अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है.

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