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मोहे बिटिया न कीजो !

एक हिंदुस्तानी होने पर बेशक नाज होना चाहिए, मगर देश में बेटियों की दशा और दिशा देख कर हिंदुस्तान से सवाल करने का मन करता है. ‘मोहे बिटिया न कीजो’, हमारे देश में बेटियों का यह दर्द बार-बार क्यों छलक जाता है? शेल्टर होम, बालिका विद्यालय आदि की सुरक्षित निगहबानी में भी बेटियों के अस्तित्व […]

एक हिंदुस्तानी होने पर बेशक नाज होना चाहिए, मगर देश में बेटियों की दशा और दिशा देख कर हिंदुस्तान से सवाल करने का मन करता है. ‘मोहे बिटिया न कीजो’, हमारे देश में बेटियों का यह दर्द बार-बार क्यों छलक जाता है? शेल्टर होम, बालिका विद्यालय आदि की सुरक्षित निगहबानी में भी बेटियों के अस्तित्व पर हमला किया जाता है.
अमरावती के एक स्कूल में लड़कियों को प्यार-मोहब्बत से दूर रहने की कसमें खानी पड़ती हैं. भुज में एक धार्मिक ट्रस्ट के हॉस्टल में इक्कीसवीं सदी में उड़ान भरती बेटियों को अपमान की आग से गुजरते हुए खुद को ‘पवित्र’ साबित करने की चुनौती मिली है. अग्निपरीक्षा के छालों को दिखाने में बेटियों को अपना ही चेहरा छिपाना पड़े, तो कुदरत की सबसे खूबसूरत सृष्टि होने का भ्रम क्यों न टूटे? कदम-कदम पर अपना अस्तित्व ही डराने लगे, तो देश पर गर्व करने की गुंजाइश पर सवालिया निशान क्यों न लगे?
एमके मिश्रा, रातू, झारखंड

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