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कैसे सुधरेगा पाकिस्तान

अजय साहनी रक्षा विशेषज्ञ delhi@prabhatkhabar.in पाकिस्तान पिछले कुछ दिनों से पाक-अधिकृत कश्मीर (पीओके) में वहां की आम जनता को परेशान कर रहा है. पीओके में इसको लेकर गुस्सा और विरोध शुरू हो गया, तो पाक सेना और पुलिस ने गोलियां और लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. वहां इस वक्त हिंदू क्या, खुद मुसलमान भी सुरक्षित […]

अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ
delhi@prabhatkhabar.in
पाकिस्तान पिछले कुछ दिनों से पाक-अधिकृत कश्मीर (पीओके) में वहां की आम जनता को परेशान कर रहा है. पीओके में इसको लेकर गुस्सा और विरोध शुरू हो गया, तो पाक सेना और पुलिस ने गोलियां और लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. वहां इस वक्त हिंदू क्या, खुद मुसलमान भी सुरक्षित नहीं हैं.
यह कोई नयी बात नहीं है, लेकिन अब ज्यादा हो गया है, इसलिए इसको गहराई से समझने की जरूरत है. पाकिस्तान की शुरू से ही आदत रही है कि उसने पीओके में कभी भी किसी को कोई हक नहीं दिया. आजाद कश्मीर में तो उसने एक प्रकार से जनसांख्यिकीय री-इंजीनियरिंग की है, जिसके चलते वहां कश्मीरी न के बराबर रह गये हैं. वहां अब सिर्फ पंजाबी और पख्तून मिलेंगे.
इन्हीं की आबादियां बसायी गयी हैं. वहां अब कश्मीरियों की बहुत छोटी सी आबादी है, जो आये दिन जुल्म का शिकार होती रहती है.गिलगिट बाल्टिस्तान में भी यही सिलसिला जारी है. लेकिन उसका भौगोलिक क्षेत्र इतना मुश्किल भरा है कि वहां लोग जल्दी जाने को तैयार नहीं होते. उन क्षेत्रों पर सारा अधिकार और शासन इस्लामाबाद से चलता है.
वहां के क्षेत्रीय नेतृत्व को कोई खास अिधकार नहीं है, सारी हुकूमत इस्लामाबाद से चलती है. ऐसे में वहां किसी छोटी से छोटी मांग को लेकर या किसी बड़ी मांग को लेकर जब सरकार के खिलाफ कभी भी कोई आवाज उठाता है, तो उसे पाक सेना और पुलिस कुचल देती हैं और मानवाधिकारों के हनन पर उतर आती हैं.
यही आजकल हो रहा है. अगर कोई वहां यह शिकायत भी कर दे कि शिक्षा-स्वास्थ्य की हालत खराब है, तो उसे पकड़कर बंद कर दिया जाता है. यह सब एक अरसे से चला आ रहा है, इसलिए अभी जो हो रहा है, उसे सुनकर आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद तो पाकिस्तान को बौखलाहट होनी ही थी.
पाकिस्तान की बौखलाहट का एक और पहलू यह भी है कि जब पाकिस्तानी जवान और पुलिस उन विरोध की आवाजों को नहीं रोक पातीं, तो पाक सेना वहां कोई आतंकी घटना को अंजाम दे देती है, जिससे एक खौफ फैल जाता है. जाहिर है, कुछ लोग मर जाते हैं, तो बाकी आबादी सहम जाती है. मजे की बात यह है कि यह सन 48 से ही चला आ रहा है.
इसमें पाक सेना की बहुत बड़ी भूमिका होती है, जो चाहती है कि कोई आवाज न उठाये और न ही कोई सवाल पूछे. विरोध की आवाजों को इसलिए वह दबाती है, ताकि आगे जाकर वह कोई बड़ा खतरा न बन जाये. इसलिए सेना खुद को हर वक्त ताकतवर महसूस करवाती रहती है.
एक अरसे से पाक-अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन होता चला आ रहा है और पाकिस्तान पर कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव भी नहीं रहा है. क्योंकि वह खुद को दुनिया के सामने रख देता है कि वह तो खुद ही आतंकवाद से परेशान है और उससे हर वक्त लड़ रहा है.
अफगानिस्तान में सारा किया-धरा पाकिस्तान का ही है, तालिबान की शुरुआत पाकिस्तान की ही है. लेकिन, दुनिया को कभी अक्ल नहीं आयी इस बात पर सोचने के लिए कि समस्या पाकिस्तान-प्रायोजित है, इसलिए इसका हल पाकिस्तान हो ही नहीं सकता. कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप खुद एक समस्या हैं, तो आप समाधान का वाहक नहीं बन सकते. जब तक दुनिया यह समझती रहेगी कि समस्या का हल पाकिस्तान में ही है, तब तक इसका हल नहीं निकलेगा.
पाकिस्तान समस्या का हल बाहर से दबाव डालने से निकलेगा. पाकिस्तान को पैसे देने से हल नहीं निकलेगा कि वह उस पैसे अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ेगा और आतंकवाद खत्म करेगा. ऐसा संभव ही नहीं है. पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव से ही समस्या का हल निकलेगा.
भारत यह कहता जरूर है कि पाकिस्तान से तभी बात होगी, जब वह आतंकवादी गतिविधियां रोकेगा. लेकिन साथ ही भारत उससे कारोबार भी करता रहा है. आदान-प्रदान और आवागमन बढ़ाने की बात होती है.
इसीलिए भारत ने करतारपुर कॉरीडोर खोल दिया. ऐसे पाकिस्तान नहीं सुधरेगा. भारत को यह करना चाहिए कि उससे व्यापार और आवागमन सब बंद कर दे. इससे भारत को कुछ नुकसान होगा, लेकिन सबसे ज्यादा पाकिस्तान का नुकसान होगा. और जब तक पाकिस्तान पर नुकसान का दबाव नहीं बनेगा, तब तक वह सुधर ही नहीं सकता. पीओके में जिस तरह से लोग आज भारत से मदद मांग रहे हैं, भारत को इस बाबत सोचना चाहिए.
भारत के पास फिलहाल रणनीतियों का अभाव दिख रहा है. पीओके में जो जुल्म ढाया जा रहा है पाकिस्तानी सेना और प्रशासन द्वारा, वह एक अरसे से चले आ रहे दमन का नतीजा है. इसलिए यह मसला सुबह उठकर कोई निर्णय लेनेभर से हल नहीं होना है.
इसके लिए चाहिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और उस इच्छाशक्ति को अमल में लाने के लिए एक बड़ी नीति चाहिए. एक लंबे दौर की रणनीति बनाने की सख्त जरूरत है, तभी आनेवाले समय में हम पीओके के मसले को हल कर पायेंगे. पाकिस्तान जैसा छोटा देश भारत को उसकी ओवर फ्लाइट बंद करने की धमकी दे रहा है, क्या यह विडंबना नहीं है? चाहिए तो यह कि भारत खुद पाकिस्तान की सारी ओवर फ्लाइट बंद कर दे. इससे पाकिस्तान का हमारे मुकाबले चार गुना नुकसान होगा, जिसे बरदाश्त करने के हालात में पाकिस्तान नहीं है.
जब तक यह रणनीति नहीं बनेगी कि पाकिस्तान का हर तरीके से नुकसान करना है, तब तक उसे सुधारना मुश्किल है. यह एक लंबे समय की रणनीति से ही संभव हो पायेगा. इसके लिए बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है, जो भारत के नेताओं में नहीं दिखती है.
भारत को इस वक्त बड़ी रणनीति बनानी चाहिए. ट्रेड, टेक्नोलॉजी, ट्रैवेल, गवर्नेंस, इंटर्नल डिसअॉर्डर, यानी हर चीज में पाकिस्तान को नुकसान पहुंचाने की रणनीति पर काम करना चाहिए. सिर्फ पाकिस्तान को भला-बुरा कहने से कुछ हासिल नहीं होनेवाला है. किसी देश के खिलाफ सख्त फैसला लेने का अर्थ यह नहीं है कि हम उस पर परमाणु बम गिरा दें.
इससे तो कुछ भी हासिल नहीं होगा. सख्त फैसले का अर्थ है कि उससे हर तरह के रिश्ते, आना-जाना, आदान-प्रदान और व्यापार सब बंद कर दिये जायें, ताकि वह गिड़गिड़ाने के लिए मजबूर हो जाये. इसी दबाव से पाकिस्तान सुधरेगा. पीओके के मसले को हल करने के लिए भी हमें ऐसी ही रणनीति अपनाने की जरूरत है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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