जिले के लोगों के स्वास्थ की चिंता न तो जनप्रतिनिधि को न ही जिला प्रशासन को है
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लोहरदगा सदर अस्पताल बदहाली पर बहा रहा है आंसू
जिले के लोगों के स्वास्थ की चिंता न तो जनप्रतिनिधि को न ही जिला प्रशासन को है लोहरदगा : लोहरदगा जिला का सदर अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है. यह अस्पताल रेफर अस्पताल बन कर रह गया है. चाहे कोई छोटी बीमारी हो या छोटी दुर्घटना यहां से मरीज को तत्काल रिम्स […]
लोहरदगा : लोहरदगा जिला का सदर अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है. यह अस्पताल रेफर अस्पताल बन कर रह गया है. चाहे कोई छोटी बीमारी हो या छोटी दुर्घटना यहां से मरीज को तत्काल रिम्स रेफर कर दिया जाता है. कहने को तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े-बड़े काम के दावे किये जाते हैं.
लेकिन लोहरदगा में स्वास्थ्य विभाग की धरातल पर सच्चाई किसी से छुपी नहीं है. स्वस्थ लोहरदगा, समृद्ध लोहरदगा के नाम पर वोट तो मांगे जा रहे हैं. लेकिन शायद वोट मांगनेवाले को भी पता नहीं है कि लोहरदगा सदर अस्पताल में चिकित्सकों के कुल स्वीकृत 82 पद हैं. इसके विरुद्ध मात्र 36 चिकित्सक कार्यरत हैं.
इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां की व्यवस्था कैसी होगी. यहां नियमित और अनुबंध पर कर्मियों की कमी है. एएनएम का स्वीकृत पद 209 है. इसमें 140 कार्यरत हैं. लैब टेक्निशियन का स्वीकृत पद 20 है इसमें 12 कार्यरत हैं. फार्मासिस्ट का स्वीकृत पद 18 है इसमें मात्र पांच कार्यरत हैं.
शल्य कक्ष सहायक का स्वीकृत पद दो है जिसमें दोनों पद रिक्त है. स्टाफ नर्स का स्वीकृत पद 51 है जिसके विरुद्ध 23 कार्यरत हैं. ड्रेसर का स्वीकृत पद नौ है जिसमें दो कार्यरत हैं. एक्स-रे टेक्निशियन का स्वीकृत पद छह है जिसमें दो कार्यरत हैं. इसीजी टेक्निशियन का स्वीकृत पद एक है यह पद खाली है. डेंटल टेक्निशियन का एक स्वीकृत पद के विरुद्ध कार्यरत कर्मी नहीं है. फिजियो थेरेपिस्ट का स्वीकृत पद दो है जिसमें एक कार्यरत हैं. सदर अस्पताल में औसतन प्रतिदिन 300 मरीज आउट डोर में आते हैं. यहां दवाइयों की भी भारी कमी है. सदर अस्पताल में न तो इसीजी होता है और न ही यहां अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था है.
अल्ट्रासाउंड का मशीन लाखों रुपये की लागत से खरीदा तो गया लेकिन निजी क्लिनिकों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इसे बंद कर दिया गया. इससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस संबंध में पूछने पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अल्ट्रासाउंड के विशेषज्ञ यहां नहीं हैं. एक चिकित्सक है जिनकी प्रतिनियुक्ति नगजुआ में है. वे कभी- कभार आते हैं. व्यवस्था के नाम पर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें होती है. यहां विभिन्न मद से दर्जनों एंबुलेंस उपलब्ध कराये गये हैं लेकिन सभी खुले आसमान के नीचे रखेजाते हैं.
जनप्रतिनिधि इस ओर कभी भी ईमानदारी पूर्वक ध्यान नहीं दिये. भंडरा निवासी मुकेश गुप्ता का कहना है कि सदर अस्पताल की व्यवस्था ठीक रहती तो इस जिले के लोगों काे काफी सुविधा होती. लेकिन न तो यहां के अधिकारी और न ही जनप्रतिनिधि ही जनता की समस्याओं को लेकर कभी गंभीर रहे. पतरा टोली निवासी संजय टोप्पो का कहना है कि जिले में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर लोगों को छला जा रहा है.
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