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घर भारत में, खेती कर रहे नेपाल में; ऐसे में नहीं मिल रहा आवास योजना का लाभ

गलगलिया : ठाकुरगंज प्रखंड स्थित सीमावर्ती पंचायत भातगांव में आदिवासियों का ऐसा भी एक गांव है जिसके बाशिंदे आज तक इस बात से अंजान हैं कि उनका गांव भारत में है अथवा नेपाल में. गलगलिया थाना क्षेत्र के नेंगड़ाडूबा के समीप भारत-नेपाल सीमा पर मसूद नगर गांव में बसे बीस परिवारों के लोग आज भी […]

गलगलिया : ठाकुरगंज प्रखंड स्थित सीमावर्ती पंचायत भातगांव में आदिवासियों का ऐसा भी एक गांव है जिसके बाशिंदे आज तक इस बात से अंजान हैं कि उनका गांव भारत में है अथवा नेपाल में.

गलगलिया थाना क्षेत्र के नेंगड़ाडूबा के समीप भारत-नेपाल सीमा पर मसूद नगर गांव में बसे बीस परिवारों के लोग आज भी इसी उम्मीद में जीवन गुजार रहे हैं कि बिहार सरकार उनके लिए जमीन का बंदोबस्त करेगी. इस गांव को लेकर आस-पास के इलाकों में चर्चा है कि यह गांव नेपाल में पड़ता है, तो कुछ लोग कहते हैं कि ये पहले भारत में था.
बिहार सरकार की जमीन समझकर आदिवासियों ने घर बनाया था. उस वक्त उन्हें ये पता नहीं था कि जिस जमीन पर वो घर बना रहे हैं उसी जमीन को आने वाले दिनों में नेपाल अपनी जमीन होने का दावा करेगा. अपनी जमीन पर अपना झोपड़ी बनाकर गांववासी काफी खुश थे.
चुनाव के समय मतदान केंद्र नहीं जाने दिया जाता इन्हें
बात चीत से पता चला कि सभी का भारत की मतदाता सूची में नाम वर्षों से हैं और कुछ लोग नेपाल से भी नागरिकता प्राप्त किये हुए हैं. यहां तक कि अब बिहार के किसी चुनाव में वोट डालने के लिए मतदान केंद्र जाते हैं तो इन्हें सीमा पर तैनात एसएसबी सीमा सील कहकर रोक देती है.
जिससे की इन लोगों को मतदान करने में भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.अधिकारियों के द्वारा बीच हस्तक्षेप के बाद ये लोग अपने मत के अधिकारों को प्राप्त कर सकते है.
बिहार सरकार की जमीन बता कर दिया था बसने को
ग्रामीणों से जानकारी मिली कि आज से 40 वर्ष पूर्व गोरसिनभिट्ठा निवासी मो फजलुद्दीन ने उक्त गांव की 52 डिसमिल जमीन को बिहार सरकार की जमीन बता कर आदिवासियों को बसने के लिए दे दिया था.
जिसका खाता नं-687 एवं खेसरा नं-2520 जो सीमा के पिलर सं-105 के अंदर स्थित है. तीस वर्ष यहां रहने के दौरान इनका बीपीएल कार्ड भी बना और वर्षों से ये हर चुनाव में मतदान भी करते आ रहे हैं.
इंदिरा आवास निर्माण पर रोक लगाकर नेपाल प्रशासन ने किया दावा जब वर्ष 2002 में सरकार द्वारा इन्हें इंदिरा आवास योजना के तहत उक्त जमीन पर पक्का मकान मिला तब गांववासियों को काफी खुशी हुई थी.
मगर इनकी खुशी तब काफूर हो गयी. जब इन्होंने पक्का मकान की नींव डालनी शुरू की और नींव पड़ते ही नेपाल प्रशासन द्वारा घर के निर्माण पर यह कहकर रोक लगा दिया गया, कि यह भूमि नेपाल सीमा के भीतर पड़ती है. नेपाल द्वारा नया सीमा पिलर बनाकर गांव को अपने अंदर कर लिया गया.
तमाम सरकारी लाभ से वंचित हैं आदिवासी परिवार अब सवाल ये है कि यदि यह जमीन नेपाल की है तो इस पर इंदिरा आवास का लाभ कैसे मिले. यह जांच का विषय है
. कोई कहता है यह जमीन भारत में है तो कोई कहता नेपाल में है. वर्तमान में आदिवासी परिवार सरकार के तमाम सरकारी लाभ से वंचित हैं. हालांकि गांव वासियों को नेपाल सरकार द्वारा बिजली मुहैया कराया गया है. मगर न इन्हें सड़क नसीब हुई और न ही पक्का मकान.

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