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प्रशिक्षण पा रहे छह सौ, रोजगार के लिए ऋण पायेंगे बारह लोग

खगड़िया : हुनर सीख लिया पर इसे बिखेरने का अवसर युवाओं को नहीं मिल रहा. आर्थिक तंगी प्रशिक्षण के बाद युवाओं को उड़ान भरने नहीं दे रही. इनकी मदद के लिए बैंक भी आगे नहीं आ रही. नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि प्रशिक्षण पाने के पूर्व भी ये लोग बेरोजगार थे. और […]

खगड़िया : हुनर सीख लिया पर इसे बिखेरने का अवसर युवाओं को नहीं मिल रहा. आर्थिक तंगी प्रशिक्षण के बाद युवाओं को उड़ान भरने नहीं दे रही. इनकी मदद के लिए बैंक भी आगे नहीं आ रही. नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि प्रशिक्षण पाने के पूर्व भी ये लोग बेरोजगार थे.

और अब प्रशिक्षण पाने के बाद भी ये बेरोजगार ही है. कारण इन्हें अपना रोजगार करने के पूंजी नहीं है. डीआरडीए अवस्थित रूढ़ सेठी प्रशिक्षण भवन में आये दिन लोग ऋण दिलाने की मांग के साथ आते है. लेकिन यहां से इन्हें खाली हाथ लौटना पड़ जाता है.
यहां इसलिए ये लोग ऋण दिलाने की फरियाद के साथ आते है क्योंकि आत्मनिर्भर बनने के लिए ये यहीं से ट्रेनिंग यानी हुनर सीखे थे. ट्रेनिंग के दौरान इन्हें यह भी बताया गया था कि हुनर सीखने के बाद वे रोजगार कर आत्मनिर्भर बन सकेंगे. उन्हें खुद रोजगार तो मिलेगा ही अगर कारोबार बढ़ा तो वे दूसरों को भी रोजगार बांट सकेंगे.
ट्रेनिंग के बाद इन्हें रोजगार करने के लिए बैंकों से ऋण मिलने का भी इन्हें भरोसा दिलाया गया था. प्रशिक्षण के दौरान रोजगार के देखे गये सपने इनके चूर हो रहें है, वो इसलिए क्योंकि बैंकों से ट्रेनिंग लेने वालों को ऋण नहीं मिल पा रहा है. स्थिति यह बन गयी है कि पहले भी ये बेरोजगार थे. और हुनर सीखने के बाद भी ये बेरोजगार ही रह गए.
प्रशिक्षण भवन में उपलब्ध डाटा हैरान व परेशान करने वाली है. जानकारी के मुताबिक वर्ष 2009 से रूढ़ सेठी प्रशिक्षण भवन में लोगों को अलग-अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं. ताकि हुनर सीख कर ये अपना खुद का रोजगार कर सके. आंकड़े के मुताबिक प्रत्येक साल यहां से करीब छह सौ लोग अलग-अलग क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, जबकि स्व-रोजगार के लिये बैंकों से लोन चंद लोगों को ही मिल पाता है.
बताया जाता है कि बीते 9 सालों में 190 बैच में शामिल करीब 56-57 सौ प्रशिक्षणार्थियों को अगरबत्ती निर्माण, मोबाइल रिपेयरिंग, सर्फ, साबुन निर्माण, डेयरी/पशुपालन, मुर्गी, बकरी पालन, ब्यूटीशियन सहित करीब एक दर्जन क्षेत्रों की जानकारी देकर प्रशिक्षित किया गया है. लेकिन जानकार बताते हैं कि ट्रेनिंग के बाद इसमें से बड़ी संख्या में लोग अब भी बेरोजगार है. आर्थिक तंगी इन्हें रोजगार करने से रोक रही है. बैंक ऋण नहीं दे रही. ये अपनी व्यथा सुनाने आये दिन ट्रेनिंग भवन आ रहें है.
बार-बार लिख रहे पत्र, नहीं सुन रहा बैंक-निदेशक
रुढ़ सेठी प्रशिक्षण भवन के निदेशक विजय कुमार पाल ने कहा कि स्थिति चिंतनीय है. अगर बैंक रोजगार के लिए ऋण नहीं देगी तो ट्रेनिंग का क्या औचित्य रह जा. ऐसे में तो पूरी योजना ही विफल हो जायेगी. यह सही है कि ऋण नहीं मिलने की शिकायत करने लोग प्रतिदिन उनके पास आ रहें है. इन शिकायत से अब वे परेशान है. बैंकों को कई बार कहा गया है.
प्रत्येक डीएलसीसी एवं बीएलसीसी की बैठक में वे ट्रेनिंग लेने वालों को ऋण देने का मुद्दा उठाते रहे है. लेकिन इसमें सुधार नहीं हो रहा है. उनके पास यह सूचना है कि बैंक चंद लोगो को ही ट्रेनिंग के बाद ऋण दिया है. अगर यही स्थिति रही तो लोग प्रशिक्षण लेने ही नहीं आयेंगे. अगले डीएलसीसी की बैठक में भी वे प्रशिक्षणार्थियों के ऋण का मुद्दा उठायेंगे.
खर्च पर फिर रहा पानी
यहां यह बताना जरूरी है कि प्रतिवर्ष बेरोजगारों को प्रशिक्षित करने में जिले के लीड बैंक यानी यूनियन बैंक के लाखों रुपये खर्च हो जाते है. लेकिन प्रशिक्षण के बाद भी बेरोजगारी की स्थिति बनी रहना प्रशिक्षण के उद्देश्य एवं पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रहें है. जानकारी के मुताबिक 30 दिवसीय ट्रेनिंग दिलाने में करीब 90 हजार तथा दस दिनों की ट्रेनिंग में 30 हजार रुपये खर्च होते है.
ये खर्च सिर्फ प्रशिक्षणार्थियों पर होते है. अगर कुल खर्च को जोड़ा जाए तो ये बजट प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक का बन जाता है. इस बिल में बिजली, पानी, टेलीफोन, निदेशक से लेकर कर्मियों के वेतन भी शामिल है. ट्रेनिंग के बाद भी बेरोजगारी का बना रहना लाखों खर्च पर पानी फेर रहा है.

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