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दिवाला कानून के नये प्रावधानों से बैंकों का बढ़ सकता है नुकसान, जानिये कैसे…?

मुंबई : दिवाला संहिता के तहत निपटान की प्रक्रिया से गुजर रही इस्पात कंपनियों की संपत्तियों के लिए उनके प्रमोटर्स बोली लगाने की इच्छा रखते हैं, लेकिन कानून में संशोधन के बाद अब वे ऐसा नहीं कर पायेंगे. कानून में किये गये बदलाव से बैंकों को प्राप्त होने वाली राशि का नुकसान बढ़ सकता है. […]

मुंबई : दिवाला संहिता के तहत निपटान की प्रक्रिया से गुजर रही इस्पात कंपनियों की संपत्तियों के लिए उनके प्रमोटर्स बोली लगाने की इच्छा रखते हैं, लेकिन कानून में संशोधन के बाद अब वे ऐसा नहीं कर पायेंगे. कानून में किये गये बदलाव से बैंकों को प्राप्त होने वाली राशि का नुकसान बढ़ सकता है.

घरेलू ब्रोकरेज कंपनी कोटक सिक्योरिटीज ने रिपोर्ट में कहा है कि ज्यादातर बड़ी इस्पात कंपनियों के प्रमोटर्स कंपनी पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहते हैं और इस बात को ध्यान में रखते हुए वह निपटान प्रक्रिया के दौरान सबसे प्रतिस्पर्धी बोली लगाते, लेकिन कानून में संशोधन के बाद अब वह बोली प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे. सरकार ने एक दिन पहले ही ऐसा अध्यादेश जारी किया है, जिसमें दिवाला एवं बैंकिंग संहिता (आईबीसी) के तहत एक साल से अधिक से ऋण चूक करने वाली कंपनियों के प्रवर्तकों पर बैंकों द्वारा बेची जानी वाली संपत्तियों के लिए बोली लगाने पर रोक लग गयी है.

इसे भी पढ़ेंः दिवाला कानून संशोधन अध्यादेश जारी, कर्ज में फंसी संपत्ति की नीलामी में हिस्सा नहीं ले सकेंगे डिफॉल्टर

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमोटर्स के न होने से प्रतिस्पर्धा घटेगी, जिससे वसूली प्रक्रिया में बैंकों का नुकसान अधिक होगा. इसमें यह भी कहा गया है कि इस्पात कंपनियों के प्रवर्तक बोली लगाने के इच्छुक थे, लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पायेंगे. अध्यादेश जारी होने के दिन भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कर्ज में फंसी राशि की वसूली प्रक्रिया में कुछ नुकसान झेलना पड़े यानी हल्की-फुल्की कटौती हो.

उन्होंने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि पूरी तरह से ही सफाई हो जाये. हालांकि, उन्होंने संशोधित कानून का बचाव करते हुए कहा कि प्रवर्तकों के बोली नहीं लगाने से फंसी संपत्तियों के मूल्यांकन पर असर नहीं पड़ेगा.

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