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”Fake News के झांसे में किशोर और 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के आने का ज्यादा खतरा”

नयी दिल्ली : दुनियाभर में फर्जी खबरों (फेक न्यूज) के प्रसार की बढ़ती चुनौती के बीच एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 20 साल से कम उम्र एवं 50 साल से अधिक उम्र वाले लोगों के ऐसी खबरों के झांसे में आने की आशंका अधिक होती है. फैकटली और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ […]

नयी दिल्ली : दुनियाभर में फर्जी खबरों (फेक न्यूज) के प्रसार की बढ़ती चुनौती के बीच एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 20 साल से कम उम्र एवं 50 साल से अधिक उम्र वाले लोगों के ऐसी खबरों के झांसे में आने की आशंका अधिक होती है. फैकटली और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की ओर से गुरुवार को जारी ‘काउंटरिंग मिसइन्फॉर्मेशन (फेक न्यूज) इन इंडिया’ शीर्षक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक बड़ा तबका इस बात से अनभिज्ञ है कि किन संगठनों के जरिये तथ्यों की विश्वसनीयता एवं खबरों के पुष्टिकरण में विभिन्न एजेंसियों की भूमिका को किस प्रकार परखा जा सकता है.

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इस अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं को 11 बयान दिये गये और उन्हें इस बात की पहचान करने को कहा गया कि वे बयान सत्य हैं या असत्य. 21-30, 31-40 और 41-50 वर्ष आयु वर्ग के 75 फीसदी से अधिक उत्तरदाताओं ने इन बयानों के सही-गलत होने की पहचान एकदम ठीक ढंग से की. हालांकि, 15-20 साल आयु वर्ग के केवल 60.6 फीसदी और 50 साल से अधिक उम्र के 66.7 फीसदी उत्तरदाता ही ऐसा कर पाये.

यह रिपोर्ट 891 लोगों पर किये गये सर्वे पर आधारित है. इस अध्ययन में प्रौद्योगिकी एवं इंटरनेट सेवा प्रदाताओं, सरकारी अधिकारियों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, मीडिया और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों को शामिल किया गया था. इस अध्ययन के मुताबिक, 34 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे विश्वसनीय संगठनों द्वारा भेजी गयी जानकारियों पर यकीन कर लेते हैं. वहीं, 14 फीसदी लोगों का मानना है कि किसी विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा भेजे जाने पर वे जानकारी को सही मान लेते हैं.

उत्तरदाताओं से पूछा गया कि वे सोशल मीडिया पर विभिन्न तरह की सूचना को अग्रसरित क्यों करते हैं, तो 48.5 फीसदी का मानना था कि इससे अन्य लोगों को फायदा मिल सकता है. वहीं, 19.4 फीसदी लोगों की राय थी कि मुख्यधारा की मीडिया पक्षपाती है और एक खास तरह की खबर को कवर नहीं करती है.

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