नयी दिल्ली: कई विधि विश्वविद्यालयों, मनोवैज्ञानिक संस्थानों के शोध और अंतरराष्ट्रीय फैसलों ने दो वयस्कों के बीच आपसी रजामंदी से स्थापित होने वाले समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाने में सुप्रीम कोर्ट की मदद की.
उच्चतम न्यायालय के फैसले में जिन कुछ विश्वविद्यालयों के शोध पत्रों का उल्लेख है, उसमें नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ जूरिडिकल साइंसेज (एनयूजेएस) और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) शामिल हैं.
आपसी रजामंदी से दो वयस्कों के बीच स्थापित होने वाले समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाले ब्रिटिशकालीन कानून को निरस्त करने के दौरान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, फिलीपींस गणराज्य की संवैधानिक अदालतों और यूरोपीय मानवाधिकार अदालत द्वारा सुनायेगये इसी तरह के फैसले को उद्धृत किया.
चीफ जस्टिस श्री मिश्रा ने गौर किया कि ओबर्जफेल बनाम हॉजेज, निदेशक, ओहायो स्वास्थ्य विभाग मामले में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों की दुर्दशा को उजागर किया और कहा था कि संविधान समलैंगिकों को अपनी पसंद का अधिकार देता है.
चीफ जस्टिस द्वारा समलैंगिकता मामले पर लिखे गये फैसले में अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के वर्ष 2008 के अध्ययन का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कई दशकों के शोध में दर्शाया गया है कि यौन झुकाव सतत चलता रहता है. इसमें विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण से लेकर समान लिंग के प्रति विशेष आकर्षण शामिल है.
जेजीयू के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल (जेजीएलएस) के चार संकाय सदस्यों के शोध कार्यों का भी शीर्ष अदालत के फैसले में हवाला दिया गया है. शीर्ष अदालत के फैसले में रेयान गुडमैन के एक अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ‘बियांड इन्फोर्समेंट प्रिंसिपल : सोडोमी लॉज, सोशल नॉर्म्स एंड सोशल पैनॉप्टिक्स’ का भी हवाला दिया गया है.
इसे कैलिफोर्निया लॉ रिव्यू ने प्रकाशित किया था. इसमें कहा गया था कि जनता समलैंगिकों के दिखने को लेकर संवेदनशील है और निजी व्यक्ति भी पुलिस की भूमिका अदा करते हैं.