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क्या अलग रह रहे पति-पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने का दिया जा सकता है आदेश, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विवाह संबंधी कानूनों में अदालतों को अलग रह रहे पति-पत्नी से ‘‘यौन संबंध बनाने’ के लिए कहने की शक्ति देने संबंधी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया. याचिका में कहा गया कि ये कानून महिलाओं […]


नयी दिल्ली :
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विवाह संबंधी कानूनों में अदालतों को अलग रह रहे पति-पत्नी से ‘‘यौन संबंध बनाने’ के लिए कहने की शक्ति देने संबंधी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया. याचिका में कहा गया कि ये कानून महिलाओं के साथ ‘‘गुलाम’ की तरह व्यवहार करते हैं और ये निजता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

गांधीनगर के गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्रों ओजस्व पाठक और मयंक गुप्ता ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा नौ, विशेष विवाह अधिनियम की धारा 22 और दीवानी प्रक्रिया संहिता के कुछ खास प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है. ये प्रावधान अदालत को अलग रह रहे पति पत्नी के वैवाहिक अधिकारों को बहाल करने का आदेश पारित करने की शक्ति देते हैं.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने छात्रों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद कहा, ‘‘इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के सामने अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए.’ याचिका में उन नौ फैसलों का जिक्र किया गया जिनमें निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है. इसमें कहा गया कि इन कानूनों के प्रावधान ज्यादातर अनिच्छुक महिलाओं को उनसे अलग रह रहे पतियों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं.

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