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जश्ने आजादी के मौके पर जानें महिलाओं को अबतक क्या मिले अधिकार…

-रजनीश आनंद- आज जबकि हम आजादी का जश्न मना रहा हैं, यह विचारणीय है कि 72 साल बाद महिलाओं की सामाजिक स्थिति में क्या परिवर्तन आये और उन्हें किस-किस तरह के अधिकार मिले. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजादी के बाद महिलाओं की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और कानून ने उन्हें अधिकारों […]

-रजनीश आनंद-

आज जबकि हम आजादी का जश्न मना रहा हैं, यह विचारणीय है कि 72 साल बाद महिलाओं की सामाजिक स्थिति में क्या परिवर्तन आये और उन्हें किस-किस तरह के अधिकार मिले. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजादी के बाद महिलाओं की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और कानून ने उन्हें अधिकारों से परिपूर्ण किया. भारतीय संविधान ने लिंग आधारित किसी भी भेदभाव को खारिज किया है और महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए अधिकार मुहैया कराये हैं. जश्ने आजादी के इस मौके पर हम बात कर रहे हैं उन अधिकारों की, जिन्होंने भारतीय महिलाओं को सशक्त किया और उनकी आजादी में मील का पत्थर साबित हुए.

संविधान में मिला समानता और स्वतंत्रता का अधिकार
आजादी के बाद जब भारतीय संविधान लागू हुआ तो संविधान निर्माताओं ने महिला और पुरुष के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया और उन्हें कानून के समक्ष समान अधिकार दिये गये. संविधान ने लिंग आधारित भेदभाव को बिलकुल खारिज कर दिया और स्त्री-पुरुष को एक समान अधिकार दिया. संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है तो अनुच्छेद 15 किसी भी भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.

हिंदू मैरिज एक्ट 1955
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 ने भारतीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति में अभूतपूर्व बदलाव किये और विवाह के नाम पर उनके साथ जो अन्याय हो रहा था उसे रोकने की पहल की. 1955 में आये इस बड़े बदलाव की नींव हिंदू कोड बिल के रूप में बाबा साहेब अंबेदकर ने रखी थी. महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए वे हिंदू कोड बिल लेकर आये थे जिसका कांग्रेस पार्टी सहित आरएसएस ने भी विरोध किया था, जिसके बाद अंतत: बाबा साहब ने इस्तीफा दे दिया. हालांकि बाद में उसी कोड बिल को आधार बनाकर संसद ने हिंदू मैरिज एक्ट 1955 को पारित किया. इस एक्ट में निम्न प्रावधान किये गये-
1.अब हर हिंदू स्त्री- पुरुष दूसरे हिंदू स्त्री-पुरुष से विवाह कर सकता है, चाहे वह किसी जाति का हो.
2. इस एक्ट के तहत एक विवाह का सिद्धांत लागू किया गया और एक से अधिक विवाह को दंडनीय बना दिया गया.
3. शादी अब सात जन्मों के साथ का मसला नहीं रहा, तलाक की व्यवस्था कर दी गयी.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने महिलाओं को परिवार की संपत्ति की विरासत में समान अधिकार दिया. यह कानून हिंदू कानून के इतिहास में ऐतिहासिक है. इसके अतिरिक्त कुछ अन्य एक्ट भी आये जिन्होंने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को बदल दिया, जिसमें हिंदू एडॉप्शन और मैनटेनेशन एक्ट एवं हिंदू मायनॉरिटी और गार्डियनशिप एक्ट 1956 भी शामिल है. जिसके जरिये महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार मिला साथ ही एक महिला को यह अधिकार भी मिला कि वह अपने नाबालिग बच्चे की अभिभावक हो सकती है. यह कुछ ऐसे अधिकार थे, जिन्होंने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को बिलकुल बदल कर रख दिया.


दहेज प्रथा निषेध अधिनियम 1961

जब दहेज प्रथा ने समाज को अपनी गिरफ्त में ले लिया और कई लड़कियां इसकी बलि चढ़ गयीं, तब यह अधिनियम अस्तित्व में आया. इस अधिनियम के अनुसार दहेज लेना और उसकी मांग करना आपराधिक होगा और उसके लिए जेल भी हो सकती है. इस अधिनियम के तहत गैरजमानती वारंट इश्यू होता है.

ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘ट्रिपल तलाक’ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और सरकार से यह कहा था कि वह इसके खिलाफ कानून बनाये. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस ‘ट्रिपल तलाक’ को आपराधिक बनाने के लिए जो कानून लाया वह तीसरी बार में संसद से पास हो पाया और अब मुस्लिम महिलाएं इस डर से बाहर हैं कि उन्हें उनका पति जरा सी बात पर ट्रिपल तलाक दे सकता है.

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