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दुनिया की नजरों में कुंभ मेला

प्रो सतीश कुमार सेंट्रल यूनवर्सिटी ऑफ हरियाणा singhsatis@gmail.com साल 1895 में कुंभ मेला को देखने आये प्रसिद्ध अमेरिकी कहानीकार मार्क ट्वेन ने कहा था कि कुंभ अद्भुत संगम है. लोगों के विश्वास और भारत की एक अलग पहचान का, जिसे संभवतः गोरी चमड़ी के लोग भौतिकवादी नजरिये से नहीं समझ पायेंगे. साल 2019 का कुंभ […]

प्रो सतीश कुमार

सेंट्रल यूनवर्सिटी ऑफ हरियाणा

singhsatis@gmail.com

साल 1895 में कुंभ मेला को देखने आये प्रसिद्ध अमेरिकी कहानीकार मार्क ट्वेन ने कहा था कि कुंभ अद्भुत संगम है. लोगों के विश्वास और भारत की एक अलग पहचान का, जिसे संभवतः गोरी चमड़ी के लोग भौतिकवादी नजरिये से नहीं समझ पायेंगे. साल 2019 का कुंभ मेला कई मायनों में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को एक धर्म गुरु के रूप में स्थापित करने में सार्थक होगा.

इसमें आध्यात्मिकता के साथ नयी आधुनिक सोच को भी विकसित किया गया है. पचास दिनों तक आयोजित कुंभ में 3200 हेक्टेयर में 12 से 15 करोड़ लोग आकर डुबकी लगायेंगे. भारत के संदर्भ में दुनिया में कई भ्रम फैलाने की कोशिश की जाती रही है कि हिंदू अनुष्ठानों में बड़े पैमाने पर गंदगी फैली होती है.

यह धर्म जातियों और कुनबों में बंटा हुआ है, यहां पर सामाजिक और लैंगिक समानता जैसी कोई सुध-बुध नहीं है, सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है. संभवतः 2019 का कुंभ इन सारी गलतफमियों को दूर करने का प्रयास करेगा. तकरीबन 105 देशों से दो लाख से ज्यादा विदेशी श्रद्धालु इस महाकुंभ को देखने भारत आ रहे हैं. इस महान गौरवशाली परंपरा को कलमबद्ध करने की योजना भी सरकार के द्वारा बनायी गयी है. केंद्र और राज्य की सरकारें कुंभ मेला के आयोजन के माध्यम से भारत के धार्मिक धरोहर को स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं. भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुष्ठान (आइसीएसएसआर) के सदस्य सचिव प्रो वीके मल्होत्रा का मानना है कि इस अद्भुत आध्यात्मिक आयोजन का अकादमिक विश्लेषण विभिन्न मानकों पर होना आवश्यक है, दुनिया के सामने विकसित भारत की पहचान को शोध द्वारा स्थापित करना भी इस संगठन की सोच है. प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला दुनियाभर के लोगों के आकर्षण

का केंद्र बना हुआ है. विश्व के अलग-अलग हिस्साें से लोग पहुंच रहे हैं. कुंभ मेले में साधु-संत भी बड़ी संख्या में आते हैं और वे अपनी एक अलग पहचान प्रस्तुत करते हुए आकर्षण का केंद्र भी होते हैं. भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक रीति-रिवाज को जानने-समझने का यह बेहतरीन मौका होता है. यह अवसर भारत की समृद्धशाली धार्मिक एकता का प्रतीक भी है. शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी संघों का गठन किया था. बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कालांतर में संन्यासियों के सबसे बड़े संघ जूना अखाड़े में संन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र-अस्त्र में पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान कि या गया.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, ग्रहों का शुभाशुभ फल मनुष्य के जीवन पर पड़ता है. बृहस्पति जब विभिन्न ग्रहों के अशुभ फलों को नष्ट कर पृथ्वी पर शुभ प्रभाव का विस्ता र करने में समर्थ हो जाते हैं, तब उक्त शुभ स्थानों पर अमृतप्रद कुंभयोग अनुष्ठानित होता है.

अनादि काल से इस कुंभयोग को आर्यों ने सर्वश्रेष्ठ साक्षात मुक्तिपद की संज्ञा दी है. इन कुंभयोगों में उक्त पुण्य तीर्थ स्थानों में जाकर दर्शन तथा स्नान करने पर मानव मनोभाव से पवित्र, निष्पाप और मुक्तिभागी होता है- इस बात का उल्लेख पुराणों में है. यही कारण है कि धर्मप्राण मुक्तिकामी नर-नारी कुंभयोग और कुंभ मेले के प्रति इतने उत्साहित रहते हैं.

वर्ष 2015 में योग को स्थापित कर भारत ने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक

कूटनीतिक पहल करने में सफल रहा. चीन पिछले कई वर्षों से धर्म से आध्यात्मिक अंश को निचोड़कर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश में है, जहां पर कलह के सिवा और कुछ नहीं है. कारण कि चीन की 60 फीसदी आबादी नास्तिक है और धर्म में उनका विश्वास नहीं है.

इसलिए बौद्ध धर्म का महासम्मेलन आयोजित कर चीन अपने सैनिक फन को फैलाना चाहता है. शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों ने भी मानव समाज के लिए अनेक मुसीबतें पैदा कीं. जातीय युद्ध और एक दूसरे से अलग की पहचान सिद्धांत को बढ़ावा दिया जाता रहा.रंग, भाषा और क्षेत्र के आधार पर समाज बंटा हुआ है. फिर सैमुएल हंटिंग्टन ने धर्म और सभ्यता के आधार पर दुनिया को बांटने का नया सिद्धांत दे डाला. ऐसे बंटे हुए माहौल में भारत की आध्यात्मिक प्रेरणा ही दुनिया को एक कड़ी में जोड़ सकती है.

इस जोड़ को कारगर बनाने में इस कुंभ मेला का महत्वपूर्ण योगदान होगा. यह एक होने की प्रवृत्ति है, जहां पर हर अंतर पवित्र डुबकी के साथ छू-मंतर हो जाता है.

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में सांस्कृतिक कूटनीति ने भारत की जकड़न को तोड़ने का सार्थक प्रयास किया है. दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी लहू-लुहान है. अगर 21 शताब्दी में चीन के फार्मूले की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनती है, तो वह और ही कष्ट दायक होगी.

पिछले दिनों अमेरिका की पेंटागन रिपोर्ट में यह कहा गया कि चीन की ‘वन बेल्ट रोड’ परियोजना दुनिया को जोड़ने के बजाय तोड़ने की कोशिश करेगी, जबकि भारत की प्रेरणा दुनिया को एक आयाम में बांधने की होगी. इसलिए कुंभ के आध्यात्मिक और इससे जुड़ी हुई ब्रह्मांडीय शक्तियों का प्रचार दुनिया में आवश्यक है.

भारत को धर्म गुरु बनाने का रास्ता भी यही है. महज आर्थिक और सैनिक सजावट के जरिये उस मुकाम पर नहीं पहुंचा जा सकता है. पिछले सात दशकों में हम पश्चिमी सिद्धांतों पर चल कर अपनी पहचान को धूमिल करते रहे हैं. आज अगर प्रारंभ हुआ है, तो इसका प्रचार भी जरूरी है.

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