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वृद्धि धीमी, मगर मंदी नहीं

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं समेत कई संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती पर चिंता व्यक्त की जा रही है.बीते दिनों इस संदर्भ में दो विरोधी बयान आये. एक ओर लोगों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मंदी आ गयी है. वे इस संदर्भ […]

डॉ अश्वनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediffmail.com

पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं समेत कई संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती पर चिंता व्यक्त की जा रही है.बीते दिनों इस संदर्भ में दो विरोधी बयान आये. एक ओर लोगों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मंदी आ गयी है. वे इस संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं जैसे आइएमएफ, विश्व बैंक और मूडीज का हवाला देते हैं.

गौरतलब है कि आइएमएफ ने 2019-20 में ग्रोथ की संभावनाओं को घटा कर 6.1 प्रतिशत कर दिया है. वहीं विश्व बैंक ने भी इसे 6.0 प्रतिशत पर आंका है. उधर मूडीज नामक अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ने भारत की साख रेटिंग को ‘स्थिर’ से घटा कर ‘नकारात्मक’ कर दिया है और उसके बाद एजेंसी ने वर्ष 2019 के लिए ग्रोथ (वृद्धि) की संभावनाओं को अपने पूर्व के 5.8 प्रतिशत के लक्ष्य को घटा कर 5.6 प्रतिशत कर दिया है.

दूसरी ओर, सरकार समेत कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ग्रोथ में मात्र कुछ ही धीमापन आया है, लेकिन मंदी की कोई आशंका नहीं है. संसद के शीतकालीन सत्र के शुरू में ही वित्त मंत्री ने अपने लिखित बयान में कहा कि हाल में ग्रोथ में आये धीमेपन के बावजूद आइएमएफ के अक्तूबर 2019 के वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण में भारत को जी-20 देशों में सबसे तेजी से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था करार दिया है.

इस बीच, मुद्रास्फीति जो लंबे समय से काफी कम चल रही थी, सितंबर माह के 3.99 प्रतिशत से आगे बढ़ती हुए अक्तूबर 2019 को 4.62 प्रतिशत रिकॉर्ड की गयी. यह वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति के कारण हुई. गौरतलब है कि अक्तूबर में खाद्य पदार्थों में खुदरा मुद्रास्फीति 7.89 प्रतिशत रिकॉर्ड की गयी, जो पिछले माह 5.1 प्रतिशत ही थी.

मुद्रास्फीति में आये इस उछाल से प्रभावित होकर पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने कहा कि अर्थव्यवस्था ‘स्टेंगफलेशन’ यानी ‘मुद्रास्फीति के साथ आर्थिक ठहराव’ की स्थिति में जा सकती है.

‘मुद्रास्फीति’ हालांकि आम भाषा में कीमतों में वृद्धि को कहते हैं, लेकिन आर्थिक सिद्धांतों के अनुसार कीमतों में हर वृद्धि को मुद्रास्फीति नहीं कहते. कीमत वृद्धि को मुद्रास्फीति कहने के लिए उसे लंबे समय तक भारी वृद्धि होना होगा. मोदी सरकार के आने के बाद कीमतों में वृद्धि न सिर्फ घटती गयी, एक समय यह तीन प्रतिशत से भी कम हो गयी.

आज जब मुद्रास्फीति मात्र एक-दो माह में बढ़ी है, इसे ‘स्टेगफलेशन’ कहना राजनीति से प्रेरित ही माना जायेगा. वह भी तब जब एक माह पहले ही डाॅ मनमोहन सिंह मुद्रास्फीति में लगातार कमी से चिंताग्रस्त थे और मुद्रास्फीति में वृद्धि को आर्थिक गतिविधियों में उठाव के लिए जरूरी मान रहे थे.

वास्तव में समझना होगा कि लगातार कम होती कीमतें, रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में अपेक्षित कमी न किया जाना और उसके कारण बाधित होती आर्थिक गतिविधियां और उसके फलस्वरूप सरकार द्वारा टैक्स प्राप्तियों के लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएं आदि चिंता का कारण बन रही थीं. कीमतों में थोड़ा बहुत उछाल आने से आर्थिक गतिविधियों को वास्तव में प्रोत्साहन मिल सकता है.

एक अमेरिकी अर्थशास्त्री, एलबाॅन फिलिप्स ने कीमत वृद्धि और अािर्थक गतिविधियों के बीच संबंध को ‘फिलिप्स वक्र’ की सहायता से बताया है. फिलिप्स के विश्लेषण को मानें, तो मुद्रास्फीति में हुई वृद्धि एक अच्छी खबर है, क्योंकि इससे आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा, मांग बढ़ेगी, उत्पादन बढ़ेगा और बेरोजगारी भी घटेगी.

हमें मांग में धीमापन रोकने की जरूरत है, लेकिन उसके लिए राजकोषीय संतुलन को बनाये रखते हुए आर्थिक गतिविधियों का इस प्रकार से संचालन करना होगा कि अन्य प्रकार से बिगाड़ न हो जाये. वर्ष 2008 में आयी वैश्विक मंदी के बाद डाॅ मनमोहन सिंह सरकार ने करों में छूट और सरकारी खर्च में वृद्धि करनी शुरू की थी.

उसका परिणाम यह हुआ कि देश का राजकोषीय घाटा छह प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ गया. कीमतों में वृद्धि होने लगी, उसके कारण ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि हुई. परिणामस्वरूप जीडीपी ग्रोथ की दर धीमी हो गयी. ग्रोथ लगभग पांच प्रतिशत पर और मुद्रास्फीति 12 प्रतिशत तक पहुंच गयी थी. इसे अर्थशास्त्र में सबसे ज्यादा अवांछनीय स्थिति माना जाता है, जब तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति के स्थान पर जीडीपी ग्रोथ धीमी हो.

इस बात को समझते हुए वर्तमान सरकार समझदारी के उपाय अपना रही है. हर हालत में राजकोषीय घाटे को एक सीमा से बढ़ने नहीं दिया जा रहा, जिसके कारण ब्याज दरों को घटाया जा सका है, जिससे उपभोक्ता मांग और निवेश मांग दोनों के बढ़ने की संभावना है. स्थिर पूंजी निर्माण की गति में थोड़ी वृद्धि भी देखी गयी है.

देश में निवेश के वातावरण को बेहतर बनाने हेतु कॉरपोरेट करों की दर को घटा कर 22 प्रतिशत और नयी कंपनियों के लिए मात्र 15 प्रतिशत किया गया है, जो अन्य कम टैक्स लेनेवाले एशियाई देशों के समकक्ष है. सरकार द्वारा दिये जा रहे तमाम प्रोत्साहन दीर्घकाल में न सिर्फ आर्थिक गतिविधियों को, उत्पादन और रोजगार बढ़ायेंगे, बल्कि इससे राजस्व भी बढ़ेगा.

विश्व बैंक और आइएमएफ 2019 के लिए जीडीपी ग्रोथ की संभावनाओं को कम आंक रहे हैं, लेकिन 2020-21 और 2021-22 को लेकर वे भी आश्वस्त हैं कि जीडीपी ग्रोथ बढ़ेगी. विश्व बैंक का मानना है कि 2020-21 और 2021-22 में जीडीपी ग्रोथ क्रमशः 6.9 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत रहेगी. यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है.

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