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डोकलाम विवाद का हल युद्ध नहीं, द्विपक्षीय वार्ता से ही संभव : सुषमा

नयी दिल्ली/बीजिंग : भारत ने गुरुवारको कहा कि चीन के साथ सीमा गतिरोध का हल युद्ध से नहीं, बल्कि द्विपक्षीय बातचीत से ही हो सकता है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में कहा कि धैर्य से ही सभी समस्याओं का हल निकलता है और अगर धैर्य नहीं रहा तो दूसरे पक्ष को उकसाया जा […]

नयी दिल्ली/बीजिंग : भारत ने गुरुवारको कहा कि चीन के साथ सीमा गतिरोध का हल युद्ध से नहीं, बल्कि द्विपक्षीय बातचीत से ही हो सकता है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में कहा कि धैर्य से ही सभी समस्याओं का हल निकलता है और अगर धैर्य नहीं रहा तो दूसरे पक्ष को उकसाया जा सकता है. सुषमा ने डोकलाम गतिरोध का जिक्र करते हुए कहा कि हम मुद्दे के लिए धैर्य बनाये रखेंगे. वह भारत की विदेश नीति और सामरिक भागीदारी के साथ तालमेल विषय पर राज्यसभा में हुई अल्पकालिक चर्चा का जवाब दे रही थीं.

सुषमा ने कहा कि भारत विवाद के हल के लिए चीन से बातचीत करता रहेगा. चर्चा में कई सदस्यों ने इस गतिरोध को लेकर चिंता जतायी थी और भारत की विदेश नीति को लेकर सवाल किये थे. सुषमा ने कहा कि सेना की तैयारी हमेशा होती है, क्योंकि सेना युद्ध लड़ने के लिए होती है. लेकिन, युद्ध से समस्याओं का हल नहीं हो सकता. इसलिए इसे कूटनीतिक रूप से हल किया जाना चाहिए. उन्होंने उम्मीद जतायी कि मुद्दे का हल द्विपक्षीय बातचीत से हो सकता है.

पड़ोसी देशों के साथ भारत के बिगड़ते रिश्तों के विपक्षी सदस्यों के आरोप का जवाब देते हुए सुषमा ने कहा कि नेपाल से लेकर श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, हर पड़ोसी के साथ द्विपक्षीय रिश्ते अब तक के सबसे बेहतर दौर में हैं. उन्होंने कहा कि भूकंप की त्रासदी से गुजर रहा नेपाल, जब दानदाता देशों के सम्मेलन में चीन की तरफ देख रहा था, तब भारत ने नेपाल को सर्वाधिक आर्थिक मदद देकर पड़ोसी धर्म निभाया.

सुषमा ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह और श्रीलंका में हंबनडोटा एवं कोलंबो बंदरगाह का प्रबंधन चीन को सौंपे जाने के आरोप के जवाब में कहा कि इन तीनों बंदरगाह का काम साल 2008 से 2014 के बीच शुरू हुआ था. उन्होंने इन बंदरगाहों से भारतीय हित प्रभावित होने की कांग्रेस की चिंता के लिए पूर्ववर्ती संप्रग सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वर्तमान सरकार ने नये करार के तहत श्रीलंका के दोनों बंदरगाहों का नियंत्रण वहां की सरकार के सुपुर्द करने में अहम भूमिका निभायी. पाकिस्तान के प्रति अस्पष्ट रणनीति के विपक्ष के आरोप के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि मई 2014 में ही मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के समय पाकिस्तान के प्रति रणनीति साफ कर दी गयी थी. उन्होंने कहा कि इसका असर दिसंबर 2015 में उनकी पाकिस्तान यात्रा के समय दिखा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने विदेश मंत्री से समग्र द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने को कहा.

सुषमा ने कहा कि ‘दो साल में उतार-चढ़ाव से गुजरते भारत-पाक रिश्तों की कहानी बदरंग तब हुई जब कश्मीर में मारे गये आतंकवादी बुरहान वानी को नवाज शरीफ ने स्वतंत्रता सेनानी करार दिया.’ उन्होंने कहा कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते है और यही अब भारत सरकार का पाकिस्तान के प्रति रणनीति का रोडमैप है. चीन के साथ आपसी रिश्तों पर छायी धुंध के बारे में सुषमा ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि 1962 में अटल जी के कहने पर नेहरुजी ने चीन से तनावपूर्ण संबंधों के बारे में संसद को आहूत कर सरकार की स्थिति स्पष्ट की थी, लेकिन आज मुझे दुख है कि कांग्रेस ने सरकार से इस बारे में कुछ पूछने के बजाय भारत में चीन के राजदूत से मिलना मुनासिब समझा.

उन्होंने कहा कि वह पहले भी सर्वदलीय बैठक कर विपक्ष को चीन के बारे में सभी शंकाओं का संतोषजनक जवाब दे चुकी हैं. फिलिस्तीन को नजरंदाज कर इस्राइल-भारत संबंध मजबूत करने की विपक्ष की चिंता पर सुषमा ने कहा कि भारत ने फिलिस्तीन की कीमत पर इस्राइल से प्रगाढ़ मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाया है. बल्कि, इसके उलट स्वयं फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस्राइल के साथ विवाद को सुलझाने में भारत से मदद की अपील की थी. उन्होंने कहा कि भारत-इस्राइल रिश्तों को फिलिस्तीन सकारात्मक नजरिये से देखता है. उन्होंने मोदी के सिर्फ इस्राइल जाने के आरोप पर कहा कि प्रधानमंत्री ने भारत-इस्राइल के बीच कूटनीतिक रिश्तों के 25 साल पूरे होने के मौके पर यह दौरा किया था. इसलिए उद्देश्यपरक यात्रा होने के कारण वह फिलिस्तीन नहीं गये. सुषमा ने भारत के सभी देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि राजग सरकार की मजबूत विदेश नीति के कारण ही भारत की दुनिया भर में साख मजबूत हुई है और प्रधानमंत्री मोदी आज वैश्विक एजेंडा तय कर रहे हैं.

भारत अपने कामों से दिखाये कि वह शांति चाहता है : चीन

इस बीच, चीन ने कहा कि भारत को सीमा पर शांति कायम रखने की इच्छा अपने कामों से दिखानी चाहिए. चीन ने दावा किया कि सीमा पर चीन की तरफ एक सड़क बनाने के उसके प्रयासों को रोकने के लिए डोकलाम क्षेत्र में 48 भारतीय सैनिकों के पीछे सीमा पर ‘बड़ी संख्या में’ सैनिक मौजूद हैं. एक बयान में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि भारतीय पक्ष के कदम ‘गैरजिम्मेदाराना और लापरवाह’ लगते हैं. उन्होंने कहा कि बुधवार तक डोकलाम क्षेत्र में ’48 भारतीय सैनिक और एक बुलडोजर’ था. उन्होंने इसे चीन की सीमा में घुसपैठ बताया. हालांकि, भारत कहता है कि यह क्षेत्र भूटान का है. गेंग ने कहा कि इसके अलावा, सीमा पर और सीमा के भारतीय तरफ अब भी बड़ी संख्या में भारतीय सैन्य बल मौजूद है.

प्रवक्ता ने कहा कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि कितने भारतीय सैनिकों ने अवैध रूप से सीमा पार की और अभी भी चीनी क्षेत्र में हैं, यह चीन की क्षेत्रीय अखंडता के गंभीर उल्लंघन तथा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उल्लंघन की प्रकृति को नहीं बदलता है. यह घटना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध है. भारतीय पक्ष को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. गेंग ने फिर दोहराया कि 18 जून को करीब 270 भारतीय सैनिक चीन की सीमा में सड़क निर्माण में बाधा पहुंचाने के लिए चीन की जमीन पर सौ मीटर से अधिक अंदर घुस आये. विदेश मंत्रालय के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कि भारत-चीन सीमा पर शांति द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास के लिए महत्वपूर्ण पूर्व शर्त है, गेंग ने कहा कि भारत को अपने शब्दों को ‘काम में बदलते’ भी दिखाना चाहिए. गेंग ने बयान में कहा कि भारतीय पक्ष हमेशा शांति की बात करता है. लेकिन, हमें केवल शब्दों को नहीं सुनना चाहिए, बल्कि उसके कामों पर भी ध्यान देना चाहिए.

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