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कभी आत्महत्या करना चाहते थे पीएम मोदी से मिलने वाले मंगल केवट

<p>वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करने वाले ट्रॉली रिक्शा चलाने वाले मंगल केवट सुर्ख़ियों में छाए हुए हैं. इस लाइमलाइट से दूर वे अब भी अपनी ट्रॉली पर माल ढुलाई करते हुए दिखे. उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब वे एक पिता का फ़र्ज़ न पूरा कर पाने के चलते […]

<p>वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करने वाले ट्रॉली रिक्शा चलाने वाले मंगल केवट सुर्ख़ियों में छाए हुए हैं. इस लाइमलाइट से दूर वे अब भी अपनी ट्रॉली पर माल ढुलाई करते हुए दिखे. उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब वे एक पिता का फ़र्ज़ न पूरा कर पाने के चलते आत्महत्या कर लेना चाहते थे. </p><p>मंगल केवट जहां प्रधानमंत्री से मिलकर ख़ुश हैं, वहीं उन्हें इस बात का मलाल है कि उनकी बेटी की शादी में किसी ने कोई मदद नहीं की. उनका कहना है कि इससे पहले उन्होंने किसी से अपने लिए कोई मदद नहीं मांगी. वे अपने सबसे छोटे बेटे अनुराग की पढ़ाई के लिए भी किसी तरह की मदद नहीं चाहते.</p><p>मंगल केवट की बेटी साक्षी की शादी 12 फ़रवरी को हुई. उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री को दिल्ली जाकर निमंत्रण दिया था. प्रधानमंत्री शादी में तो नहीं आ पाए, लेकिन वाराणसी दौरे पर उन्होंने मंगल केवट को मिलने का बुलावा भेजा.</p><p>इससे पहले प्रधानमंत्री ने उन्हें, बेटी साक्षी और दामाद हंसराज को अपनी शुभकामनाएं भी भेजी थीं.</p><h3>क्यों आया आत्महत्या का आया ख्याल?</h3><p>मंगल केवट रोज़ ट्राली रिक्शा पर ट्रांसपोर्ट कंपनियों में माल ढुलाई का काम करते हैं. वे बताते हैं, &quot;एक ग़रीब का भी सपना होता है कि उसके बच्चे पढ़-लिखकर अच्छी ज़िन्दगी बिताएं, लेकिन हालात ने ऐसा होने नहीं दिया.&quot; </p><p>ख़ुद ग़रीबी के चलते हाईस्कूल के आगे न पढ़ाई न कर पाने वाले मंगल के मन में बच्चों की पढ़ाई पूरी न करवा पाने का मलाल है. वे बताते हैं, &quot;एक पिता के नाते मैंने अपने शरीर के सारे सुख त्याग दिए. एक बार तो अपने हालात से मजबूर होकर मैंने आत्महत्या करने का मन बना लिया था.&quot; </p><p>फिर कहते हैं कि अगर वे आत्महत्या कर लेते तो परिवार बिखर जाता, यही सोचकर नए सिरे से संघर्ष करने का मन बनाया. </p><h3>स्थानीय बीजेपी नेताओं से नहीं मिली कोई मदद </h3><p>मंगल केवट के दिल में कसक है कि पहली बार उन्होंने पार्टी के नेताओं से मदद की कुछ उम्मीद की थी, जो पूरी नहीं हुई. उनका कहना है कि उन्होंने वाराणसी से लेकर लखनऊ तक बीजेपी के सभी बड़े नेताओं को बेटी की शादी का निमंत्रण भेजा था. उन्हें उम्मीद थी कि वे आएंगे तो उनकी कुछ आर्थिक मदद भी करेंगे.</p><p>मंगल बताते हैं कि उन्होंने बेटी की शादी के लिए क़रीब डेढ़ लाख रुपये का क़र्ज़ लिया है. किसी से मदद न मिलने की सूरत में वे अब अपनी दिहाड़ी से पैसे बचाकर इसे चुकता करेंगे. बीजेपी के नेताओं के न आने पर उनकी प्रतिक्रिया पूछने पर वो कहते हैं, &quot;हो सकता है वे लोग ग़रीब के घर न आना चाहते हों या उनके पास समय न रहा हो.&quot;</p><h3>प्रधानमंत्री का बुलावा बड़ा सम्मान</h3><p>नेताओं से निराश मंगल के मन में प्रधानमंत्री मोदी के लिए कोई शिकायत नहीं है. वे कहते हैं, &quot;देश के प्रधानमंत्री ने व्यस्त होने के बावजूद मुझ जैसे मामूली इंसान को मिलने का बुलावा भेजा, यही मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है.&quot;</p><p>वे बताते हैं कि प्रधानमंत्री ने मुलाक़ात के दौरान उनसे पूछा, &quot;मंगल, बेटी-दामाद को साथ नहीं लाए?&quot;</p><p>प्रधानमंत्री मोदी ने बीते वर्ष वाराणसी आने पर मंगल केवट को ख़ुद बीजेपी का सदस्य बनाया था. मंगल पहले प्रतिज्ञा कर चुके थे कि जबतक वे प्रधानमंत्री से नहीं मिलते नंगे पैर ही चलकर अपना जीवन व्यतीत करेंगे. आज भी मंगल केवट नंगे पैर ही चलते दिखाई देते हैं.</p><h3>पिता भी चलाते थे ट्रॉली रिक्शा</h3><p>परिवार के बारे में पूछने पर मंगल केवट बताते हैं, &quot;मेरे पिता धरमू प्रसाद भी ट्रॉली रिक्शा चलाते थे. वे भी रोज़ एक घंटा रास्ते से कचरा उठाकर साफ़ सफ़ाई करते थे. लेकिन तब किसी ने उनके इस काम की अहमियत को नहीं समझा.&quot;</p><p>वे संतोष जताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद 2014 में लोगों ने साफ़-सफ़ाई के महत्व को समझा. उनके मुताबिक़ तक़रीबन 60 वर्ष पहले उनके पिता बिहार के रोहतास ज़िले के दुर्गावती गाँव से आकर वाराणसी में बसे थे. मंगल का जन्म वाराणसी के मुकीमगंज इलाक़े में हुआ था.</p><h3>पीएम आवास योजना में नहीं मिला घर</h3><p>मंगल ने लगभग बीस वर्ष पूर्व डोमरी गांव में 450 स्क्वायर फ़ीट की ज़मीन पर छप्पर डालकर अपना घर बनवाया था. इस ज़मीन के टुकड़े को ख़रीदने के लिए उनके पिता ने अपने गांव दुर्गावती स्थित ज़मीन को बेचा था.</p><p>पीएम आवास योजना के बारे में पूछने पर मंगल बताते हैं कि उन्होंने इसके लिए आवेदन किया था, लेकिन गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों से मतभेद होने के चलते उनका नाम लिस्ट से कट गया.</p><p>उनसे इस बारे में अधिक जानकारी देने को कहा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, &quot;जाने दीजिये, जो नसीब में होगा, वो मिलेगा ही.&quot;</p><p>मंगल अपने परिवार के साथ डोमरी गांव में ही रहते हैं. उनके माता-पिता कौशल्या देवी और धरमू प्रसाद का निधन इसी घर में हुआ.</p><p>अब परिवार में उनकी पत्नी रेनू देवी, बेटी साक्षी, दो बेटे अमन और अनुराग हैं. साक्षी की शादी चंदौली ज़िले में नौगढ़ के रहने वाले हंसराज निषाद से हुई है.</p><p>वे तहसील में ऑपरेटर के पद पर तैनात हैं. बेटी साक्षी शादी के पहले गांव में ही बतौर ‘गंगा-प्रहरी&quot; गंगा नदी की सफ़ाई के लिए जागरूकता अभियान चलाती थीं. </p><h3>राइस मिल में दिहाड़ी पर काम करती हैं पत्नी</h3><p>मंगल की पत्नी रेनू देवी भी परिवार का ख़र्च उठाने के लिए 250 रुपये की दिहाड़ी पर पास के राइस में काम करती हैं.</p><p>मंगल बताते हैं कि उन्हें सांस लेने में समस्या होती है और राइस मिल में काम करने के चलते अक्सर उन्हें खांसी की समस्या बनी रहती है.</p><p>वे संतोष जताते हैं कि इसके चलते पत्नी को कोई अब तक कोई गम्भीर बीमारी नहीं हुई है. </p><h3>दिहाड़ी से बचाते हैं स्वच्छता मिशन के लिए पैसे</h3><p>मंगल की रोज़ की आमदनी लगभग 400 रुपये तक होती है. इसमें से वे स्वच्छता मिशन के लिए 30-40 रुपये निकाल लेते हैं. इससे उन्होंने झाड़ू और डस्टबिन ख़रीद कर राजघाट पुल पर रखवाया.</p><p>मंगल केवट की पहचान उनके स्वच्छता मिशन के चलते बनी है. वे रात 10 बजे के बाद वाराणसी के बाहर गंगा नदी के उस पार बसे अपने गांव डोमरी जाते हैं. इस दौरान वे राजघाट पर फैली गंदगी को अपने ट्रॉली रिक्शे में इकठ्ठा करते जाते हैं.</p><p>कूड़े को वे गांव के पास गड्ढा खोदकर उसमें दबा देते हैं. उन्होंने सफाई के लिए अपनी बचत से पुल के दोनों तरफ़ डस्टबिन लगवाए हैं. इस पर उन्होंने लिखवाया भी है, &quot;कृपया गंगा जी में माला-फूल न फेंकें.&quot;</p><h3>स्वच्छता मिशन के लिए घर छोड़ा</h3><p>परिवार को पूरा समय न देने के चलते रेनू अक्सर मंगल को उलाहना भी देती हैं कि या तो पुल की सफ़ाई कर लो या परिवार चला लो.</p><p>मंगल हंसते हुए बताते हैं कि इसी नोकझोंक के चलते वे बीते साल घर छोड़कर गंगासागर चले गए थे.</p><p>उनके परिवार ने पुलिस में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करा दी थी. पाँच दिन बाद ख़ुद घर लौट आए, जिसके बाद से उनकी पत्नी उन्हें अब कुछ नहीं कहतीं.</p><h3>ये है ‘मोदी-भक्त’ होने का कारण </h3><p>मंगल केवट से जब पूछा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ऐसा क्या दिखा कि वे उनके मुरीद बन गए?</p><p>इस पर जवाब मिला, &quot;मेरे गांव में किसी घर में शौचालय नहीं था, इसी समस्या को लेकर 7 दिसम्बर 2016 को एक एप्लीकेशन लेकर दिल्ली गया था. डेढ़ महीने बाद गांव के हर घर में शौचालय बन गया. मोदी जी ने मेरी फरियाद, एक भगवान की तरह सुनी, इसीलिए उनको भगवान मानता हूं.&quot;</p><p>वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी डोमरी को बतौर सांसद आदर्श गांव गोद लिया था. </p><figure> <img alt="स्पोर्ट्स विमेन ऑफ़ द ईयर" src="https://c.files.bbci.co.uk/12185/production/_110571147_footerfortextpieces.png" height="281" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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