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अब रोबोट करेंगे नेतागिरी!

दीपक गिरकर व्यंग्यकार वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला कृत्रिम बुद्धि वाला एक रोबोट नेता विकसित किया है, जिसे 2020 में न्यूजीलैंड में होनेवाले आम चुनाव में उम्मीदवार बनाया जायेगा. इस आभासी नेता का नाम सैम (एसएएम) रखा गया है. इस रोबोट नेता की विशेषता यह है कि वह कभी भी किसी विवाद में नहीं पड़ता […]

दीपक गिरकर

व्यंग्यकार

वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला कृत्रिम बुद्धि वाला एक रोबोट नेता विकसित किया है, जिसे 2020 में न्यूजीलैंड में होनेवाले आम चुनाव में उम्मीदवार बनाया जायेगा. इस आभासी नेता का नाम सैम (एसएएम) रखा गया है. इस रोबोट नेता की विशेषता यह है कि वह कभी भी किसी विवाद में नहीं पड़ता है और कभी भी अपने बयान नहीं बदलता है.

इसलिए आजकल लोगों का विश्वास रोबोट पर बढ़ रहा है. तो इसका अर्थ यह हुआ कि आनेवाले समय में संसद और विधानसभाओं में रोबोट ही रोबोट दिखेंगे! वो क्या है न कि आजकल आॅटोमेशन और डिजिटलीकरण पर विशेष जोर बढ़ रहा है.

संसद और विधानसभाओं में रोबोट्स के होने से संसद और विधानसभाओं के सारे सत्रों में व्यवस्थित काम-काज होंगे और समय पर होंगे. अपने काम न्यायालयों के पाले में नहीं ढकेलेंगे. संसद और विधानसभाओं में शालीन वातावरण रहेगा. रोबोट्स संसद और विधानसभाओं में बंदरों की भांति उछल-कूद भी नहीं करेंगे, क्योंकि बंदर उनके पूर्वज नहीं है.

जब जनप्रतिनिधि रोबोट होंगे, तो फिर यह तो तय है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में भी रोबोट्स ही रहेंगे. तब क्या वास्तविक आंकड़ों और सरकारी आंकड़ों में अंतर नहीं रहेगा? क्या आभासी लोगों द्वारा किया गया विकास आभासी नहीं होगा, वास्तविक विकास होगा?

लोग कभी भी घोटाले, भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी नहीं करेंगे? क्या सरकार को जांच आयोग भी नहीं बिठाने पड़ेंगे? क्या सीबीआई का काम कम हो जायेगा? क्या रोबोट सभी धार्मिक स्थलों पर दर्शन के लिए जायेंगे? ऐसा कुछ भी नहीं होगा, क्योंकि रोबोट को संचालित करनेवाला रिमोट रोबोट के हाथ में नहीं होगा. रिमोट तो उन हाथों में ही रहेगा, जिन लोगों के हाथों में आज तक रहा है. और ये वही लोग हैं, जो ऊंट पर बैठकर बकरियां चराते हैं.

वैसे हमारे देश की संसद और विधानसभाओं में आजादी के बाद से ही कई जनप्रतिनिधियों ने रोबोट की ही भूमिका निभायी है. जनप्रतिनिधियों की तो मजबूरी होती है, क्योंकि वे तो अपनी पार्टी के पदाधिकारियों के रिमोट से संचालित होते हैं. दुख तब होता है, जब देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हुए नेता भी रोबोट की तरह देशी या विदेशी रिमोट से संचालित होते हैं. वैसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के काफी महानुभावों को तो रिमोट से संचालित होते हुए देखा है.

वैसे रोबोट भी काफी परेशान रहते हैं. रोबोट का दर्द किसी को दिखता नहीं है. अगर रोबोट केवल एक ही रिमोट से संचालित हो, तो उसे ज्यादा दर्द नहीं होता है. लेकिन, यदि वह एक से अधिक रिमोट से संचालित होता हो, तो उसे ज्यादा दर्द होता है. वैसे रोबोट जाने कितनी भी नेतागिरी सीख जायें, ये रोबोट नेता नहीं बन सकते. वे भी नेताओं के हाथों की कठपुतली ही बने रहेंगे. रोबोट चाहे जितना भी ज्ञान अर्जित कर लें, वे रहेंगे रोबोट के रोबोट ही.

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