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खेलो-कूदो बनो नवाब

शफक महजबीन टिप्पणीकार अपने बचपन में हम एक कविता पढ़ते थे- प्यारे बच्चों आज है छुट्टी का दिन/ खूब खेलो आज है छुट्टी का दिन/ तेज हो जाते हैं बच्चे खेल से/ जिस तरह गाड़ी के पहिये तेल से… खेलों का बच्चों की जिंदगी में बहुत महत्व है, क्योंकि तनदुरुस्ती हजार नियामत है. स्वामी विवेकानंद […]

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

अपने बचपन में हम एक कविता पढ़ते थे- प्यारे बच्चों आज है छुट्टी का दिन/ खूब खेलो आज है छुट्टी का दिन/ तेज हो जाते हैं बच्चे खेल से/ जिस तरह गाड़ी के पहिये तेल से… खेलों का बच्चों की जिंदगी में बहुत महत्व है, क्योंकि तनदुरुस्ती हजार नियामत है. स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था- ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है.’

जाहिर है, स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक सक्रियता बहुत जरूरी है, जो खेल-कूद से आती है. स्वस्थ मस्तिष्क वाला बच्चा आगे चलकर ‘नवाब’ बन सकता है. लेकिन, आजकल तकनीकी बोझ के तले दबे बच्चों के पास खेलने का वक्त नहीं है. दुखद है कि बच्चे अब आउटडोर गेम से ज्यादा घरों में या मोबाइल में गेम खेलना पसंद करने लगे हैं.

आउटडोर गेम में कम होती बच्चों की रुचि उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है. शारीरिक सक्रियता वाले खेलों से शरीर का रक्त संचार बढ़ता है और स्फूर्ति आती है. शरीर चुस्त-दुरुस्त बना रहता है और पाचन क्रिया ठीक रहती है. वहीं, मोबाइल गेम्स खेल रहे बच्चों को वक्त का अंदाजा नहीं हो पाता और वे घंटों बैठे रह जाते हैं, जिससे वे मोटापे के साथ-साथ कम उम्र में ही कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.

देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद पांच सितंबर 2014 को शिक्षक दिवस के मौके पर जब नरेंद्र मोदी पहली बार बच्चों से रूबरू हुए, तो उन्होंने आउटडोर गेम्स को मोटिवेट करते हुए कहा था- ‘जीवन में अगर खेलकूद न हो, तो जीवन खिलता नहीं है. इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्ती करनी चाहिए कि दिन भर में शरीर से चार बार पसीना निकले.’ पसीना निकलने पर शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और शरीर फुर्तीला बना रहता है.

आउटडोर खेल से बच्चे न सिर्फ मजबूत होते हैं, बल्कि अनुशासित, ईमानदार, वक्त के पाबंद और सामाजिक भी बनते हैं. हर खेल के कुछ नियम होते हैं और नियम से खेल खेलने पर बच्चे अनुशासित होते हैं. टीम गेम से बच्चे समूह में एक-दूसरे को सपोर्ट करना सीखते हैं. बच्चे अपने आसपास के बच्चों से दोस्ती करते हैं और उनसे घुलमिल जाते हैं. ऐसे बच्चे जिंदगी में खालीपन महसूस नहीं करते और अपनी बातों को शेयर करते हैं.

इस तरह उनमें सामाजिकता आती है. लेकिन, जो बच्चे मोबाइल में ही खेलते रहते हैं, वे अपनी बातों को किसी से शेयर नहीं कर पाते हैं और उनमें अंदर ही अंदर घुटते रहने का खतरा रहता है. इसका नुकसान यह होता है कि बच्चे ब्लूव्हेल जैसे खेलों का शिकार होकर अपनी जान तक गवां देते है. आउटडोर खेलों से बच्चे अपने जीवन में किसी भी चुनौती का आसानी से सामना करना सीख जाते हैं.

स्कूलों के भारी पाठ्यक्रम, पढ़ाई के बोझ और अधिक अनुशासन के कारण खेल अब मनोरंजन नहीं, प्रतिस्पर्धा बनकर रह गये हैं. इसमें बच्चों की गलती नहीं है. हमारी जीवनशैली ही कुछ ऐसी हो गयी है कि हम खेल के फायदों को जानकर भी बच्चों को खेलने का मौका नहीं दे पा रहे हैं.

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