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Designer Babies पूरा करेंगे मां-बाप के सारे अरमान, WHO ने दी Gene Editing पर रिसर्च की मंजूरी

मिथिलेश झा यदि आपके मन में कई अरमान हैं. आप चाहते हैं कि आपके बच्चे उसे पूरा करें, तो आप भी ‘डिजाइनर बेबी’ पैदा कर सकेंगे. मेडिकल के फील्ड में तरह-तरह की बीमारियों के इलाज पर काम कर रहे डॉक्टरों ने मां के गर्भ में ‘डिजाइनर बच्चे’ तैयार करने का प्रयोग शुरू कर दिया है. […]

मिथिलेश झा

यदि आपके मन में कई अरमान हैं. आप चाहते हैं कि आपके बच्चे उसे पूरा करें, तो आप भी ‘डिजाइनर बेबी’ पैदा कर सकेंगे. मेडिकल के फील्ड में तरह-तरह की बीमारियों के इलाज पर काम कर रहे डॉक्टरों ने मां के गर्भ में ‘डिजाइनर बच्चे’ तैयार करने का प्रयोग शुरू कर दिया है. यह शोध पूरा हो गया, तो आने वाले दिनों में माता-पिता अपनी इच्छा के अनुसार बच्चे पैदा कर पायेंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) अब तक ऐसे किसी भी प्रयोग के खिलाफ था. ऐसे वैज्ञानिकों के रिसर्च की राह में यह वैश्विक संगठन चट्टान की तरह खड़ा था. अब उसने एक तरह से इसका विरोध बंद कर दिया है.

WHO की एक्सपर्ट एडवाइजरी कमेटी ने ह्यूमन जीनोम एडीटिंग (Human Genome Editing) पर होने वाले रिसर्च की निगरानी के लिए 18 सदस्यीय कमेटी बनायी है. यह कमेटी दुनिया भर में होने वाले रिसर्च की निगरानी करेगी. जीनोम एडीटिंग (Genome Editing) पर रिसर्च करने वालों को इसके लिए WHO में पंजीकृत होना होगा. पहले चरण के शोध के लिए पंजीकरण भी शुरू हो गया है.

WHO ने जीनोम एडीटिंग से जुड़े रिसर्च की ऑनलाइन निगरानी की भी बात कही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) के डायरेक्टर जनरल डॉ टेड्रो अधानोम गेब्रयेसुस (Dr Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने बताया कि वैज्ञानिकों ने मानव जीन को गर्भ में ही संपादित करने की इच्छा जतायी थी. उन्होंने इसके फायदे भी बताये. बताया कि इस तकनीक से उन बीमारियों का भी इलाज संभव हो जायेगा, जो अब तक लाइलाज माने जाते हैं. डॉ टेड्रो ने कहा कि इससे विषय की गंभीरता तो समझ में आती है, साथ ही नैतिक, सामाजिक, नियामक और तकनीकी चुनौतियां भी हैं, जिससे निबटना जरूरी है.

WHO के डायरेक्टर जनरल ने कहा कि इसलिए जरूरी है कि कोई भी देश ऐसे किसी भी रिसर्च या क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी न दे. कम से कम तब तक, जब तक रिसर्च के नैतिक और सामाजिक पहलुओं पर कोई ठोस फैसला नहीं हो जाता. ज्ञात हो कि ऐसे किसी भी रिसर्च के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इंटरनेशनल क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म (ICTRP) की शुरुआत की है. पहले चरण में शारीरिक और रोग निदान संबंधी परीक्षण की अनुमति दी गयी है. इस पंजीकरण प्रक्रिया और उसकी पारदर्शिता के प्रति संतुष्ट होने के बाद WHO विभिन्न हितधारकों से इस पर चर्चा शुरू करेगा.

कमेटी ने शोध से जुड़े तमाम लोगों और संस्थानों से अपील की है कि वे ट्रायल करने के लिए ICTRP पर खुद को पंजीकृत करवायें. ह्यूमन जीनोम एडीटिंग की वैश्विक निगरानी के लिए कमेटी एक तंत्र बनायेगी, जिसके लिए वह ऑनलाइन और ऑफलाइन विमर्श करेगी. यहां बताना प्रासंगिक होगा कि डॉ टेड्रो (Dr Tedros) ने दिसंबर, 2018 में घोषणा की थी कि ह्यूमन जीनोम एडीटिंग की निगरानी के लिए एक वैश्विक स्टैंडर्ड की स्थापना करेगी.

कैसे होंगे ‘डिजाइनर बच्चे’

कई सालों से इंसान के जीन में बदलाव करके ‘डिजाइनर बच्चे’ बनाने के मुद्दे पर बहस छिड़ी है. इसलिए जानना जरूरी है कि ‘डिजाइनर बच्चे’ हैं क्या? दरअसल, वैज्ञानिक गर्भ में पल रहे शिशु के शरीर में विशेष जीन डाल देते हैं. इससे आपके घर वैसा ही बच्चा जन्म लेगा, जैसे गुण आप उसमें देखना चाहेंगे. जीनोम एडीटिंग पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों ने ऐसा दावा किया था. वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने इसे कुदरत के नियमों से छेड़छाड़ माना और इसका विरोध किया.

वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उन्होंने CRISPR-cas9 नाम का एक यंत्र विकसित कर लिया है, जिसकी मदद से वे इंसानों के डीएनए में बदलाव कर सकते हैं. इसी मशीन की मदद से वे किसी भी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के जीन में वो खूबियां डाल सकते हैं, जिसकी इच्छा उनके माता-पिता को होगी.

कई कारणों से हो रहा है विरोध

पश्चिमी देशों ने कुदरत के काम में इंसान के दखल को बिल्कुल गलत बताया है. इसलिए पश्चिम में इसका कड़ा विरोध हो रहा है. इस विरोध की कई वजहें हैं. पहली तो ये कि अगर ये तजुर्बा नाकाम रहा, तो आने वाले बच्चे की जिंदगी बोझ बन जायेगी. बच्चे के लिए भी और उसके परिवार के लिए भी.

विरोध की दूसरी वजह यह है कि अमीरों के घर डिजाइनर बच्चे पैदा होंगे. इससे इंसानों की नई नस्लें पैदा हो जायेंगी, जो अन्य से अलग और बेहतर होगी. वो जिंदगी के तमाम मोर्चों पर आगे निकल जायेंगे. इससे सभी इंसानों की बराबरी का सिद्धांत ही मिट जायेगा.

इसलिए खासतौर से पश्चिमी देशों में जीन एडीटिंग का विरोध हो रहा है. लोग नहीं चाहते कि इंसान किसी भी तरह से भगवान की भूमिका में आ जाये. चूंकि इन देशों की जनता इस रिसर्च के खिलाफ है, अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देशों में इस शोध पर काम होना मुश्किल है.

दुनिया के लिए खतरा बन जायेगा चीन!

दुनिया में एक ऐसा भी देश है, जो तमाम नैतिकता के सिद्धांतों को ताक पर रखकर विकास के हाइ-वे पर फुल स्पीड में दौड़ना चाहता है. वहां डिजाइनर बच्चों पर तेजी से काम हो सकता है. इस देश का नाम है चीन. चीन में बेहतर इंसान बनाने की दिशा में लोगों की दिलचस्पी दिख रही है. चूंकि चीन लोकतांत्रिक देश नहीं है, इसलिए वहां की जनता की राय कोई मायने नहीं रखती. सरकार जो चाहे, फैसला कर सकती है.

बताया जाता है कि चीन में CRISPR-cas9 की मदद से वर्ष 2015 में जीन एडीटिंग हुई थी. हाल के दिनों में कैंसर के मरीजों के इलाज में भी चीन में CRISPR-cas9 जीन एडीटिंग टूल की मदद ली गयी.

सभी जानते हैं कि चीन किसी भी कीमत पर दुनिया का नंबर वन राष्ट्र बनना चाहता है. वह सबसे शक्तिशाली देश बनने का ख्वाब पालता है. इसके लिए उसे कुछ लोगों के जीन में छेड़खानी की कीमत भी चुकानी पड़ी, तो उसे इससे परहेज नहीं होगा.

यदि जीन एडीटिंग का प्रयोग सफल रहा, तो चीन डिजाइन बच्चे पैदा करने में जुट जायेगा. एक बार उसने ऐसा किया, तो वह पश्चिमी देशों को काफी पीछे छोड़ देगा. मानवाधिकारों के मामले में बेहद खराब रिकॉर्ड वाला यह देश इस मामले में अपने नागरिकों को गिनी पिग की तरह इस्तेमाल कर सकता है, जो इंसानियत के लिए बेहद खतरनाक फैसला होगा.

जीन एडीटिंग के हो सकते हैं कई फायदे

जीन में फेरबदल के नैतिक पहलुओं को छोड़ दें, तो किसी भी देश को इससे काफी फायदे हो सकते हैं. इसकी मदद से ज्यादा से ज्यादा बुद्धिमान या स्मार्ट बच्चे पैदा होंगे. बुद्धिमान बच्चे अपने देश की तरक्की में योगदान देंगे. ये स्मार्ट लोग देश की आर्थिक विकास को रफ्तार देंगे.

इसी तरह जीन एडिटिंग करके सुपरमैन जैसे खिलाड़ी पैदा किये जा सकते हैं. साथ ही इंसानों में अपराध के लिए जिम्मेदार जीन में फेरबदल करके कोई देश अपने यहां जुर्म की दर घटा सकता है. जीन एडीटिंग के ये फायदे अभी सिर्फ अंदाजा तक ही सीमित हैं. सचमुच ऐसा होगा या नहीं, इसके बारे में कहना मुश्किल है.

अध्ययन के लिए 114.549 करोड़ रुपये का अनुदान

पिछले दो दशक में जीन संपादन की दिशा में तेजी से अध्ययन हुए हैं. CRISPR/Cas9 की उपलब्धता ने इस तकनीक को बेहद सस्ता और आसान बना दिया है. ह्यूमन जीनोम एडीटिंग और इसके प्रभावों के बारे में अध्ययन के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) ने बेयलर कॉलेज ऑफ मेडिसीन और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी को 16 लाख डॉलर (करीब 114.549 करोड़ रुपये) का अनुदान दिया है.

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