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Explainer: आडवाणी की तर्ज पर यात्रा करके कांग्रेस को मजबूत कर पाएंगे राहुल गांधी? अब तक कर चुके कई प्रयोग

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राहुल गांधी भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की तर्ज पर राजनीतिक यात्रा निकालकर खुद या पार्टी को सत्ता के गलियारे में पहुंचाने का प्रयोग कर रहे हैं.

नई दिल्ली : कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने पार्टी को मजबूत करने के लिए तमिलनाडु की कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की है. उनके साथ इस यात्रा में पार्टी के करीब 118 व्यक्ति लगातार उनके साथ चल रहे हैं. यह उनकी पैदल यात्रा है. यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए राजनीतिक यात्रा कर रहे हैं. इससे पहले भी उन्होंने पार्टी को एक नई दिशा देने के नाम पर किसान यात्रा से लेकर खाट सभा तक कर चुके हैं, लेकिन हर बार के राजनीतिक प्रयोग के बाद उनकी पार्टी कमजोर ही हुई है और चुनावों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राहुल गांधी भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की तर्ज पर राजनीतिक यात्रा निकालकर खुद या पार्टी को सत्ता के गलियारे में पहुंचाने का प्रयोग कर रहे हैं. लेकिन, तमाम प्रकार के प्रयोग और राजनीतिक यात्रा करने के बावजूद जिस प्रकार लालकृष्ण आडवाणी अपने लक्षित लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए. इस बीच, अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि सत्ता गलियारे में पहुंचने और पार्टी पर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए राजनीति यात्रा और प्रयोग करने वाले राहुल गांधी भी भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी की तरह कहीं अपने लक्षित लक्ष्य से दूर तो नहीं रह जाएंगे?

2010 में भट्टा परसौल गांव के किसानों के लिए राहुल ने की थी पदयात्रा

राहुल गांधी ने वर्ष 2010 यमुना एक्सप्रेस-वे निर्माण के समय उत्तर प्रदेश में यमुना पट्टी के गांव टप्पल और भट्टा पारसौल के किसानों को समुचित मुआवजा और न्याय दिलाने के लिए लंबे समय तक आंदोलन किया. लोगों को खुद से जोड़ने के लिए उन्होंने किसानों के साथ पदयात्रा की. भूमि अधिग्रहण बिल पर लोगों की राय जानी और अलीगढ़ में किसान महापंचायत कर उनकी कुछ अन्य समस्याओं से भी रूबरू भी हुए. हालांकि उनके वायदे के अनुसार यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल को संशोधित भी किया, मगर चुनाव के समय में राहुल के चेहरे का लाभ कांग्रेस नहीं ले सकी और न ही किसानों ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कोई लाभ दिया.

किसान-बुनकरों के लिए आंध्र में राहुल की पदयात्रा

राहुल गांधी आंध्र प्रदेश के सूखा प्रभावित जिलों के किसान, बुनकर और छात्रों से बातचीत करने के लिए 24 जुलाई 2015 को एक पदयात्रा की शुरुआत की. वे आंध्र प्रदेश के जिस गांव से इस पदयात्रा की शुरुआत की थी, उस गांव में इंदिरा गांधी ने 1979 में एक सभा को संबोधित किया था. इससे पहले उन्होंने 15 मई 2015 को आंध्र प्रदेश के अदिलाबाद जिले में करीब 15 किलोमीटर लंबी एक पदयात्रा की थी. इस यात्रा के दौरान उन्होंने आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों से मुलाकात की थी. हालांकि, उनकी इन यात्राओं का कोई राजनीतिक लाभ पार्टी को नहीं मिल सका.

2016 में राहुल ने देवरिया से दिल्ली तक निकाली यात्रा

इतना ही नहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों करारी शिकस्त खाने के बाद राहुल गांधी ने वर्ष 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए राहुल गांधी ने 6 सितंबर 2016 से देवरिया से दिल्ली तक किसान यात्रा निकाली. इस यात्रा के दौरान उन्होंने देवरिया और यूपी के अन्य जिलों में किसानों के साथ खाट सभा का आयोजन किया. उस समय कांग्रेस ने दावा किया था कि इस किसान यात्रा के दौरान पूर्वांचल के करीब 25 हजार लोग राहुल गांधी से सीधे जुड़े थे. आलम यह इस किसान यात्रा के दौरान खाट सभा करने के लिए कांग्रेस ने रूद्रपुर से 2000 खाटें मंगवाई थीं, लेकिन देवरिया में राहुल की खाट सभा के बाद लोग कांग्रेस का खटिया ही लेकर भाग गए.

भारत जोड़ो यात्रा

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए अक्टूबर में होने वाले चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 से तमिलनाडु की कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की है. भारत जोड़ो यात्रा अगले 150 दिनों में देश के 12 राज्यों और दो केंद्र-शासित प्रदेशों से गुज़र कर 3,570 किलोमीटर का सफर तय कर जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में समाप्त होगी. इस यात्रा के दौरान कांग्रेस के करीब 118 नेता उनके साथ पैदल चल रहे हैं.

लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक यात्रा का मकसद

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने जब-जब रथ यात्राएं निकालीं, देश को नुकसान हुआ. पार्टी और पब्लिक का पैसा पानी की तरह बहाया गया, मगर हर यात्रा की समाप्ति के बाद उन्हें या उनकी पार्टी को कुछ हासिल नहीं हुआ. यह बात दीगर है कि उन प्रत्येक राजनीतिक यात्राओं के बाद देश में तथाकथित तौर सांप्रदायिक हिंसा हुई. राजनीतिक विश्लेषक यह भी कहते हैं कि जिस सत्ता सुख की पूर्ति के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने राजनीतिक यात्राएं शुरू कीं, उन्हें वह मंजिल नहीं मिल पाई और हमेशा के पीएम इन वेटिंग बनकर रह गए. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में उप-प्रधानमंत्री बनाए जाने के बाद से उनके मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना था.

राम रथ यात्रा

25 सितंबर 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन पर नवरात्र के समय सोमनाथ से शुरू की गई राम रथयात्रा भाजपा और लाल कृष्ण आडवाणी की पहली राजनीतिक यात्रा थी. इस यात्रा के पीछे उनका दावा छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को उनका असली चेहरा दिखाने का था, लेकिन तथाकथित तौर पर सांप्रदायिकता के भंवरजाल में वे खुद फंस गए. मुद्दा राम जन्मभूमि को मुक्ति दिलाने का था, लेकिन राष्ट्रीय एकता को अल्पसंख्यकों के हाथ की कठपुतली बताया गया. इसमें सैकड़ों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा, राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान उठाना पड़ा और रथ यात्रा में लाखों रुपये पानी की तरह बहाया गया.

इस यात्रा से उपजे विवाद के निपटारे के लिए सरकार को आयोग का गठन करना पड़ा, जिसके पीछे करोड़ों रुपये खर्च किए गए. रथ यात्रा के समापन पर हुई हिंसा से जुड़े मुकदमों के निपटारे और सुनवाई के लिए आयोध्या की निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट की कीमती समय जाया हुआ और इस मुकदमे को लड़ने में लंबे समय तक लाखों रुपये को पानी की तरह बहाया गया. इन सबके परिणामस्वरूप अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू तो हो गया, लेकिन आडवाणी को उनका लक्षित लक्ष्य नहीं मिल पाया. सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए इस रथ यात्रा से आडवाणी की लोकप्रियता एक कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में जरूर मिली.

जनादेश यात्रा

राम रथ यात्रा की सांप्रदायिकता से उत्साहित आडवाणी ने सत्ता के गलियारे में पहुंचने के लिए 11 सितंबर 1993 को एक बार फिर सरकार के विरोध में जनमत जुटाने के लिए जनादेश यात्रा की शुरुआत की. यह यात्रा स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर मैसूर से शुरू की गई. इस यात्रा के जरिए उन्होंने केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हाराव सरकार को अपना निशाना बनाया. इसमें उन्होंने संविधान 80वां संशोधन विधेयक तथा लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक पर सरकार को घेरने की कोशिश की. उन्होंने यात्रा के माध्यम से देश में राजनीतिक उबाल लाने का अथक प्रयास किया. इसमें पूर्व उप-राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने जम्मू से यात्रा की, पोरबंदर से मुरली मनोहर जोशी और कलकत्ता से कल्याण सिंह शामिल हुए. इन चारों स्थान से यात्रा शुरू कर सरकार के विरोध में जनमत जुटाने का प्रयास किया गया, मगर ठीक इसका उल्टा हुआ. यात्रा से केंद्र सरकार के खिलाफ जनमत बढ़ने के बजाए वह पहले से ज्यादा मजबूत हो गई.

स्वर्ण जयंती रथ यात्रा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने यूपीए सरकार के वैधता खो देने और उसका जनादेश समाप्त हो जाने का दावा करते हुए आठ सितंबर 2011 को रथ यात्रा निकालने का ऐलान किया. उन्होंने कहा था कि वह इस भ्रष्ट सरकार के खिलाफ नवंबर से पहले देश भर में रथ यात्रा निकालेंगे. वोट के बदले नोट मामले में जेल भेजे गए अपनी पार्टी के दो पूर्व सांसदों का बचाव करते हुए आडवाणी ने कहा था कि यह सरकार बदतरीन घोटाले के लिए जिम्मेदार है. वोट के बदले नोट का मामला यहीं खत्म नहीं होगा. आडवाणी की ओर से शुरू की गई स्वर्ण जयंती रथ यात्रा में सोच, अभिव्यक्ति, आस्था और पूजा की स्वतंत्रा को लक्ष्य बनाया गया. बेवजह बनाए गए लक्ष्य में भी भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी की मंशा पूरी न हो सकी.

भारत उदय यात्रा

वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान मार्च-अप्रैल 2004 का भारत उदय यात्रा शुरू की गई. इस यात्रा से पहले ही राजग सरकार ने वर्ष 2003 में ‘इंडिया शाइनिंग’ और ‘फील गुड’ का नारा बुलंद किया. आडवाणी की इस यात्रा का उद्देश्य देश के लोगों को सरकार की योजनाओं को देशवासियों तक पहुंचाना और सरकार के पक्ष में जनमत जुटाना था. इसे शुरू करने के पहले भी जुलाई 2003 में भाजपा नेता आडवाणी ने यात्रा करने की कोशिश की थी, लेकिन अकारण उसे टाल दिया गया. इस यात्रा के शुरू होने के बाद सरकार और पार्टी मुगालते में समय से पहले 15वीं लोकसभा का चुनाव करा दिया. इसी फील गुड और इंडिया शाइनिंग के नारों और आडवाणीजी की यात्रा का कुपरिणाम रहा कि राजग चुनाव में हार गया. बता दें कि आडवाणी ने पूरे पांच महीने तक अपनी यात्रा जारी रखी थी और इसके पीछे करोड़ों रुपये बर्बाद किए गए, मगर नतीजा सिफर ही रहा.

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भारत सुरक्षा यात्रा

15वीं लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद भाजपा के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने केंद्र सरकार को घेरने के लिए सुरक्षा मामलों को लेकर 6 अप्रैल से 10 मई 2006 के बीच भारत सुरक्षा यात्रा निकाली. इसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना, जेहादी आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद और अल्पसंख्यक विघटनकारी राजनीति से लोगों को सुरक्षा प्रदान कराना था, मगर हुआ ठीक इसका उल्टा. देश में 2006 के बाद से आतंकी गतिविधियां बढ़ीं और कई बड़े बम धमाके किए गए. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो भाजपा के इस महारथी की रथ यात्रा का आज तक कोई नतीजा नहीं निकला. यह बात दीगर है कि इनकी यात्राओं ने देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया और हिंसा फैलाने में अहम भूमिका निभाई.

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