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Green Hydrogen Mission: देशभर में हरित हाइड्रोजन की बढ़ी मांग, जानें इसका क्या-क्या है महत्व

Green Hydrogen Mission: आवश्यकता से अधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण दुनिया के सामने अस्तित्व बचाने का संकट आ खड़ा हुआ है. विशेषज्ञों की मानें, तो इससे बचने का एकमात्र तरीका स्वच्छ ईंधन को अपना कर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना है. सो दुनिया इस ओर तेजी से बढ़ रही है.

जलवायु परिवर्तन के गंभीर संकट से पार पाने के लिए दुनियाभर के विशेषज्ञ जीवाश्म ईंधन के बदले स्वच्छ ईंधन के उपयोग की वकालत कर रहे हैं. इसी कारण आज दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन संपत्तियों (फॉसिल फ्यूएल एसेट) को निम्न कार्बन उत्सर्जन करने वाली उभरती तकनीकों से बदलने की कवायद जारी है. सौर व पवन ऊर्जा, लिथियम-आयन बैटरी और वैकल्पिक ईंधन जैसी तकनीकों के उभार ने अनेक क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का मार्ग प्रशस्त किया है. हालांकि उद्योग और भारी परिवहन जैसे कुछ क्षेत्र हैं, जहां मौजूदा निम्न-कार्बन या शून्य-कार्बन तकनीकों का उपयोग कर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना मुश्किल है. पर हाइड्रोजन ऐसा करने में सक्षम है. इसी कारण दुनियाभर में हाइड्रोजन की मांग बढ़ रही है, विशेषकर हरित हाइड्रोजन की.

हाइड्रोजन मिशन के तहत उठाये गये कदम

  • दिसंबर 2021 में एनटीपीसी ने विशाखापट्टनम के सिम्हाद्री में इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग कर हाइड्रोजन उत्पादन के साथ एकल ईंधन सेल आधारित माइक्रो ग्रिड परियोजना की शुरुआत की.

  • फरवरी, 2022 में विद्युत मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन/ ग्रीन अमोनिया नीति अधिसूचित की.

  • अप्रैल, 2022 में ओआईएल ने असम के जोरहट पंप स्टेशन पर भारत के पहले 99 प्रतिशत शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन पायलट प्लांट की शुरुआत की. यह प्लांट रिकॉर्ड तीन महीने में शुरू हो गया था.

इन परियोजनाओं पर चल रहा है काम

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी) ऊर्जा मिश्रण में हाइड्रोजन के अधिक उपयोग को लेकर कई पहल कर रहा है. इसका पहला पायलट प्रोजेक्ट ग्रे हाइड्रोजन या हाइड्रोजन सीएनजी पहल पर आधारित है. जिसमें हाइड्रोजन को कंप्रेस्ड प्राकृतिक गैस (सीएनजी) में मिश्रित कर ईंधन तैयार किया जाता है. इसके अतिरिक्त, एमओपीएनजी द्वारा हरित हाइड्रोजन आधारित पांच अन्य पायलट परियोजनाओं की भी योजना है, जहां उत्पादित हाइड्रोजन को परिवहन में ईंधन के रूप में उपयोग करने के साथ-साथ रिफाइनरियों के लिए भी उपयोग में लाया जायेगा. ग्रीन हाइड्रोजन पर आधारित निम्न पायलट परियोजनाओं पर काम चल रहा है :-

  • सोलर हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशन की स्थापना के लिए दो पायलट प्रोजेक्ट को दिल्ली-आगरा, गुजरात के पर्यटक स्थलों पर स्थापित करने की योजना है.

  • रिफाइनरी में पारंपरिक हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन से बदलने के उद्देश्य से एक हरित हाइड्रोजन संयंत्र स्थापित किया जाना है.

  • सीएनजी के मिश्रण के साथ हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए एक पायलट परियाजना की स्थापना राजस्थान में वैसे जगह की जानी है, जहां से इसे खुदरा केंद्रों पर वितरित किया जा सके.

  • सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन (सीजीडी) नेटवर्क में ग्रीन हाइड्रोजन इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना और ग्रीन हाइड्रोजन के पाइपलाइन इंजेक्शन के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की योजना है.

  • ये सभी पायलट प्रोजेक्ट तैयारी के प्रारंभिक चरण में हैं और जिस उद्देश्य के लिए इन्हें स्थापित किया जा रहा है, उस पर अभी काम चल रहा है.

2047 तक ऊर्जा में भारत के आत्मनिर्भर होने की उम्मीद

  • पचहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी. जिसका उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात का एक केंद्र बनाना है. भारत यह लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है और उम्मीद है कि 2047 से पहले ही देश ऊर्जा में आत्मनिर्भर हो जायेगा. वर्तमान में भारत ऊर्जा आयात पर प्रतिवर्ष 160 अरब डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा खर्च करता है. यदि भारत अपना ऊर्जा उत्पादन नहीं बढ़ाता है, तो आगामी 15 वर्षों में आयात के दोगुने होने की संभावना है. पर सही दिशा की तरफ कदम बढ़ाकर भारत हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में निम्न लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है.

  • वर्ष 2030 तक घरेलू उपभोग के लिए 60 गीगावॉट से अधिक/ पांच मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है. जो 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत की सहायता कर सकता है.

  • वर्ष 2030 तक 15 से 20 अरब टन हरित इस्पात का उत्पादन, जो हरित इस्पात को दुनिया की मुख्यधारा में लाने का अग्रणी प्रयास होगा.

  • वर्ष 2028 तक 25 गीगावॉट की वार्षिक इलेक्टोलाइजर उत्पादन क्षमता.

  • निर्यात के लिए 2030 तक विश्व में सबसे अधिक हरित अमोनिया का उत्पादन.

वर्ष 2050 तक देश में हाइड्रोजन की मांग चार गुना बढ़ने की संभावना

नीति आयोग के आकलन के अनुसार, 2020 से 2050 के बीच भारत में हाइड्रोजन की मांग में चार गुना से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है. इस प्रकार, 2050 तक कुल मांग लगभग 29 मिलियन टन तक पहुंच सकती है. दीर्घावधि में जहां इस्पात और भार ढोने वाले वजनी ट्रक (हैवी-ड्यूटी ट्रक) के लिए हाइड्रोजन की मांग में तेजी आ सकती है, वहीं निकट भविष्य में अमोनिया और रिफाइनिंग बाजार में हाइड्रोजन की मांग में तेजी आ सकती है. तेजी के कारण इन दोनों ही क्षेत्रों में हाइड्रोजन की मांग वर्तमान के छह मिलियन टन प्रतिवर्ष से बढ़कर 2030 तक लगभग 11 मिलियन टन प्रतिवर्ष पहुंचने का अनुमान है. इस बात की भी संभावना है कि कम लागत के कारण हरित हाइड्रोजन विशेषकर उन उद्योगों में अपनी जगह बना ले जहां पहले से ग्रे हाइड्रोजन का उपभोग हो रहा है. कम लागत के कारण दीर्घावधि में ग्रीन हाइड्रोजन के हाइड्रोजन बाजार पर हावी होने की भी संभावना है.

  • 94 प्रतिशत के करीब हाइड्रोजन की मांग हरित हाइड्रोजन द्वारा पूरा करने की संभावना है भारत में 2050 तक, जो 2030 के 16 प्रतिशत से अधिक है.

  • 8 अरब डॉलर मूल्य (कुमुलेटिव वैल्यू) का हो सकता है हरित हाइड्रोजन का बाजार 2030 तक, जबकि 2050 तक इसके 340 अरब डॉलर के होने का अनुमान है.

  • 31 अरब डॉलर के आसपास हो सकता है भारत का अपना घरेलू इलेक्ट्रोलाइजर बाजार, 2050 तक, 226 गीगावॉट की मांग के साथ.

  • 20 गीगावॉट तक पहुंच सकती है भारत में इलेक्ट्रोलाइजर की मांग 2030 तक.

हरित हाइड्रोजन का महत्व

हरित हाइड्रोजन की ऊर्जा अत्यधिक होती है, इसी कारण इसका उपयोग रॉकेट के ईंधन के रूप में किया जाता है. इसका उपयोग कार के फ्यूएल सेल के अलावा मैन्युफैक्चरिंग और फर्टिलाइजर उद्योग में भी किया जाता है. यह ऊर्जा का स्वच्छ रूप भी है जिससे शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. इसी कारण इसका अत्यधिक महत्व है.

सरकार ने की 19 हजार करोड़ खर्च की घोषणा

भारत सरकार ने हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए 19,744 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की है, जिसमें से 17,490 करोड़ रुपये ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रोलाइजर के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जायेगा. वहीं, 1,466 करोड़ रुपये पायलट प्रोजेक्ट के तहत खर्च होंगे. जबकि 400 करोड़ रुपये अनुसंधान एवं विकास में खर्च किये जायेंगे. वहीं, 388 करोड़ रुपये अन्य खर्चों मद में खर्च होंगे. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के दिशा-निर्देश में इन योजनाओं को मूर्त रूप दिया जायेगा. केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अल्प अवधि के लिए इलेक्ट्रोलाइजर के आयात शुल्क में भी कटौती की जायेगी.

राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और भारत के लक्ष्य

  • 125 गीगावॉट के करीब संबद्ध अक्षय ऊर्जा क्षमता के साथ भारत प्रतिवर्ष कम से कम पांच मिलियन टन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करेगा.

  • 8 लाख करोड़ से अधिक खर्च होंगे इस परियोजना में और इससे छह लाख नौकरियां पैदा होंगी.

  • 1 लाख करोड़ रुपये तक के जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी (संचयी कमी) आयेगी, इस कदम से.

  • 50 मिलियन टन तक के आसपास ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आयेगी वार्षिक तौर पर.

वैश्विक स्तर पर बढ़ रही हाइड्रोजन की मांग

  • 87 मिलियन मिट्रिक टन तक पहुंच गयी 2020 तक हाइड्रोजन की अनुमानित मांग.

  • 500 से 800 मिलियन टन तक की वृद्धि का अनुमान है हाइड्रोजन की मांग में 2050 तक.

  • 130 अरब डॉलर मूल्य का था हाइड्रोजन उत्पादन का बाजार 2020 से 21 तक और 2030 तक इसके प्रतिवर्ष 9.2 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है.

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