नयी दिल्ली : अलग-अलग बहाना बना कर महिलाओं को प्रताड़ित करने के लिए मुसलिम पुरुष तीन तलाक का दुरुपयोग कर रहे हैं. पीड़िताओं की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाये जाने की जरूरत है.
यह कहना है ऑल इंडिया मुसलिम वीमेंस पर्सनल लॉबोर्ड (एआइएमडब्ल्यूपीएलबी) की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर का. उन्होंने सोमवार को कहा कि जब तक विधायिका सख्त कानून नहीं बनायेगी, महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्ति नहीं मिलेगी.
इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए अंबर ने कहा कि पुरुष वर्ग तलाक की इस व्यवस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं. साथ ही कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड हर मोरचे पर फेल है.
शाइस्ता ने बताया कि हैदराबाद की एक महिला को उसके पति ने व्हाट्सएप पर तलाक दे दिया. इस संबंध में 16 मार्च, 2017 को सनतनगर पुलिस स्टेशन में सुमैना शरफी ने आइपीसी की धारा 420, 506 आर/डब्ल्यू 34 के तहत केस दर्ज करवाया है.
सुमैना ने बताया कि वर्ष 2015 में ओवैस तालिब से शादी हुई थी. 28 नवंबर, 2016 को उसके पति ने उसे ‘तलाक तलाक तलाक’ का एक मैसेज भेज दिया और कहा कि अब दोनों के बीच सारे संबंध खत्म हो चुके हैं.
रविवार को ही नेटबॉल की सात बार चैंपियन रही खिलाड़ी शुमायला जावेद, जो उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले की हैं, को उनके पति ने सिर्फ इसलिए तलाक दे दिया, क्योंकि उन्होंने बेटी को जन्म दिया था. उनकी शादी वर्ष 2014 में लखनऊ के गोसाईंगंज निवासी आजम अब्बासी से हुई थी.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि देश भर में हजारों महिलाओं ने अपने अधिकारों की रक्षा और तीन तलाक को खत्म करने का अभियान छेड़ रखा है.
तलाक दो हीतरीके से दिया जानाचाहिए. ‘तलाक-उल-सुन्नत’ या तीन महीने की अवधि, जिसे ‘इद्दत’ कहते हैं, का पालन पति को करना चाहिए. लेकिन, ‘तलाक-ए-बिदात’ पुरुषों को यह अधिकार देता है कि वह एक साथ तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह कर पत्नी से अलग हो सकता है.
पर्सनल लॉ बोर्ड ने जारी की है अपील
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मौलानाओं और इमामों से अपील की है कि वे जुम्मे के दिन मसजिदों में तकरीर के बाद तीन तलाक के वैध तरीकोंके बारे में लोगों को जागरूक करें. उन्हें तीन तलाक के दुष्प्रभाव के बारे में भी बताया जाये.
देश के अधिकतर मुसलमान
हस्तक्षेप बरदाश्त नहीं करेगा बोर्ड
पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया है कि शरीयत कानून में किसी तरह का छेड़छाड़ वह बरदाश्त नहीं करेगा. साथ ही यह भी दावा किया कि देश के बहुसंख्यक मुसलमान पर्सनल लॉ में किसी बदलाव के पक्ष में नहीं हैं.