भोपाल ( पीटीआईभाषा): नोटबंदी से केवल आम लोग एवं किसान परेशान नहीं हुए, बल्कि इसने मियां-बीबी के बीच पैसे को लेकर तकरार भी पैदा की और इसके चलते मध्यप्रदेश में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी वृद्धि हुई. पति-पत्नी के झगडों को सुलझाने के लिए बने परामर्श केंद्रों में इस दौरान दर्ज होने वाले मामलों में बढोतरी हुई है.
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नोटबंदी से मियां-बीबी के बीच आई खटास, घरेलू हिंसा के मामले बढ़े
भोपाल ( पीटीआईभाषा): नोटबंदी से केवल आम लोग एवं किसान परेशान नहीं हुए, बल्कि इसने मियां-बीबी के बीच पैसे को लेकर तकरार भी पैदा की और इसके चलते मध्यप्रदेश में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी वृद्धि हुई. पति-पत्नी के झगडों को सुलझाने के लिए बने परामर्श केंद्रों में इस दौरान दर्ज […]
गौरवी अध्यक्ष सारिका सिन्हा ने बताया, ‘‘नोटबंदी के बाद मध्यप्रदेश में घरेलू हिंसा के आंकडे बहुत बढ़े हैं.” गौरवी – वन स्टाप क्राइसिस सेन्टर है, जिसे मध्यप्रदेश शासन का लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और एक्शनएड द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जाता है.सारिका ने कहा कि आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद कई ऐसे मामले ‘गौरवी’ में आये, जिनमें महिलाओं ने अपने छुपाये हुए 500 रुपये एवं 1000 रुपये के अमान्य नोटों को बैंकों से बदलने के लिए अपने पतियों को दिया, लेकिन बाद में उनके पतियों ने ये पैसे उन्हें वापस नहीं किये। इसके कारण मियां-बीबी के बीच तकरार होने के कारण उनके संबंधों में खटास आई. सारिका ने कहा कुछ ऐसे भी मामले आये जिनमें पत्नियों द्वारा छुपाये गये 500 रुपये एवं 1000 रुपये के पुराने नोट 30 दिसंबर के बाद भी मिले. इनको लेकर भी पति-पत्नी के बीच झगडे एवं मारपीट हुई, जिसके चलते घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किये गये. परामर्श केंद्रों में दोनों पक्षों को समझा बुझाकर इन झगडों को खत्म कराया जा रहा है.
इसी बीच, गौरवी की संचालिका शिवानी सैनी ने बताया, ‘‘नवंबर से जनवरी तक उनके भोपाल स्थित ‘गौरवी केंद्र’ में घरेलू हिंसा के लगभग 200 मामले रजिस्टर हुए हैं, जबकि इससे पहले लगभग 50 से 67 मामले प्रति माह आते थे.” उन्होंने कहा कि जो 200 मामले महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के आये, उनमें से अधिकतर मियां-बीबी के बीच नोटबंदी से हुई पैसे की कमी को लेकर हुए झगडे एवं मारपीट की शिकायतें थी. शिवानी ने कहा, ‘‘घरेलू हिंसा पहले भी होती थी, लेकिन नोटबंदी के बाद घरेलू हिंसा के मामले बहुत बढ़े हैं.” शिवानी ने कहा, ‘‘हमारे परामर्श केंद्र में कई ऐसे मामले आये जिनमें महिलाओं ने शिकायत की कि नोटबंदी के बाद पैसे की तंगी के चलते उनके पति ने घर में रसोई गैस नहीं भरवाई, बच्चों के लिए खाने-पीने की चीजें नहीं लाए , रोजाना उपयोग में लाई जाने वाली आवश्यक वस्तुएं जैसे दूध, साग-सब्जी एवं फल नहीं लाये, क्योंकि वे बैंक से भी अपना पैसा नहीं निकाल पा रहे थे.
इस समस्या के कारण भी कई परिवारों में आपसी झगड़े हुए.” उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद हम हर महीने 200-250 ऐसे घरेलू हिंसा के मामलों पर सुनवाई कर परामर्श दे रहे हैं. शिवानी ने बताया कि जो महिलाएं परामर्श केंद्र में घरेलू हिंसा का मामला लेकर आई हैं, उनमें दैनिक मजदूरी करने वाले, निम्न वर्ग एवं मध्यम वर्ग की महिलायें हैं, क्योंकि नोटबंदी के बाद उन्होंने जो पैसा अपने पति से छुपाकर बचाया था, वह ज्यादातर 500 रुपये एवं 1000 रुपये के नोट की सूरत में था, जिन्हें बैंकों से बदला जा सकता था. लेकिन इन महिलाओं में से कई के पास राशन कार्ड, आधार कार्ड एवं बैंक में खाते नहीं थे, जिसके कारण वे इन पैसों को स्वयं बदलवा नहीं सकीं.
शिवानी ने कहा कि इन महिलाओं ने इन पैसों को अपने पति को बैंकों से बदलवाने के लिए दिया था लेकिन, बैंक से पुराने नोट बदलने के बाद कई लोगों ने अपनी पत्नी को यह धन वापस नहीं दिया. उलटा, उनके पति उन्हें यह कहकर सताने लगे कि वे उनकी कमाई को उनकी जेबों से चोरी कर छिपा लेती हैं, जिससे उनके बीच झगडे होने लगे. शिवानी ने बताया कि हालांकि, बहुत अच्छे परिवारों से ऐसी दिक्कतें नहीं आई हैं.शिवानी ने कहा कि अब पैसे के मामले के घरेलू हिंसा के मामले कम होने लगे हैं.
उन्होंने बताया, ‘‘नोटबंदी से लगभग तीन महीने बडी दिक्कतें रही, अब थोडा राहत मिलने लगी है.” शिवानी ने कहा, ‘‘नोटबंदी के बाद कई महिलाओं ने शिकायत की कि उनके पति ने उन्हें पैसे की दिक्कत और पैसा बचा-बचा कर छुपाकर रखने के लिए न केवल मारा-पीटा, बल्कि घर से बाहर भी निकाल दिया।” मध्यप्रदेश महिला आयोग से मिले आंकडों के अनुसार भी अक्तूबर में महिलओं पर हुई घरेलू हिंसा के 59 मामले उसके सामने आये, जबकि नवंबर में यह बढकर 68 हो गये और दिसंबर में 86 हो गये. इस प्रकार घरेलू हिंसा के मामलों में महिला आयोग के आंकडों के अनुसार अक्तूबर के मुकाबले नवंबर में 15 प्रतिशत इजाफा और दिसंबर में 45 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई.
हालांकि, महिला आयोग की एक सदस्य ने बताया कि घरेलू हिंसा के मामलों में किसी महीने में वृद्धि तो किसी महीने में कमी यूं भी आती रहती है.अखिल भारतीय महिला परिषद की वरिष्ठ परामर्शदाता रीता तुली ने बताया, ‘‘भोपाल स्थित महिला थाना जहांगीराबाद में उनकी निगरानी में चल रहे महिला परामर्श केंद्र में घरेलू हिंसा के 10 से 15 मामले रोज सुने जाते हैं और इनमें से कुछ नोटबंदी के चलते भी आये हैं.” रीता ने भी कहा कि कई महिलाओं ने परामर्श के दौरान शिकायत की कि अपने पति से छिपाकर जो पैसे उन्होंने जमा कर रखे थे, उन्हें नोटबंदी के बाद अपने पति को बदलवाने के लिए देना पडा, क्योंकि कई महिलाओं के बैंक में खाते ही नहीं थे
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