नयी दिल्लीः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना को लेकर कांग्रेस के भीतर और बाहर विरोध की स्थिति के बावजूद शुक्रवार को अलग राज्य के गठन से संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसे 12 फरवरी को संसद में पेश किया जायेगा. विवादास्पद विधेयक को मौजूदा स्वरूप में राज्यसभा में पेश किया जायेगा और सरकार विधेयक को चर्चा के दौरान 32 संशोधन पेश करेगी. मांगों के बावजूद प्रस्तावित विधेयक में हैदराबाद को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा देने का प्रावधान नहीं है, लेकिन सरकार रायलसीमा और उत्तरी तटीय आंध्र के लोगों की चिंताओं पर ध्यान देने के लिए विशेष पैकेज देगी. कैबिनेट ने एक विशेष मैराथन बैठक के बाद आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसके बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस कोर समूह की बैठक हुई.
सभी दल निकालें हल : सरकार
सरकार ने सभी दलों से कहा कि वे तेलंगाना मुद्दे का हल निकालें, क्योंकि आंध्रप्रदेश के विभाजन के पक्ष व विरोधवाले सांसदों का संसद की कार्यवाही बाधित करना जारी है. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, ‘देखते हैं. ये ऐसी बात है, जिसका पहले ही वायदा किया जा चुका है.’ संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा कि तेलंगाना को लेकर कार्यवाही बाधित होना कांग्रेस बनाम अन्य पार्टियों का मुद्दा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यह मुद्दा कांग्रेस सांसदों का नहीं है. यह सीमांध्र के सांसदों बनाम तेदेपा सांसदों का सावल है. मेरी सभी सदस्यों से अपील है कि उन्हें समझना है कि यदि यह मुद्दा 15वीं लोकसभा में हल नहीं हुआ तो इसका हल अगली लोकसभा में निकालना होगा.’ कमलनाथ ने कहा कि तब भी तेलंगाना के 17 और सीमांध्र के 25 सांसद होंगे. इस मुद्दे को विराम केवल संसद दे सकती है.
केंद्र को निर्देश देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने संसद में तेलंगाना बिल पेश करने पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस चरण में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और न्यायमूर्ति एसए बोबडे की पीठ ने आंध्रप्रदेश में पृथक नये तेलंगाना राज्य के गठन को चुनौती देनेवाली कई याचिकाओं पर केंद्र को निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया. पीठ ने इससे पहले अपने 18 नवंबर 2013 के आदेश का हवाला दिया जब उसने कहा था कि राज्य के बंटवारे के विरोध से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करना अभी जल्दबाजी होगी. पीठ ने कहा, ‘हम 18 नवंबर 2013 और आज की स्थिति के बीच कोई बदलाव नहीं देखते हैं. इसलिए हम इस समय हस्तक्षेप करने से इनकार करते हैं.’ हालांकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि रिट याचिका में जो बात कही गयी है, उस पर उपयुक्त समय पर विचार किया जा सकता है.