श्रीनगर: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में लोगों की जिंदगी नरक बन गई है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां चल रहे आतंकी कैंपों के कारण लोग परेशान हैं और आंतकी कैंपों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. मुजफ्फरबाद, कोटली, चिनारी, मीरपुर, गिलगित और नीलम घाटी (पीओके) के लोगों का कहना है कि आतंकियों के ट्रेनिंग कैंपों ने उनकी जिंदगी नरक बना दी है. आपको बता दें ये वह इलाके हैं जहां आतंकी संगठन लश्कर-ए-तयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है जिसके बाद उन्हें भारतीय सीमा में घुसपैठ कराया जाता है. इन कैंपों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ और सेना का भी साथ मिलता है.
पीओके का कोई ऐसा इलाका नहीं है जहां पाक हुक्मरानों और दहशतगर्दों के खिलाफ लोगों का गुस्सा नहीं निकल रहा हो. वे सड़कों पर खुलेआम निकड़ पड़े हैं और सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. हर तरफ से सिर्फ एक आवाज आ रही है कि अब बहुत हुआ. लोग चीख-चीख कर रहे हैं कि अगर तालिबान और दूसरे आतंकी संगठनों के कैंप नहीं बंद किए गए तो वो लोग खुद उन कैंपों पर हमला करके उसे तबाह कर देंगे.
आपको बता दें कि हाल ही में हुए उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया जिसमें सेना ने वहां मौजूद 7 आतंकी कैपों का नष्ट कर दिया और करीब 38 आतंकियों को मार गिराया. इस संबंध में कल एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी जिसमें भारतीय सेना के इस ऑपरेशन के संबंध में जानकारी दी गई.
अखबार ने सीमापार के चश्मदीदों से बात करके खुलासा किया कि स्थानीय लोगों ने अल-हवाई पुल के नजदीक गोलियों की तेज आवाज सुनी थी, लेकिन रात होने की वजह से कोई देखने के लिए बाहर नहीं आया. यह आवाज 84 एमएम कार्ल गुस्ताव राइफल की थी. दूसरे दिन लश्कर के लोगों से उन्हें पता चला कि उनपर हमला हुआ था. चश्मदीदों ने बताया कि पांच या छह शवों को सुबह ट्रक में भरकर ले जाया गया था.
अखबार ने बताया कि एलओसी के इस पार (भारत में) रहने वाले कुछ लोगों के रिश्तेदार उस पार भी रहते हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने एलओसी के इस पार रहने वालों की मदद से उस पार के रिश्तेदारों से संपर्क किया और पांच चश्मदीदों को खोज कर उन्हें चैटिंग के जरिये सवाल भेजे. एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि सर्जिकल स्ट्राइक कथनार स्ट्रीम के नजदीक बने सेना के कैंप के नजदीक हुआ, जो नीलम नदी में मिलती है. इस इलाके में सेना के प्रतिष्ठान भी हैं और उन्हें तोप के गोलों से बचाने की व्यवस्था भी की गयी है.