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अरुण यादव के रुप में चला कांग्रेस ने ओबीसी कार्ड, दिग्विजय खेमा हुआ बाहर

भोपाल : कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी सचिव एवं सांसद अरुण यादव पर भरोसा जता कर एक ओर जहां अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कार्ड चला है, वहीं एमपीसीसी में लंबे समय बाद किसी भी महत्वपूर्ण पद पर कांग्रेस महासचिव एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह […]

भोपाल : कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी सचिव एवं सांसद अरुण यादव पर भरोसा जता कर एक ओर जहां अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कार्ड चला है, वहीं एमपीसीसी में लंबे समय बाद किसी भी महत्वपूर्ण पद पर कांग्रेस महासचिव एवं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खेमे को जगह नहीं दी गई है.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे और अब एमपीसीसी मुखिया अरुण यादव केंद्रीय मंत्री एवं प्रदेश के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे से हैं. युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस में भी अब दिग्विजय समर्थक नहीं हैं. इससे पहले राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह और एमपीसीसी मुखिया सांसद कांतिलाल भूरिया और युवा कांग्रेस अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह को दिग्विजय सिंह समर्थक ही माना जाता था.

उन्होंने कहा कि हालांकि अब भी प्रदेश कांग्रेस में सबसे अधिक संख्या दिग्विजय समर्थक नेताओं एवं विधायकों की ही है, लेकिन चूंकि विधानसभा चुनाव में दिग्विजय समर्थकों के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है इसलिए इस बार आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दूसरे खेमे को महत्व दिया गया है.

दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक ओमप्रकाश का कहना है कि यादव को एमपीसीसी का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने जहां ओबीसी कार्ड खेला है, वहीं अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश भी की है कि प्रदेश के क्षत्रपों की अब ज्यादा नहीं चलेगी. प्रदेश में पिछड़े वर्ग की संख्या 50 प्रतिशत से भी अधिक है. भाजपा ने दस साल के शासन में तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान दिए, जो ओबीसी से आते हैं.

यादव के बहाने कांग्रेस इसी वोट बैंक में जनाधार बढ़ाने का प्रयास करेगी. माना जा रहा है कि खरगौन के बाद अब खंडवा से सांसद यादव, अध्यक्ष बनने के बाद लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे और संगठन की मजबूती के लिए काम करेंगे. यह भी साफ हो गया है कि इस पद के लिए कांग्रेस आलाकमान को किसी निर्विवाद चेहरे की तलाश थी. यादव के रुप में कांग्रेस को इस प्रदेश में युवा के साथ यह चेहरा भी मिल गया.

कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद भूरिया ने आलाकमान को इस्तीफा भेज दिया था. इस्तीफा स्वीकार करने की बजाय हाईकमान ने भूरिया को कहा कि वह पद पर बने रहें. इसके बाद पार्टी केंद्रीय मंत्री सिंधिया को यह जिम्मेदारी देने का मन बना रही थी. कमलनाथ समर्थक पूर्व मंत्री बाला बच्चन के नाम पर भी विचार किया गया.

बहरहाल, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर सत्यदेव कटारे की नियुक्ति और अब यादव को बड़ी जिम्मेदारी देकर पार्टी ने नए नेतृत्व को आगे करने का प्रयास किया है. दोनों नेताओं के सामने गुटबाजी समाप्त कर पार्टी को फिर से खड़ा करना अहम चुनौती होगी. तात्कालिक और बड़ा काम तो यह है कि वे कम समय में जनता के बीच फिर से पार्टी के प्रति विश्वास जगाएं, ताकि लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन सुधर सके.

यह भी कहा जा रहा था कि कटारे से पहले नेता प्रतिपक्ष पद संभाल रहे अजय सिंह को एमपीसीसी मुखिया की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. अजय समर्थक भी इस बात का दावा कर रहे थे, लेकिन यादव के अध्यक्ष बनने से अब उन्हें निराशा होगी.

एमपीसीसी अध्यक्ष पर घोषणा के बाद यादव ने टेलीफोन पर कहा, मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को मध्यप्रदेश में अधिक से अधिक सीटों पर जीत दिलाना चुनौती होगा. यादव तिरुपति गए हुए हैं और आज देर रात दिल्ली लौटेंगे.

रतलाम से सांसद कांतिलाल भूरिया ने विधानसभा चुनाव में पार्टी की शिकस्त के बाद आलाकमान के समक्ष इस्तीफे की पेशकश की थी और उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में पूरा ध्यान केंद्रित करने का हवाला देते हुए जल्द से जल्द प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्त करने की बात भी की थी.

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