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PM मोदी की मौजूदगी में भावुक हुए ”सीजेआई” कहा- केस बढ़ रहे, जज नहीं

नयी दिल्ली : देश के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान भावुक हो गए. उन्होंने कार्यक्रम के दौरान जजों पर काम के बोझ का जिक्र किया इस दौरान उनकी आंखे नम हो गयी. देश की अदालतों में जजों की संख्‍या की जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कम लोग ही समझ […]

नयी दिल्ली : देश के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान भावुक हो गए. उन्होंने कार्यक्रम के दौरान जजों पर काम के बोझ का जिक्र किया इस दौरान उनकी आंखे नम हो गयी. देश की अदालतों में जजों की संख्‍या की जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कम लोग ही समझ पाते हैं कि हम कितने तनाव में काम करते हैं. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे.राजधानी दिल्ली में जजों और मुख्यमंत्रियों के इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ठाकुर ने यह बात कही. इस दौरान उन्होंने अपने रुमाल से नम आंखों को पोछा. ठाकुर ने कार्यक्रम में कहा कि केस की बढ़ती संख्‍या को देखते हुए जजों की संख्या में बड़े पैमाने पर इजाफा किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है.

न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि पांचवीं-छठी कक्षा में सवाल आता है कि एक सड़क पांच आदमी दस दिन में बनाते हैं, तो एक दिन में सड़क बनाने के लिए कितने आदमी चाहिए. जवाब होगा- 50 आदमी. देश के हाइकोर्ट में 38 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. इन्हें निबटाने के लिए कितने जज चाहिए? चीफ जस्टिस की आंखों में आंसू छलक आये. उन्होंने कहा, आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते. 1987 में विधि आयोग ने जजों की संख्या प्रति 10 लाख लोगों पर 10 से बढ़ा कर 50 करने की सिफारिश की थी, लेकिन उस वक्त से लेकर अब तक इस पर कुछ नहीं हुआ. मुख्यमंत्रियों व हाइकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि इसके बाद सरकार की अकर्मण्यता आती है, क्योंकि जजों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई. उन्होंने धन के आवंटन, बुनियादी संरचना और अन्य मुद्दों पर केंद्र एवं राज्यों के बीच चलने वाली रस्साकशी का भी जिक्र किया. इस समय लोगों और जजों के अनुपात की बात करें, तो यह प्रति दस लाख लोगों पर 15 है, जो कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा से काफी कम है.

मेक इन इंडिया के लिए भी जरूरी
न्यायमूर्ति ठाकुर ने मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘कारोबार करने में सहूलियत’ मुहिमों का जिक्र करते हुए कहा कि जिन्हें हम आमंत्रित (विदेशी निवेशक) कर रहे हैं, वे भी इस प्रकार के निवेशों से पैदा होने वाले मामलों और विवादों से निपटने में देश की न्यायिक व्यवस्था की क्षमता के बारे में चिंतित हैं.

1950 से अब तक का सफर
आंकड़े पेश करते हुए सीजेआइ ने बताया कि 1950 में जब सुप्रीम कोर्ट अस्तित्व में आया था तो इस शीर्ष अदालत में सीजेआइ समेत आठ जज थे और 1215 मामले लंबित थे. उस समय प्रति जज 100 मामले लंबित थे. 1960 में जजों की संख्या 14 हो गयी और लंबित मामले बढ़ कर 3,247 हो गये. साल 1977 में जजों की संख्या 18 और मामलों की संख्या 14,501 हो गयी. साल 2009 आते-आते शीर्ष अदालत में जजों की संख्या 31 हुई और लंबित मामले 77,181 हो गये. 2014 में मामलों की संख्या 81,582 थी जिसे 60,260 किया गया. दो दिसंबर को जब मैंने सीजेआइ का पदभार संभाला, तो तब से लेकर अब तक 17,482 मामले दाखिल किये गये जिसमें 16,474 मामले निपटाये गये. कानून मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक अधीनस्थ न्यायपालिका में जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 20,214 है, जबकि इसमें 4,580 पद खाली हैं. देश के 24 हाइकोर्टों में जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 1,056 है जबकि इस साल एक मार्च तक इसमें से 458 पद खाली हैं.

मैं आपसे हाथ जोड़ कर विनती करता हूं

प्रधान न्यायाधीश ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘…और इसलिए, यह मुकदमा लड़ रहे लोगों या जेलों में बंद लोगों के नाम पर नहीं है, बल्कि देश के विकास के लिए भी है. मैं विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है. देश का विकास न्यायपालिका की क्षमता से जुड़ा है. आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते.

प्रधानमंत्री बोले, मैं दर्द महसूस करता हूं

सम्मेलन में मोदी ने कहा कि ‘मैं उनका (सीजेआइ) का दर्द समझ सकता हूं, क्योंकि 1987 के बाद से अब तक काफी वक्त बीत चुका है. चाहे जो भी मजबूरियां रहीं हो, लेकिन कभी नहीं से बेहतर है कि ये कुछ देर से ही हो. हम भविष्य में बेहतर करेंगे. आइए, देखें कि अतीत के बोझ को कम करने के लिए कैसे आगे बढ़ा जा सकता है. ‘जब जागो, तब सवेरा.’

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