साल 2013 भारत के लिए इस मायने में खास रहा कि इस साल सर्वोच्च अदालत ने कई ऐसे अहम फैसले सुनाये, जिनकी न केवल व्यापक सराहना हुई, बल्कि उन्होंने न्यायपालिका में आम आदमी के भरोसे को और पुख्ता भी किया. हालांकि इनमें से कुछ फैसलों की आलोचना भी हुई, फिर भी साल के आखिरी पड़ाव पर यदि इन अहम फैसलों पर नजर डालें तो इनके जरिये हुए बदलावों की गूंज अगले साल भी सुनी जायेंगी. इस साल के कुछ ऐसे ही फैसलों के बारे में हम यहां बता रहे हैं.
* चुनाव सुधार की दिशा में फैसले
इस वर्ष 10 और 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने जन-प्रतिनिधियों से जुड़े दो अहम मामलों में ऐतिहासिक फैसले दिये. इनमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी मामले में कोई भी कोर्ट अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल से अधिक की सजा सुनाती है, तो सांसद भले उस सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करे, उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द हो जायेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सभी निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों पर तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश भी दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) निरस्त कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने दागी जनप्रतिनिधियों को एक राहत जरूर दी कि अगर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला इनके पक्ष में आयेगा, तो इनकी सदस्यता स्वत: ही वापस हो जायेगी. मालूम हो कि पहले फैसले के खिलाफ अपील करने पर ऊपरी कोर्ट का फैसला आने तक जनप्रतिनिधि की सदस्यता बरकरार रहती थी.
इसी तरह 11 जुलाई को सुनाये गये एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शख्स किसी वजह से जेल में बंद है यानी वह वोट देने की स्थिति में नहीं है, तो उसे चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं होगा. हालांकि, संसद ने इस फैसले को उलट दिया.
* नोटा का विकल्प
चुनाव सुधार की दिशा में 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का एक और फैसला सामने आया. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में और मतपत्रों में प्रत्याशियों की सूची के आखिर में इनमें से कोई नहीं यानी नोटा का विकल्प मुहैया कराएं, ताकि चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से असंतुष्ट होने की स्थिति में मतदाता उन्हें अस्वीकार कर सके.
* घोषणापत्र के कथ्य का नियमन
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश देते हुए कहा कि चुनावी घोषणापत्र के कथ्य के नियमन के लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं है. लिहाजा चुनाव आयोग को इस पर दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया. आदेश में कहा गया कि मुफ्त उपहार देने के राजनीतिक दलों के वादों से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों का स्तर प्रभावित होता है और चुनावी प्रक्रिया दूषित होती है. चुनावी घोषणापत्र चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले प्रकाशित होते हैं. ऐसे में आयोग इसे अपवाद के रूप में आचार संहिता के दायरे में ला सकता है.
* कुछ अन्य बड़े फैसले
– आधार कार्ड
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सितंबर महीने में अपने एक फैसले में कहा है कि आवश्यक सेवाओं, जैसे एलपीजी कनेक्शन, टेलीफोन कनेक्शन आदि के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है. साथ ही, यह भी कहा कि आधार कार्ड बनवाने या न बनवाने का फैसला लोगों की इच्छा पर है.
– लाल बत्ती
देश में लाल बत्ती के बढ़ते गैरकानूनी इस्तेमाल पर शिकंजा कसने के लिए दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को ही लाल बत्ती का उपयोग करने की इजाजत मिलेगी. इसके अलावा पुलिस, एंबुलेंस और अन्य आपात सेवा को नीली बत्ती का इस्तेमाल करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को लागू करने के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को तीन महीने का वक्त दिया. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, राज्य सरकारें लाल बत्ती का इस्तेमाल करनेवाले लोगों की लिस्ट नहीं बढ़ा सकती. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, अब सिर्फ आपातसेवा में सायरन का इस्तेमाल होगा. उसकी भी आवाज ऐसी होनी चाहिए, ताकि लोगों को परेशानी न हो.
– मुंबई बम ब्लास्ट
1993 में मुंबई में हुए बम ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े याकूब मेमन को सबसे बड़ा दोषी करार देते हुए उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा, जबकि अभिनेता संजय दत्त की सजा छह साल से घटाकर पांच साल कर दी. वहीं, टाडा अदालत से मौत की सजा पाने वाले अन्य 10 दोषियों की सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया गया.
– सीबीआइ को छूट
सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपी वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच में सीबीआइ को खुली छूट देते हुए एक आदेश में कहा कि कोर्ट के आदेश और निगरानी में हो रही जांच में सीबीआइ को संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच से पहले सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है.
– जहर की श्रेणी में तेजाब
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केंद्र ने महिलाओं पर तेजाब फेंकना जहर देने जैसा गुनाह करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर मुहर लगा दी. कोर्ट ने साथ ही इसे गैर-जमानती अपराध बनाने के निर्देश दिये. अदालत ने पीड़ितों को तीन लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया. तेजाब की बिक्री और भंडारण जहर कानून, 1919 के अनुसार होगा. इसका उल्लंघन करने पर इसी कानून के तहत न्यूनतम सजा तीन वर्ष और 50 हजार रुपये जुर्माना होगा.
– समलैंगिकता अपराध
वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध करार दिया गया है. उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में दिये अपने फैसले में धारा-377 के तहत समलैंगिक रिश्ते को गैर-अपराधिक कृत्य करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि आइपीसी की धारा-377 को हटाने के लिए संसद अधिकृत है, लेकिन जब तक यह प्रावधान मौजूद है, तब तक न्यायालय इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता.
– मौखिक आदेश पर अमल नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि नौकरशाहों को राजनेताओं द्वारा दिये गये मौखिक आदेशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए और नौकरशाहों को नेताओं की ओर से दिये गये सभी आदेशों पर कार्रवाई उनसे मिले लिखित संवाद के आधार पर करनी चाहिए. साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि एक नौकरशाह को एक तय न्यूनतम कार्यकाल दिये जाने से न केवल पेशेवराना अंदाज और प्रभावशीलता को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि अच्छा प्रशासन भी कायम होगा.
– अगले वर्ष 10 वरिष्ठ जज होंगे रिटायर
अगले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के 29 जजों में वरिष्ठ 10 जज सेवानिवृत्त हो जायेंगे. इनमें मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम के अलावा शीर्ष अदालत की दोनों महिला न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्र और रंजना प्रकाश देसाई भी शामिल हैं. मुख्य न्यायाधीश अगले वर्ष 26 अप्रैल को सेवानिवृत्त होंगे. अन्य सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों में जस्टिस आरएम लोढ़ा, जस्टिस बीएस संधू, जस्टिस एके पटनायक, जस्टिस केएस राधाकृष्णन, जस्टिस एसएस निज्जर, जस्टिस सीके प्रसाद, जस्टिस एचएल गोखले शामिल हैं.
– जस्टिस सदाशिवम बने मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस पलानीसामी सदाशिवम ने 19 जुलाई, 2013 को देश के 40वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ ली. जस्टिस सदाशिवम ऐसे पहले मुख्य न्यायाधीश हैं, जो इससे पहले किसी भी हाइकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश नहीं रहे. आमतौर पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का पद इस न्यायालय के सबसे वरिष्ठतम न्यायाधीश को मिलता है. 2007 में जस्टिस सदाशिवम को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया था.
– सरकार के बदले सुप्रीम कोर्ट से बढ़ी आस
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त, 2008 को टिप्पणी की थी, हम इस सरकार से तंग आ चुके हैं. भारत में यदि भगवान भी आ जायें तो वह हमारे देश को नहीं बदल सकते. ऐसे लोग जनहित याचिका दायर करते हैं, जो विभिन्न मुद्दों पर सरकार के रवैये से परेशान हैं.
यह टिप्पणी आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक लगती है. देश में निर्वाचित सरकार है. संसद है. तेज-तर्रार नौकरशाहों की बड़ी फौज है. इसके बावजूद कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट के 29 न्यायाधीश देश चला रहे हैं.
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा ने प्रभात खबर से कहा था, शीर्ष अदालत द्वारा सरकार को यह सलाह देना कि आपका यह काम है और आप इसे बेहतर करें, जायज है. साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि शीर्ष अदालत को अपने अधिकार क्षेत्र की लक्ष्मण रेखा को समझना चाहिए. लेकिन न्याय की उम्मीद लगाये किसी व्यक्ति की याचिका को कोर्ट ठुकरा भी नहीं सकता.
अब शिक्षा, स्वास्थ्य, कुपोषण, समाज कल्याण, सुरक्षा, भ्रष्टाचार आदि से संबंधित शिकायतों को लेकर लोग शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं. ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकार को दिशा-निर्देश जारी कर रहा है. इससे साफ है कि जो काम सरकार को करना चाहिए था, उसे लेकर अब लोग सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद लगा रहे हैं.
जनहित से जुड़े मामलों में इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट की कुछ अहम टिप्पणियां-
– शिक्षा: देश में शिक्षा अपने उद्देश्य को नहीं पा सकी है, इसमें तत्काल सुधार की जरूरत है.
– स्वास्थ्य: दवाओं का क्लीनिकल परीक्षण लोगों के फायदे के लिए होना चाहिए, न कि कंपनियों के फायदे के लिए.
– सुरक्षा: सुरक्षा रसूख दिखाने का जरिया बन गयी है और इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा क्यों प्रदान की जा रही है, जबकि आम आदमी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है?
– समाज : किन्नर समाज में अछूत बने हुए हैं. उनके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
– जनकल्याण : बिहार में मिड-डे-मील जैसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों ने क्या कदम उठाये हैं?
* तब होगी 75 हजार जजों की जरूरत
इस समय में निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के लगभग 18 हजार जजों पर तीन करोड़ मामले निबटाने की जिम्मेवारी है. अगले तीन दशकों में 15 करोड़ नये मामले बढ़ने का अनुमान है और इसके लिए 75 हजार जजों की जरूरत होगी. यह तथ्य सुप्रीम कोर्ट के नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम (एनसीएमएस) नीति व कार्य योजना दस्तावेज से सामने आयी है.
देश व वैश्विक अनुभव के आधार पर दस्तावेज में कहा गया है कि साक्षरता दर और आर्थिक संपन्नता बढ़ने के कारण अदालतों में मामले दर्ज करने की संख्या भी बढ़ रही है. इसे लेकर केरल और झारखंड का उदाहरण दिया गया है. केरल की साक्षरता दर 90 फीसदी है और वहां प्रति हजार जनसंख्या पर 28 नये मामले दर्ज होते हैं. वहीं झारखंड की साक्षरता दर लगभग 53 फीसदी है और वहां प्रति हजार केवल चार नये मामले दर्ज होते हैं. ऐसे में संभावना जतायी गयी है कि देश में अगले तीन दशकों में प्रति हजार 15 नये मामले दर्ज हो सकते हैं, जबकि बीते तीन दशकों में यह आंकड़ा प्रति हजार मात्र तीन का था.
इसमें तीन दशक बाद प्रति वर्ष 15 करोड़ नये मामले दर्ज होने का अनुमान लगाया गया है. इसका मतलब है कि अगर प्रति दस लाख जनसंख्या पर 50 जज नियुक्त किये जायें, तो इस आधार पर डेढ़ अरब की जनंसख्या के लिए कुल 75 हजार जजों की जरूरत होगी. मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों में महज 18,871 जज कार्यरत हैं, जबकि 3,947 पद रिक्त हैं.
* देश में किराये पर चल रही हैं 757 अदालतें
भले ही यह चौंकानेवाली बात हो, लेकिन यह हकीकत है कि देश में कई अदालतें किराये के भवनों में चल रही हैं. दस्तावेज के अनुसार, 16 सितंबर, 2012 तक देश में कुल 4,223 अदालत भवनों में से 757 भवन किराये पर थे.
* विवादों के छींटे भी पड़े
– जस्टिस एके गांगुली पर लगा यौन शोषण का आरोप
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली पर लॉ इंटर्न के यौन शोषण का कथित आरोप लगा. आरोपों को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय कमिटी ने सही पाया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि लॉ इंटर्न के बयानों और अन्य साक्ष्यों से जाहिर होता है कि पूर्व न्यायाधीश ने अवांछित आचरण किया, जो यौन दुर्व्यवहार के दायरे में आता है. हालांकि, मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने स्तर से न्यायाधीश गांगुली के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा, क्योंकि जब घटना हुई थी, तब वे रिटायर हो चुके थे. इसके बाद न्यायाधीश गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग से हटाने की मांग के साथ ही एफआइआर दर्ज करने की मांग तेज हो गयी है.
– पूर्व मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर पर लगे आरोप
गुजरात हाइ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भास्कर भट्टाचार्य ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रहे अल्तमस कबीर पर गंभीर आरोप लगाये. अपनी शिकायत में उन्होंने कहा कि कोलकाता हाइकोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर कबीर की बहन की नियुक्ति का विरोध करने के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति नहीं मिल पायी. जस्टिस कबीर पर दूसरा आरोप सहारा ग्रुप को फायदा पहुंचाने का भी लगा. उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने सहारा के निवेशकों का 24 हजार करोड़ रुपये लौटाने के लिए तीन महीने का वक्त दिया. हालांकि, जस्टिस कबीर ने कहा कि यह फैसला उनका अकेला नहीं, बल्कि तीन जजों की पीठ का था.
* ..और यह भी
– कानून मंत्री को जाना पड़ा
26 अप्रैल को कोयला घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में सीबीआइ के निदेशक रंजीत सिन्हा ने माना था कि उन्होंने रिपोर्ट को कानून मंत्रलय, कोयला मंत्रलय और पीएमओ कार्यालय से साझा किया था. शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि जिस तरह से घोटाले की जांच की स्टेटस रिपोर्ट को सरकार के लोगों से साझा किया गया, उससे पूरी प्रक्रिया को झटका लगा है. सीबीआइ निदेशक के हलफनामे की बातें परेशान करनेवाली हैं कि सरकार ने हमारा भरोसा तोड़ा है. स्टेटस रिपोर्ट सरकार से साझा करने से हमारी जांच की बुनियाद हिल गयी है.
इससे पहले अडिशनल सॉलीसिटर जनरल ने 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सीबीआइ की स्टेटस रिपोर्ट किसी नेता के साथ साझा नहीं की गयी. सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद तत्कालीन कानून मंत्री अश्वनी कुमार को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
– बनाया विश्व रिकार्ड
इस वर्ष 23 नवंबर को देशभर में आयोजित पहली लोक अदालत में लगभग 30 लाख मामलों का निपटारा किया गया. इन मामलों में चेक बाउंस, सिविल, दुर्घटना और सेवाओं के अलावा पारिवारिक कलह शामिल थे. इस तरह लंबित पड़े तीन करोड़ केसों में से दस प्रतिशत का निपटारा हो गया. मामले निपटाने की इस तरह की व्यवस्था करने वाले राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के अनुसार, इतने सारे अदालती मामलों को एक साथ निपटाने का यह विश्व रिकॉर्ड है. लोक अदालत का उद्घाटन करते हुए मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम ने कहा था कि व्यवस्था में भरोसा बनाये रखने के लिए, हर वर्तमान सदस्य के लिए जरूरी है कि वह उसके सामने लाये गये हर मामले को किसी दबाव, धमकी, गलत प्रभाव, प्रलोभन और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गलतबयानी के बिना शांतिपूर्ण तरीके से निपटाएं.