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मैं ससुराल तभी जाऊंगी, जब मिलेगा पक्का शौचालय

इंदौर : मध्यप्रदेश के देवास जिले में खुले में शौच की मजबूरी से होने वाली शर्मिंदगी और परेशानी के चलते अपने पति को छोड़कर मायके में रह रही 27 वर्षीय दलित महिला के सामने उसके जीवनसाथी को आखिरकार झुकना पड़ा. इस महिला के पति ने जब अदालत के सामने वादा किया कि वह अपने घर […]

इंदौर : मध्यप्रदेश के देवास जिले में खुले में शौच की मजबूरी से होने वाली शर्मिंदगी और परेशानी के चलते अपने पति को छोड़कर मायके में रह रही 27 वर्षीय दलित महिला के सामने उसके जीवनसाथी को आखिरकार झुकना पड़ा. इस महिला के पति ने जब अदालत के सामने वादा किया कि वह अपने घर पक्का शौचालय बनवायेगा, तभी वह ससुराल लौटने को राजी हुई और एक परिवार टूटने से बच गया.

यहां से करीब 75 किलोमीटर दूर कोई 1,200 लोगों की आबादी वाले गांव मुंडलाआना में रहने वाला देवकरण मालवीय (30) करीब सात साल पहले सविता (27) के साथ विवाह के बंधन में बंधा था.सविता का लगभग तीन साल पहले पति से विवाद हुआ, तो वह अपने दोनों बच्चों के साथ मायके चली गयी. उसने भरण-पोषण का खर्च हासिल करने के लिये देवास जिले के बागली की अदालत में जून 2012 में अपने पति के खिलाफ मुकदमा भी दायर कर दिया.

प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी (जेएमएफसी) जयंत शर्मा ने जब पति-पत्नी को समझाकर उनके बीच सुलह वार्ता करायी, तो खुलासा हुआ कि इस दंपती के बीच विवाद की जड़ कुछ और नहीं बल्कि उनके घर पक्के शौचालय का अभाव है.

अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान छह दिसंबर को कहा, यह तथ्य सामने आया है कि देवकरण के घर पक्का शौचालय नहीं बनवाया गया है. ऐसी स्थिति में सविता को खुले में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है और इस कारण दोनों पक्षों (पति-पत्नी) में विवाद होता है. सुलह वार्ता के दौरान सविता ने पेशकश की कि यदि उसका पति अपने घर पक्का शौचालय बनवा लेता है, तो वह ससुराल लौटकर उसके साथ रहने को तैयार है.

अदालत ने टिप्पणी की, किसी महिला का खुले मेंे शौच करना मानवीय आधार पर उचित नहीं है. प्रत्येक मनुष्य को ससम्मान दैनिक नित्य कर्म (मल-मूत्र त्याग) करने का अधिकार है तथा एक पति का भी यह नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को इस सिलसिले में उसकी गरिमा के अनुरुप सुविधाएं प्रदान करे. जेएमएफसी ने देवकरण को आदेश दिया कि वह 24 दिसंबर से पहले अपने निवास स्थान पर पक्के शौचालय का निर्माण करके अदालत को इससे अवगत कराये.

बहरहाल, मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. जैसा कि सविता के वकील प्रवीण चौधरी ने आज बताया, कल 24 दिसंबर को जब मामले की फिर सुनवाई हुई, तो पता चला कि देवकरण ने अदालत के आदेश पर अपने घर पक्का शौचालय तो बनवा लिया है. लेकिन उसने इसमें दरवाजे की जगह परदा लगा रखा है.

उन्होंने कहा, मेरी पक्षकार सविता ने अदालत में जोर देकर कहा कि जब तक उसका पति अपने घर बने पक्के शौचालय में दरवाजा नहीं लगवाएगा, वह ससुराल नहीं लौटेगी. मामले की संवेनशीलता को समझते हुए मेरे विपक्षी वकील ने भी दम्पति के बीच जारी समझौता वार्ता को अंतिम नतीजे तक पहुंचाने में मदद की.ह्ण समझौता वार्ता आगे बढ़ने पर दोनों पक्षों के बीच आखिरकार यह सहमति बनी कि देवकरण आगामी पेशी दिनांक (10 जनवरी 2014) तक शौचालय का निर्माण कार्य पूरा करके इसमें दरवाजा लगवायेगा और अगली सुनवाई के दौरान अपनी पत्नी को अदालत से ही अपने साथ ले जाने को तत्पर रहेगा.

जेएमएफसी ने भी देवकरण को लिखित आदेश देकर इस बात के लिए पाबंद किया कि वह अगली पेशी तक अपने घर के शौचालय में दरवाजा लगवाकर इसका निर्माण कार्य पूरा कराये और आगामी 10 जनवरी को अदालत के सामने आवश्यक रुप से उपस्थित रहे.

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