13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने मुसलिम सहित अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक की पर्सनल लॉ संबंधी समिति की रिपोर्ट तलब की

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र से उस समिति की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा जिसका गठन मुस्लिमों सहित विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों के विवाह, तलाक और संरक्षण से संबंधित पर्सनल लॉ के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए किया गया था. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र से उस समिति की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा जिसका गठन मुस्लिमों सहित विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों के विवाह, तलाक और संरक्षण से संबंधित पर्सनल लॉ के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए किया गया था. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से अदालत में छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा.पीठ ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शायरा बानो नामक महिला द्वारा दायर याचिका पर जवाब भी मांगा है. शायरा बानो ने मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह, एक साथ तीन बार तलाक कहने (तलाक ए बिदत) और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी है.

मुसलमानों में प्रचलित तलाक प्रथा में पति एक तुहर (दो मासिकधर्मों के बीच की अवधि) में, या सहवास के दौरान तुहर में, या फिर एकसाथ तीन बार तलाक कह कर पत्नी को तलाक दे सकता है. इस बीच, पीठ ने उच्चतम न्यायालय की रजिस्टरी को छह सप्ताह के अंदर, मुद्दे पर याचिका के न्यायिक रिकार्ड की प्रति उपलब्ध कराने को कहा, जिसे उसने एक अलग याचिका के तौर पर लिया है. इस माह के शुरू में उच्चतम न्यायालय ने शायरा बानो की अपील पर केंद्र से जवाब मांगा था.
शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है.शायरा बानो ने कहा है कि उसके पति तथा ससुराल वालों ने उससे दहेज मांगा, उसके साथ क्रूरता की तथा उसे नशीली दवाएं दीं जिससे उसकी याददाश्त कमजोर होने लगी, वह बेहोश रहने लगी और गंभीर रुप से बीमार हो गयी.
तब उसके पति ने तीन बार तलाक कह कर उसे तलाक दे दिया. याचिकाकर्ता ने ‘‘डिजॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिजेस एक्ट 1939′ को भी यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह भारतीय मुस्लिम महिलाओं को द्विविवाह से बचाने में असफल रहा है.शायरा बानो ने अपनी याचिका में कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, खास कर एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी दिए जाने के बावजूद पहले विवाह के रहते हुए मुस्लिम पति द्वारा दूसरा विवाह करने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय द्वारा विचार किए जाने की जरूरत है.
याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है जबकि पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है और 21 वीं सदी के प्रगतिशील समय के आलोक में यह सही नहीं है.अपील में उसने कहा है ‘‘चाहे पति ने किसी तरह के नशे में ही तलाक क्यों न कहा हो, उसे तलाक दिए जाने के बाद महिला को वापस अपनी पत्नी के तौर पर तब तक स्वीकार करने की अनुमति नहीं होती, जब तक वह महिला निकाह हलाला से न गुजरे. निकाह हलाला में उसे एक अन्य व्यक्ति से विवाह करना होता है और फिर वह उसे तलाक देता है ताकि वह अपने पूर्व पति से पुन: विवाह कर सके.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें