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देवदासी प्रथा : केंद्र पर लगाया 25 हजार रुपये का जुर्माना

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देवदासी प्रथा और इसके उन्मूलन की संभावना के बारे में समय से हलफनामा दाखिल करने में विफल रहने पर केंद्र सरकार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि चूंकि 11 सितंबर को अंतिम अवसर […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देवदासी प्रथा और इसके उन्मूलन की संभावना के बारे में समय से हलफनामा दाखिल करने में विफल रहने पर केंद्र सरकार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि चूंकि 11 सितंबर को अंतिम अवसर दिये जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया है, इसलिए उस पर 25 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया जाता है. हालांकि, न्यायालय ने संबंधित प्राधिकारी को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. इससे पहले, इस साल सितंबर में केंद्र महिलाओं को कथित रूप से ‘देवदासी’ बनने के लिये बाध्य करने की प्रथा के बारे में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने पर सहमत हुआ था.

न्यायालय ने उस समय स्पष्ट किया था कि इसके बाद उसे और समय नहीं दिया जायेगा. न्यायालय अब इस मामले में आठ जनवरी को आगे सुनवाई करेगी. ‘देवदासी’ एक ऐसी महिला होती है जो अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की पूजा और सेवा में या मंदिर के लिये समर्पित कर देती है. न्यायालाय ने गैर सरकारी संगठन एस एल फाउण्डेशन की जनहित याचिका पर पिछले साल केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था. इस याचिका में केंद्र और कर्नाटक सरकार को राज्य के देवनगर जिले के उत्तांगी माला दुर्गा मंदिर में 13 फरवरी, 2014 की आधी रात को ‘देवदासी’ समर्पण को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.

न्यायालय को सूचित किया गया था कि यह गतिविधि कर्नाटक देवदासी समर्पण निषेध कानून, 1982 के खिलाफ है ओर इससे किशोर के अधिकारों का हनन होता है. उस समय न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में होने वाले इस कार्यक्रम में, जहां दलित किशोरियों को ‘देवदासी’ के रूप में समर्पित किया जाना था, के संबंध में सभी एहतियाती उपाय करने का निर्देश दिया था. न्यायालय ने मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था कि 13 फरवरी, 2014 की रात या फिर 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में ऐसी कोई घटना नहीं हो. पीठ ने इस जनहित याचिका पर कर्नाटक सरकार को जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया था.

इस याचिका में देवदासी प्रथा रोकने के लिये दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध करते हुये कहा गया था कि यह राष्ट्रीय शर्म की बात है. गैर सरकारी संगठन ने आरोप लगाया था कि देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में यह कुप्रथा जारी है. इस संगठन ने न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था. यह संगठन चाहता है कि देश के किसी भी हिस्से में देवदासी प्रथा निषेध करने के लिये कानून और दिशानिर्देश बनाने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया जाये.

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