-रूस-चीन की यात्रा पूरी कर स्वदेश लौटे-
।।प्रधानमंत्री के विशेष विमान से हरिवंश।।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि वह कानून से ऊपर नहीं हैं. हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक के आबंटन की जांच के मामले में वह सीबीआइ या किसी का भी सामना करने को तैयार हैं. उनके पास छिपाने को कुछ भी नहीं है. सिंह ने 10 दिन पहले विवाद शुरू होने के बाद पहली दफा चुप्पी तोड़ी है. सीबीआइ द्वारा कोलगेट में उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद से मनमोहन सिंह विपक्ष के निशाने पर हैं. प्रधानमंत्री गुरुवार की देर शाम रूस और चीन की यात्र पूरी करके स्वदेश लौट आये.
इससे पूर्व उन्होंने अपने विशेष विमान में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘मैं देश के कानून से ऊपर नहीं हूं. अगर कुछ है जिसके बारे में सीबीआइ या कोई भी मुझसे पूछना चाहता है, तो मैं पेशी के लिए तैयार हूं. मेरे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है.’ शुरुआत में डॉ सिंह इस सवाल का जवाब देने से बचते दिखे कि क्या सीबीआइ को इतनी स्वायत्तता दी जानी चाहिए कि एजेंसी के किसी इंस्पेक्टर को प्रधानमंत्री से पूछताछ की अनुमति दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘मैं कहना चाहता हूं कि यह मामला अदालतों में है. मैं इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा.’ डॉ सिंह ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है मैं उसमें नहीं जाना चाहूंगा. देश की शीर्ष अदालत है और मैं कोर्ट के बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या सीबीआइ के मामलों और घोटालों से पीएम के तौर पर उनकी विरासत को प्रभावित कर रहे हैं? उन्होंने कहा, ‘इसका फैसला इतिहास को करना है. मैं अपना काम कर रहा हूं और अपना काम करता रहूंगा. मेरे 10 साल तक प्रधानमंत्री रहने का क्या असर हुआ इसका फैसला इतिहासकार करेंगे.’
नवाज शरीफ से निराश हूं: प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं नवाज शरीफ से निराश हूं क्योंकि न्यू यॉर्क बैठक (दोनों नेताओं के बीच पिछले माह हुई बैठक) में आमतौर पर यह सहमति बनी थी कि सीमा पर, नियंत्रण रेखा पर और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दोनों पक्ष शांति बनाये रखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह मेरे लिये बहुत निराशा की बात है.’ डॉ सिंह ने कहा, ‘हम इस बात पर राजी हुए थे कि अगर वर्ष 2003 का युद्धविराम समझौता दस साल तक चला, तो यह आगे भी कारगर रह सकता है. वह नहीं हुआ और यह वास्तव में निराशाजनक है.’
तेलंगाना का हल ढूंढ़ लेगा मंत्री-समूह: डॉ सिंह ने उम्मीद जतायी कि तेलंगाना मुद्दे पर गठित मंत्री-समूह इस जटिल समस्या का ‘समाधान’ तलाश लेगा. यह मामला अब मंत्री-समूह के सामने है. वे इस समस्या के हर पहलू पर विचार कर रहे हैं और मुझे यकीन है कि वे इस बहुत ही कठिन और जटिल समस्या का व्यवहार्य समाधान तलाशने में कामयाब रहेंगे.
रूस-चीन यात्रा सफल रही: रूस और चीन की यात्रा के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि ये काफी सफल रही और भविष्य में इसका काफी लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि भारत और चीन दोनों ही देश सीमा पर शांति चाहते हैं. हम आगे भी बढ़े हैं. मैं चीन और रूस की यात्राओं से संतुष्ट हूं. इनके नतीजे भी जल्द ही मिलने लगेंगे.
नरेंद्र मोदी होंगे फीके
प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा का नरेंद्र मोदीनीत अभियान जल्दी ही फीका पड़ जायेगा. देश फिर उन नतीजों से ‘चकित रह जायेगा.’ कांग्रेस फिर से सत्ता में आयेगी. पीएम ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से सक्रिय है. भाजपा ने भले ही जल्दी शुरुआत की हो, लेकिन यह जल्दी ही फीकी पड़ेगी. मैं समझता हूं कि धीमा व सतत प्रयास ऐसी चीज है, जो कभी-कभी राजनीति में भी सफल होता है.
राहुल को नहीं होने देंगे नुकसान
प्रधानमंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार सुनिश्चित करेगी कि राहुल गांधी को कोई नुकसान न पहुंचे. इसके लिए सभी ‘एहतियाती’ कदम उठायेंगे. लेकिन ‘देश में घृणा की राजनीति’ चिंताजनक है. मुङो और सभी समझदार लोगों को देश में घृणा की राजनीति से चिंतित होना चाहिए. प्रधानमंत्री से राहुल के उस बयान के बारे में पूछा गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें भी मार दिया जायेगा.
सीमा पर शांति से होगी प्रगति
-चीन के सेंट्रल स्कूल में बोले मनमोहन सिंह-
।। बीजिंग से हरिवंश।।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत व चीन के संबंधों में प्रगति हुई है. आपसी सहयोग बढ़ा है. दोनों देशों द्वारा मतभेदों को सुलझाना और सीमावर्ती इलाके को शांत रखना है. उन्होंने दोनों देशों के बीच रिश्तों की रूपरेखा रखी. प्रधानमंत्री ने ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल पार्टी स्कूल’ में भविष्य के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि गंठबंधन व नियंत्रण के पुराने सिद्धांत अब प्रासंगिक नहीं रह गये हैं.
भारत-चीन को रोका नहीं जा सकता. हमारा हाल का इतिहास इसका गवाह है. न ही हमें दूसरों को रोकने के बारे में सोचना चाहिए. डॉ सिंह का यह भाषण चीनी यात्रा पर आये किसी भी विदेशी नेता को मिला एक दुर्लभ सम्मान है. इससे पूर्व जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर भी यहां कम्युनिस्ट नेताओं को संबोधित कर चुके हैं.
छह सूत्रीय सहयोग की पेशकश : प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के बीच सहयोग पेशकश क्षेत्र की छह सूत्री रूपरेखा भी पेश की. अगले पांच वर्षो में आधारभूत संरचना में एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की भारतीय योजना में चीनी निवेश को आमंत्रित किया.
उठाया आतंकवाद का मुद्दा: प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान का नाम लिये बगैर आगाह किया कि ‘हमारे पड़ोस’ से पैदा होनेवाले आतंकवाद व कट्टरपंथ ने भारत व चीन को सीधे प्रभावित किया है. इससे पूरे एशिया में अस्थिरता आ सकती है. भारत अपने यहां कश्मीर में और चीन अपने यहां जिनजियांग प्रांत में पाकिस्तान की सरजमीं से पैदा हो रहे आतंकवाद का सामना कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत और चीन को व्यापक तौर पर स्थिर वैश्विक व्यवस्था व शांतिपूर्ण परिधि से फायदा हुआ है, परंतु हम स्थिर राजनीतिक व सुरक्षा माहौल को हलके में नहीं ले सकते.’
आपसी विश्वास बहुत जरूरी : डॉ सिंह ने कहा, ‘यह 1950 के दशक में प्रधानमंत्री (जवाहर लाल) नेहरू व चीनी प्रधानमंत्री चाव एनलाई द्वारा प्रतिपादित पंचशील का समकालीन विकास है.’ उन्होंने कहा, ‘यह आपसी विश्वास और हमारे संबंधों के विस्तार के लिए आवश्यक है. हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे यह बाधित होती हो. निश्चय ही, हम अपने समझौतों का पालन व द्विपक्षीय तंत्र का प्रभावी ढंग से उपयोग करके इसे हासिल कर सकते हैं.
‘‘ हमारे भविष्य के फैसले मुकाबले से नहीं, सहयोग से होने चाहिए. यह आसान नहीं होगा, पर हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. हमारे बीच जो दावं पर है, वह है भारत और चीन का भविष्य. वास्तव में, जो दावं पर लगा हो सकता है, वह है हमारे क्षेत्र और हमारे विश्व का भविष्य.
दिये सात सूत्रीय सिद्धांत
प्रधानमंत्री ने चीन के साथ रिश्तों की नयी शुरु आत की दिशा में बड़ी पहल करते हुए एक सात सूत्री सिद्धांत दिया है, जिनमें लगभग छह दशक पहले दोनों देशों के बीच हुए पंचशील समझौते का पालन भी शामिल है.
ये हैं सात सूत्र
1. पंचशील के सिद्धांतों का पालन
2. सीमा पर शांति
3. व्यापार और नदियों जैसे जटिल मुद्दों पर बातचीत और आपसी सहयोग सेसमाधान ढूंढ़ना
4. उच्च स्तरीय रणनीतिक संवाद
5. वैश्विक मुद्दों पर समान विचारधारा विकसित करना
6. आपसी संबंधों के सभी पहलुओं पर सहयोग की संभावना तलाशना
7. दोनों देशों के बीच जनसंपर्कबढ़ाना.