मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में अपने विरोध प्रदर्शन के कारण शिवसेना एक बार फिर चर्चे में आ गयी है. हाल ही में पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली और पूर्व भाजपा नेता सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोतकर पार्टी ने पाकिस्तान विरोधी अपनी मंशा लोगों के सामने जाहिर की. वहीं आज पार्टी कार्यकर्ताओं ने बीसीसीआई ऑफिस में पीसीबी अध्यक्ष शहरयार खान और शशांक मनोहर की मुलाकात का विरोध करके जता दिया है कि वह हर पाकिस्तानी कार्यक्रम का आगे भी विरोध करेगी. इस तरह की रणनीति अपनाकर शिवसेना ने जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है.
सूबे में कभी बड़ी पार्टी के रुप में पहचान रखने वाली शिवसेना का कद धीरे-धीरे छोटा होता जा रहा है. जानकारों की माने तो राज्य में शिवसेना अब तक बड़े भाई वाले रोल में थी, पर अब छोटा भाई बननेवाली स्थिति को शायद बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. भाजपा ने विधानसभा चुनाव में भारी जन समर्थन के साथ जब बता दिया कि बड़ा भाई वह है तो इससे उद्धव के ललाट पर बल पड़ गए. जानकार मानते हैं कि अपने कद को बढाने के लिए शिवसेना इनदिनों अपनी राणनीति में बदलाव कर रही है हालांकि यह पहली बार नहीं है जब शिवसेना किसी मुद्दे को लेकर इस प्रकार का विरोध प्रदर्शन कर रही है.
पार्टी के जनक बाल ठाकरे के समय में भी शिवसेना अपने प्रदर्शन को लेकर चर्चे में रहती थी. 19 जून 1966 में जन्म लेने वाली इस पार्टी ने मराठियों के हित को लेकर हमेशा से आवाज बुलंद किया है लेकिन अब इस पार्टी से राज ठाकरे के अलग हो जाने से पार्टी को थोड़ा नुकसान हुआ है साथ ही भाजपा ने भी मराठियों के दिल में अपने लिए जगह बना ली है.
नया नहीं है शिवसेना का यह रुप
एक वक्त था जब बाल ठाकरे ने एक कलाकार और जनोत्तेजक नेता के रूप में हिटलर की तारीफ की थी जिसके बाद जमकर विवाद हुआ था यही नहीं 1990 के दशक में श्रीलंका में आतंक का प्रयाय बने लिट्टे को खुला समर्थन देने के बाद भी वे चर्चे में आ गए थे. वेलेंटाइन डे के विरोध में लड़के-लड़कियों की खुलेआम पिटाई को लेकर भी बाल ठाकरे आलोचना का शिकार बन चुके हैं. शुरुआती दिनों से ही शिवसेना पर डर और नफरत की राजनीति करने के आरोप लगते आए हैं. सत्ताधारी पार्टियां तक उनसे डरती थीं, लेकिन बाद में यह डर धरे-धीरे कम होता चला गया. बाल ठाकरे के मुख्य विवाद बिंदु में 6 मार्च 2008 को भूला नहीं जा सकता है. मुंबई में रोजी रोटी कमाने के लिए आने वाले बाहरी लोगों के खिलाफ उन्होंने आवाज उठायी जिसका प्रभाव अजतक समय-समय पर देखा जाता है जब बिहारी को बाहरी बताकर उनकी पिटाई कर दी जाती है. ठाकरे ने बिहारी लोगों को महाराष्ट्र में अवांछनीय बताते हुए शिव सेना के मुखपत्र सामना में लिखा था ‘एक बिहारी, सौ बीमारी.’ 20 नवंबर 2009 को शिव सैनिकों ने मराठी चैनल आईबीएन-लोकमत और हिन्दी चैनल आईबीएन-7 पर पुणे और मुंबई में हमला किया. जिसके बाद बीबीसी ने बाल ठाकरे को पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र का बेताज बादशाह बताया था. पाकिस्तानी गायक गुलाम अली का विरोध करने वाली शिवसेना ने 1996 में पॉप स्टार माइकल जैक्सन का मुंबई में जोरदार स्वागत किया था. 25 जुलाई 2000 को मुंबई उस समय ठहर गई जब बाल ठाकरे को 1993 दंगों के दौरान मुसलमानों पर हमले करने के लिए उकसाते हुए सामना में एक लेख लिखा जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई. इसके अलावा भी बाल ठाकरे कई वजहों से विवाद में रह चुके हैं.
हालिया विवाद
आज बीसीसीआइ कार्यालय के दफ्तर में प्रदर्शन और इससे पहले पाकिस्तानी गायक गुलाम अली के कार्यक्रम को लेकर हंगामा, पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी के किताब विमोचन का विरोध से शिवसेना की बेचैनी साफतौर पर झलक रही है. आज सुबह लगभग 10.30 बजे उग्र शिवसैनिक बीसीसीआई के दफ्तर में घुस गये और उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर के सामने नारेबाजी की. शिवसैनिक पीसीबी अध्यक्ष शहरयार खान और शशांक मनोहर की मुलाकात का विरोध कर रहे थे. शिवसैनिकों ने यहां हंगामा करते हुए शहरयार खान वापस जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए. इससे पहले कसूरी की किताब विमोचन के पहले पूर्व भाजपा नेता और कभी लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी रहे सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर शिवसैनिकों ने कालिख पोत दी थी जिसके बाद पार्टी की जमकर आलोचना हुई थी. कालिख पोतने वालों को उद्धव ठाकरे ने सम्मानित करके आग में घी डालने का काम किया था. 9 सिंतंबर को पाकिस्तानी गायक गुलाम के कार्यक्रम का शिवसेना ने विरोध किया जिसके बाद इस कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. यह कार्यक्रम मुंबई में होना था. मुंबई के कार्यक्रम के रद्द होने के बाद 10 सितंबर को पुणे में होने वाले कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया. शिवसेना के इस रवैए के कारण महाराष्ट्र सरकार विपक्षी पार्टी के निशाने पर है. आपको बता दें कि सूबे में भाजपा-शिवसेना नीत सरकार है. हाल ही में एक चैनल से बात करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि शिवसेना का विचार भाजपा से अलग है अगर ऐसा नहीं होता तो दोनों पार्टियां एक होतीं.
भविष्य का खाका
खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब का विमोचन महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन की सरकार के भविष्य पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. आपको बता दें कि केंद्र और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी शिवसेना ने निकाय चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया है. कल्याण-डोंबिवली नगरपालिका चुनाव में अब दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी. खबरों की माने तो पिछले कई दिनों से सीट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों में रस्साकशी चल रही थी. शिवसेना महाराष्ट्र में सूखे के कारण सरकार की खराब होती छवि से भी चिंतित है. जानकारों की माने तो शिवसेना महाराष्ट्र में सूखे का मुद्दा उठाकर सरकार से अलग हो सकती है. ऐसा करने से वह मराठियों का प्यार पा सकती है और अपनी पहले वाली छवि यानी राज्य में बड़े भाई की छवि को जागृत कर सकती है.