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लालू-नीतीश से नाता तोड मुलायम सिंह यादव ने फिर साबित किया उनकी राजनीति समझना सबसे मुश्किल

राहुल सिंह देश के दो राजनेताओं के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि उनकी राजनीति और अगली चाल को समझना बेहद मुश्किल है. ये दो नेता हैं : समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार. इन दोनों के किस हां में ना है और किस न में […]

राहुल सिंह

देश के दो राजनेताओं के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि उनकी राजनीति और अगली चाल को समझना बेहद मुश्किल है. ये दो नेता हैं : समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार. इन दोनों के किस हां में ना है और किस न में हां है यह समझना दुष्कर कार्य है. मुलायम सिंह यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागंठबंधन से नाता तोड कर आज फिर इसे साबित कर दिया. मुलायम के नेतृत्व में आज लखनउ पर हुई पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठक में फैसला लिया गया कि समाजवादी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले लडेगी. मीडिया को इस फैसले की जानकारी देने सामने आये सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने यह भी चुनाव के मद्देनजर अन्य दलों से वार्ता की बात कह कर यह संकेत भी दे दिया कि वह बिहार में तीसरे मोर्चे पर भी विचार कर सकते हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह संभावित तीसरा मोर्चा या तीसरा धडा किसे नुकसान और किसे लाभ पहुंचायेगा. ध्यान रहे कि पांच दिन पहले ही मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने पटना के गांधी मैदान में महागंठबंधन की रैली में शिरकत कर मुलायम सिंह का समर्थन और संदेश बिहार की जनता को सुनाया था.
चतुर राजनेता मुलायम की कठोर राजनीति
मुलायम सिंह यादव देश के सर्वाधिक चतुर राजनेताओं में शुमार किये जाते हैं और वे हर परिस्थिति में इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि आगे क्या फैसला लिया जाना है. उनके द्वारा अचानक उठाये गये कदमों को राजनीति में उनकी यूटर्न शैली भी कहते हैं, लेकिन वास्तव में वह एक मंझे हुए राजनेता का सधा कदम होता है.
संसद का हालिया मानसून सत्र
हाल ही में संसद के मानसून सत्र में वे मुलायम सिंह यादव ही थे, जिन्होंने कांग्रेस के तीखे विरोध-प्रदर्शन को हवा दी. मुलायम ने एक हद तक भाजपा को घेरने के कांग्रेस के अरमानों को हवा भरी और अचानक हवा निकाल भी दी. संसद सत्र के हंगामे दर सत्र में अचानक नेताजी का बयान आया कि अब हम कांग्रेस के ओर हंगामे का समर्थन नहीं कर सकते. सपा ने जीएसटी बिल के खुले समर्थन में भी आ गयी.
प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना
याद कीजिए, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अनिच्छा के बावजूद कैसे मुलायम सिंह यादव व ममता बनर्जी के रणनीतिक तालमेल ने उन्हें प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करने के लिए बाध्य कर दिया था. सोनिया शुरुआत में प्रणव को छोड किसी और को उम्मीदवार बनाना चाहती थीं उनका झुकाव मौजूदा व तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की ओर था. हालांकि कांग्रेस की दबी जुबान पर प्रणव मुखर्जी का ही नाम था, और ममता जानतीं थी कि वह प्रणव का तीखा विरोध करेंगी तभी उनके राष्ट्रपति बनने की राह आसान हो सकेगी. उस समय कांग्रेस की हां में ना और ममता की ना में हां छिपा था. ममता यूपीए सरकार में उस समय कांग्रेस के बाद सबसे बडी हिस्सेदार थीं और सपा-तृणमूल के पास राष्ट्रपति चुनाव के 11 प्रतिशत वोट थे और वही जीत व हार के लिए निर्णायक थे. सपा व तृणमूल चाहते तो एनडीए उम्मीदवार पीए संगमा को भी जीता सकते थे. ममता खुले तौर पर प्रणव को छोड तीन नाम सोनिया को राष्ट्रपति के लिए सुझा चुकी थीं, उनके इस कूटनीतिक दबाव पर सोनिया भी पार्टी के आत्मसम्मान के लिए अड गयीं. इस पूरे खेल को अंजाम तक मुलायम सिंह यादव ने ही अपनी राजनीतिक सूझबूझ से पहुंचाया था. बाद में जब प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति पद के शपथ लेने वाले थे तो ममता बनर्जी सबसे विशिष्ट अतिथि की हैसियत से उसमें शामिल हुई थीं.
परमाणु करार पर मनमोहन का साथ
मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह की ही वह जोडी थी, जो अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार पर मंझदार में फंसी डॉ मनमोहन सिंह की सरकार के लिए मददगार बनी थी. जब 2008 में वाम मोर्चे ने इस करार पर डॉ मनमोहन सिंह से समर्थन वापस ले लिया था, तब मुलायम सिंह यादव ने उनकी सरकार बचायी थी. उस समय मुलायम सिंह यादव का शुरुआती रुख भी मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ था. मीडिया में उस समय इस आशय की रिपोर्ट आती थी कि मुसलिम वोट के नुकसान के डर से मुलायम इस बिल का साथ नहीं देंगे. लेकिन, मुलायम ने अपने फैसले से सबको अचानक चौंका दिया.
डॉ कलाम का राष्ट्रपति पद के लिए नाम उछालना
आम तौर पर यह होता है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, वह अपनी ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम उछालती है. लेकिन, 2002 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किया जाना था तो मुलायम सिंह यादव व अमर सिंह की जोडी ने ही डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का नाम राष्ट्रपति पद के लिए बढाया था. उस समय डॉ कलाम 1998 के परमाणु परीक्षण के कारण लोकप्रियता के चरम पर पहुंच चुके थे और वह जीवन पर्यंत बना भी रहा व अब भी कायम है. हालांकि वरिष्ठ भाजपा नेता वेंकैया नायडू व आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी यह दावा कर चुके हैं कि डॉ कलाम का नाम राष्ट्रपति के लिए उन्होंने ही वाजपेयी जी को सुझाया था.
मुलायम सिंहकीउलझी राजनीति के एक कई किस्से हैं, ये तो चंद झलकियां भर हैं.

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