नयी दिल्ली:अमेरिकी दबाव में भारत ने परमाणु दायित्व कानून में बदलाव किया है. इसके तहत परमाणु संयंत्र में दुर्घटना की जिम्मेवारी अमेरिकी कंपनियों की नहीं होगी. उसे कोई क्षतिपूर्ति भी नहीं देनी होगी. न्यूज चैनल टाइम्स नाउ ने सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के नोट के हवाले से कहा है कि अमेरिका यात्राके दौरान बराक ओबामा को पीएम की ओर से यह ‘गिफ्ट’ होगा.
खबर है कि अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती की उस राय के आधार पर केंद्र ने कानून में ढील देने का मन बनाया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि ऑपरेटर चाहे, तो सप्लायर से क्षतिपूर्ति ले सकता है. विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथ लिया है, तो सरकार कह रही है कि कानून में ढील नहीं दी जायेगी. विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी खबर का जोर-शोर से खंडन किया है.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2008 में अमेरिकी कंपनियों की मदद से भारत में 10000 मेगावाट क्षमता के न्यूक्लियर प्लांट स्थापित करने के लिए समझौता हुआ. पीएम की 27 सितंबर से होनेवाली यात्र में न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस के बीच करार होगा. इसके बाद अमेरिकी कंपनी को गुजरात के मीठी विर्दी में प्रस्तावित परमाणु पार्क का निर्माण शुरू करने की अनुमति मिल जायेगी. सरकार चाहती है कि ह्वाइट हाउस में ओबामा और मनमोहन की मुलाकात से पहले एनपीसीआइएल गुजरात के रिएक्टर के लिए 1000-1750 लाख डॉलर की राशि जारी करे.
-धारा 17 कहता है कि तीन परिस्थितियों में ऑपरेटर को आपूर्तिकर्ता से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होगा.
जब त्रसदी होगी, भारतीय करदाता इसकी कीमत चुकायेंगे और जिम्मेवार लोग साफ बच जायेंगे, ऐसा नहीं होना चाहिए.
धारा 17(बी) आपूर्तिकर्ता को दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहराता है, क्षतिपूर्ति के लिए भी बाध्य करता है. हां, यदि रिएक्टर का संचालन करनेवाले ऑपरेटर चाहें, तो सप्लायर को दायित्व से मुक्त कर सकते हैं.
संसद से पास कानून में कोई भी बदलाव गैरकानूनी होगा. जब भी प्रधानमंत्री अमेरिका जाते हैं, कुछ ऐसे विवादास्पद मुद्दे सामने आते हैं. शुरू से ही अमेरिकी कंपनियों को इस कानूनी व्यवस्था से परेशानी रही है.
प्रकाश करात, महासचिव, माकपा
कानून में ढील का सवाल ही नहीं उठता. कंपनी भारत में काम करेगी, तो उस पर भारतीय कानून लागू होगा. संयंत्र बनानेवाली कंपनी को पूरी क्षतिपूर्ति देनी होगी.