नयी दिल्ली : वरिष्ठ नौकरशाहों की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के आप सरकार के अधिकार को लेकर छिड़ी मौजूदा जंग में केंद्र और दिल्ली सरकार, दोनों ही आज अदालतों से कोई राहत पाने में विफल रहे. उच्चतम न्यायालय ने आप सरकार के पर कतरने वाली केंद्र की हालिया अधिसूचना को संदिग्ध बताने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी पर कोई स्थगनादेश देने से जहां इंकार कर दिया वहीं उच्च न्यायालय ने केंद्रीय अधिकारियों के संबंध में दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र को प्रतिबंधित करने वाली केंद्र की अधिसूचना पर स्थगनादेश या उसे रद्द नहीं किया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि 25 मई के अपने आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय ने जो टिप्पणियां की हैं वे अस्थायी हैं. शीर्ष अदालत ने इसकी वैधता पर कोई राय जाहिर किए बिना यह बात कही. उच्चतम न्यायालय ने यह भी सुझाव दिया कि मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय से उसे भेजा जा सकता है ताकि मुद्दे पर एक निश्चयात्मकता रहे.
न्यायाधीश ए के सीकरी और न्यायाधीश यू यू ललित की पीठ ने हालांकि पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करने संबंधी दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के क्षेत्राधिकार पर उच्च न्यायालय के 25 मई के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र की याचिका की पडताल करने का फैसला किया.
उच्चतम न्यायालय ने कहा, हमें यह भी सूचित किया गया है कि इस अधिसूचना को दिल्ली सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दाखिल कर उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह केंद्र की अधिसूचना पर एकल न्यायाधीश द्वारा की गयी टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना इसके खिलाफ आप सरकार द्वारा दाखिल की गयी नई याचिका पर स्वतंत्र रुप से सुनवाई करे. उधर, इस मामले पर जारी जंग की गूंज दिल्ली उच्च न्यायालय में भी आज सुनायी दी जिसने आप सरकार के पर कतरने वाली केंद्र की अधिसूचना पर न तो स्थगनादेश दिया और न ही उसे रद्द किया.
बल्कि उच्च न्यायालय ने उप राज्यपाल को निर्देश दिया कि वह महत्वपूर्ण पदों पर वरिष्ठ नौकरशाहों की नियुक्तियों संबंधी दिल्ली सरकार के प्रस्तावों पर विचार करें. केंद्र की 21 मई की अधिसूचना को रद्द करने संबंधी दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने अंतरिम उपाय के तौर पर उपराज्यपाल से कहा कि वह नौ नौकरशाहों को एक पद से दूसरे पद पर स्थानांतरित किए जाने के दिल्ली सरकार के आदेशों पर विचार करें. 21 मई की अधिसूचना के जरिए केंद्र ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को केंद्र के नियंत्रण में आने वाले किसी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई से रोक दिया था.
उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न पदों पर नौकरशाहों की नियुक्ति के संबंध में सभी शक्तियां उपराज्यपाल को देने वाली अधिसूचना को रद्द करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा दाखिल की गयी याचिका पर केंद्र से भी जवाब मांगा. न्यायाधीश राजीव शकधर ने दिल्ली सरकार की पैरवी करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा समस्या के समाधान के लिए रास्ता सुझाए जाने पर अंतरिम आदेश दिया.
इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सरकार विभिन्न पदों के आवंटन संबंधी प्रस्ताव उपराज्यपाल को भेजेगी जो उसके बाद ट्रांजेक्शन आफ बिजनेस रुल के तहत निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण कर सकते हैं. जयसिंह ने तर्क दिया कि अधिसूचना के मद्देनजर अधिकारी वहां ड्यूटी पर रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं जहां वे नियुक्त हैं और इसके परिणामस्वरुप सरकार चलाने का काम ठप पडा है.
अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल संजय जैन ने इस सुझाव का विरोध करते हुए कहा कि जब दिल्ली सरकार के पास इस मुद्दे पर राय रखने का अधिकार ही नहीं है तो उपराज्यपाल को प्रस्ताव भेजने का सवाल ही पैदा नहीं होता.