नयी दिल्ली : उत्तराखंड में पुनर्वास और बहाली की कवायद के बीच मशहूर पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा ने कहा है कि तात्कालिक उपाय करने की बजाय अलग हिमालय नीति बनाकर ही पहाड़ों को भविष्य में भी प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सकता है.
चिपको आंदोलन के नेता 86 वर्षीय बहुगुणा ने भाषा से बातचीत में कहा, ‘‘मैने अपना पूरा जीवन हिमालय को बचाने की मुहिम में लगा दिया. मैं निराश नहीं हूं बल्कि खुशी है कि मैं लोगों को जागृत कर सका. उत्तराखंड की इस त्रसदी के बाद मैं फिर पुरजोर तरीके से मांग करता हूं कि अभी भी समय है, हिमालय के लिये अलग नीति बनाई जाये.’’ अस्वस्थ होने के बावजूद सक्रिय बहुगुणा ने कहा, ‘‘हिमालय नीति में स्थायी रोजगार, विनाशकारी पर्यटन पर रोक, पानी के संकट से निपटने के उपाय और हरित पुनर्वास जैसे सभी अहम मसले शामिल किये जाये.’’ उन्होंने कहा, ‘‘पहाड़ों पर फलदार और पशुओं को चारा देने वाले पेड़ लगाये जायें. इसके अलावा मैं सरकार से अनुरोध करुंगा कि कोई तात्कालिक उपाय न करते हुए भविष्य के बारे में सोचकर दूरगामी नीति बनाई जाये. इसके अलावा स्थायी रोजगार के उपाय भी जरुरी हैं.’’
पानी के संकट को आने वाले समय की भीषण समस्या बताते हुए बहुगुणा ने कहा कि इससे बचने के लिये अभी से कमर कसनी होगी.उन्होंने कहा, ‘‘आने वाले समय में पानी का संकट बहुत बड़ा होगा और अभी से पहाड़ों पर ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि इससे बचा जा सके. इसके लिये प्राकृतिक जलाशय बनाये जायें और छोटे छोटे बांधों के जरिये पानी चोटी तक पहुंचाया जाये ताकि उपर से नीचे की ओर पानी का बहाव रहे.’’उन्होंने कहा, ‘‘बांध बनाना कोई हल नहीं है बल्कि सर्पाकार गति से बहने वाली नदी को रोककर यह उसके औषधीय गुण खत्म कर देते हैं.’’उन्होंने कहा, ‘‘उत्तराखंड के हरित पुनर्वास की बातें हो रही है लेकिन पेड़ लगाने भर से काम पूरा नहीं हो जाता. उनकी देखरेख भी जरुरी है. यहां पानी के अभाव में पौधे सूख जाते हैं.’’
बहुगुणा ने तीर्थस्थानों के आसपास पर्यटन के नाम पर भविष्य में किसी तरह के निर्माण की अनुमति नहीं देने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा, ‘‘यह विनाशकारी पर्यटन है. अब तीर्थस्थानों पर तीर्थयात्री कम और पर्यटक ज्यादा जाते हैं जिनके लिये तमाम सुविधायें बनाई जा रही हैं. इससे पहाड़ खोखले हुए हैं. सरकार जब नये सिरे से उत्तराखंड को बसाये तो इस विनाशकारी पर्यटन को बढावा न दे.’’ उन्होंने पहाड़ों पर आवागमन के लिये रोपवे के इस्तेमाल पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘सडकें बनाने के लिये विस्फोट करके सुरंग बनाई जाती है जो पहाड़ को कमजोर करती है. इससे अच्छा होगा कि रोपवे को आवागमन का जरिया बनाया जाये.’’