नयी दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार ने नये साल में एक बड़ा फैसला लेते हुए योजना आयोग के नए स्वरुप का नाम बदलकर ‘नीति आयोग’ कर दिया गया है. गौरतलब है कि इस संस्था की स्थापना 1950 के दशक में हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा योजना आयोग की जगह नयी संस्था की स्थापना की घोषणा के कुछ महीनों बाद यह पहल हुई है.
मोदी की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक के करीब तीन सप्ताह के बाद यह फैसला आया जिसमें ज्यादातर समाजवादी दौर की इस संस्था के पुनर्गठन के पक्ष में थे, लेकिन कुछ कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने मौजूदा ढांचे को खत्म करने का विरोध किया था. मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था कि योजना आयोग की जगह पर एक नयी संस्था बनाई जाएगी जो समकालीन आर्थिक दुनिया के अनुरूप हो.मुख्यमंत्रियोंको सात दिसंबर को संबोधित करते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का हवाला दिया था, जिन्होंने पिछले साल 30 अप्रैल को कहा था कि सुधार प्रक्रिया शुरूहोने के बाद के दौर में मौजूदा ढांचे का कोई अत्याधुनिक नजरिया नहीं है.
उन्होंने ऐसे प्रभावी ढांचे की बात की थी जिससे ‘सहयोगी संघ’ और ‘टीम इंडिया’ की अवधारणा मजबूत होती हो. ऐसे संकेत थे कि नये ढांचे में प्रधानमंत्री, कुछ कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे.
कैसा होगा नीति आयोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 दशक पुराने योजना आयोग का समाप्त कर एक नया ढांचा स्थापित करने में सफल रहे. स्वतंत्रता दिवस पर अपने पहले भाषण के दौरान लाल किले की प्रचीर से इसकी घोषणा करते हुए इसके रूप को समझाने की कोशिश की थी उन्होंने कहा था, हम योजना आयोग को एक नये संगठन से बदलेंगे. इसका नया आकार, नयी आत्मा, नयी सोच और नयी दिशा होगी. यह पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत और अधिक शक्तिशाली होगा.
नीति आयोग में 4 विशेषज्ञ सदस्य केंद्र सरकार की तरफ से और करीब 4 या 5 विशेषज्ञ सदस्य राज्य सरकार की ओर से शामिल होंगे. सूत्रों के अनुसार इस नये आयोग में 3 विभाग होंगे पहला विभाग इंटर-स्टेट काउंसिल की तर्ज पर होगा. इसका दूसरा विभाग लंबे समय की योजना बनाने और उसकी निगरानी का काम करेगा . इसके अलावा इसका तीसरा और अंतिम विभाग डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर और यूआईडीएआई को मिलाकर विभाग बनाया जाएगा. इस आयोग में सचिव स्तर का अधिकारी हर विभाग का प्रमुख होगा और प्रधानमंत्री इस आयोग के प्रमुख होंगे और सीधे आयोग और इसके कार्यों पर नजर रखेंगे .
योजना आयोग की जगह नीति आयोग क्यों
एक नये संगठन के निर्माण के पीछे हमेशा से एक ही तर्क दिया जाता है कि बदली परिस्थितियों में विकेन्द्रीकृत योजना का यह आयोग कार्य नहीं कर सकता क्योंकि आयोग अपनी प्रासंगिकता खो रहा है. विकास की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए एक नयीदिशा और तेजी की आवश्यकता है. समय बदल गया है और मुद्दे भी बदल गए हैं. इस नये आयोग का निर्माण इसलिए किया जा रहा है ताकि ज्यादा नीतिगत फैसले लेने और राज्यों को विकास की नीतियों में सुधार करने और इन्हें अमल में लाने के लिए प्रेरित किया जा सके. इस आयोग के निर्माण के पीछे उद्देश्य आर्थिक नीतियों के सकारात्मक परिणामों के आधार पर राज्यों को वित्तीय सहायता तय किए जाने की है. नीति आयोग राज्यों के संपूर्ण आर्थिक विकास के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करेगा. किसी राज्य को फंड मैनेजमेंट से लेकर विकास कार्यों में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है तो नीति आयोग इस काम में भी राज्यों की खुले दिल से सहायता करेगा और उनकी आवश्यक्ताओं का पूराध्यान रखेगा.
पहले भी योजना आयोग को बदलने की हुई है कोशिश
योजना आयोग को बदलकर नीति आयोग का रूप देने के पीछे कई कारण हैं,यह पहली बार नहीं है जब इस पर एक नजर डालने और नयी तरह से सोचने की कोशिश की जा रही है. कांग्रेस भले ही योजना आयोग को भंग करने के पक्ष में नहीं है लेकिन राजीव गांधी ने आयोग को जोकरों का समूह कहा था मगर उन्होंने इसे भंग नहीं किया. भाजपा ने 1998 में अपने घोषणापत्र में कहा था कि ‘‘हमारे देश की बदल रही विकास जरूरतों के मद्देनजर योजना आयोग में सुधार तथा इसका पुनर्गठन किया जाएगा. ’’ के.सी. पंत और यहां तक कि मनमोहन सिंह जैसे योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्षों ने इसमें बदलाव की कोशिश की.