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साइकिल पर चला जागरूकता का कारवां

बांग्लादेश के गांवों और दुनिया के बीच पुल का काम कर रही हैं इन्फो-लेडीजवे युवा हैं और साइकिल पर सवार हैं. बांग्लादेश में ये इन्फो-लेडीज दूर दराज के गांवों में जाती हैं और वहां सेहत से जुड़ी अहम जानकारियां देती हैं. इसके लिए उन्हें बॉब्स 2013 का ग्लोबल मीडिया फोरम जूरी अवॉर्ड दिया गया. 25 […]

बांग्लादेश के गांवों और दुनिया के बीच पुल का काम कर रही हैं इन्फो-लेडीज
वे युवा हैं और साइकिल पर सवार हैं. बांग्लादेश में ये इन्फो-लेडीज दूर दराज के गांवों में जाती हैं और वहां सेहत से जुड़ी अहम जानकारियां देती हैं. इसके लिए उन्हें बॉब्स 2013 का ग्लोबल मीडिया फोरम जूरी अवॉर्ड दिया गया.

25 वर्षीय महफूजा अख्तर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी कि वह और पढ़ाई कर सके. 12वीं कक्षा पास महफूजा को कोई नौकरी नहीं मिल रही थी. 2010 में किस्मत ने उनका साथ दिया और वह इन्फो-लेडी बन गयी. महफूजा आज अलग-सा काम कर रही हैं. इसके लिए उन्हें एक साइकिल दी गयी है और एक हाइटेक उपकरण.

सेवाएं प्रदान करती हैं

हर रोज साइकिल से इन्फो-लेडी गांवों में जाती हैं और हर जरूरतमंद को अपनी सेवाएं देती हैं. उनकी थैली में एक लैपटॉप होता है, एक डिजिटल कैमरा और एक इंटरनेट मोडम और इलाज के लिए मूल सुविधाएं.

गांववाले करते हैं इंतजार

गांव में महफूजा अख्तर का बेसब्री से इंतजार किया जाता है. उन्हीं के कारण कोई महिला कहीं अपने किसी रिश्तेदार से स्काइप के जरिये बात कर सकती है. इसके बाद वह एक युवा लड़के को एप्लीकेशन के लिए कुछ टिप्स देती हैं और उसका फोटो भी लेती है. इसके बाद वह एक दादाजी से मिलने जाती हैं.

उन्हें मधुमेह है इसलिए उनकी रोज शुगर चेक की जाती है. साथ ही एक गर्भवती महिला को भी वो हर दिन देखती हैं और उसका वजन नियमित रूप से चेक करती है. जरूरत पड़ने पर वह इस महिला के साथ स्थानीय दफ्तरों में भी जाती हैं ताकि उसे होने वाले बच्चे के लिए धन राशि मिले. महफूजा के पास सबके लिए समय है और जरूरी उपकरण भी.

आगे होगा और विस्तार

डीनेट इन्फो-लेडी कंसेप्ट के अच्छे भविष्य की उम्मीद रखते हैं क्योंकि यह आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से टिकाऊ है. 2017 तक 12 हजार युवा महिलाओं को इन्फो-लेडी की ट्रेनिंग मिल जाएगी. इस प्रोजेक्ट को कांगो, रवांडा, बुरु ंडी और श्रीलंका में शुरू करने भी योजना है.

बहुमुखी प्रतिभा जरूरी

महफूजा के लिए कंपनी चलाने का रास्ता आसान नहीं था. उन्होंने ज्यादा पढ़ाई भी नहीं की थी. इन्फो-लेडी बनने के लिए उन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा. इनमें सबसे अहम था ये साबित करना कि वह कितनी संवेदनशील हैं और नेतृत्व की क्षमता रखती हैं क्योंकि इन्फो-लेडी को हर दिन किसानों, गर्भवती महिलाओं या बेरोजगारों से मिलना पड़ता है. वहां जीवन के लिए अहम मुद्दों पर बात होती है कि कैसे एक युवा लड़की अपने बच्चे की देखभाल कर सकती है.

आर्थिक स्थिति में सुधार

30 दिन की ट्रेनिंग और एक सप्ताह प्रैक्टिकल के बाद महफूजा ने इन्फो-लेडी के काम को पूरी तरह सीख लिया. इसके बाद वह काम पर लग गयी और आज के तारीख में वह महीने में करीब 11 हजार बांग्लादेशी टका कमा लेती हैं, जिससे परिवार की स्थिति भी अच्छी हो गयी है.

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