सीसैट को लेकर वर्मा समिति की रिपोर्ट गुरुवार को सरकार को सौप दी गयी. शुक्रवार 01 अगस्त को भी इसपर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका. उधर रिपोर्ट को लेकर ऐसी खबरें मिल रही हैं कि समिति ने सीसैट प्रणाली को जारी रखने की सिफारिश की है. और यह भी खबर है कि इस बार भी परीक्षा पिछले साल के पैटर्न यानी सीसैट पैटर्न पर ही होगी और 24 अगस्त को ही होगी.
अगर सूत्रों से मिल रही खबर सही है तो फिर सरकार इसके बाद भी आश्वासन क्यों दे रही है कि हिन्दी और क्षेत्रीय भाषायी छात्रों के हितों की उपेक्षा नहीं होगी. प्रधानमंत्री मोदी जो चुनाव के वक्त या फिर गुजरात के मुख्यमंत्री काल के दौरान देश में होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं के प्रति भी अपनी प्रतिक्रिया देते थे अब महीनों से जारी देश के इतने बडे मामले में खामोश क्यों हैं.
यहां प्रधानमंत्री मोदी के बारे में यह उल्लेख करना अपेक्षित है कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार थी तो17 अप्रैल 2014 कोइसी सीसैट मामले को लेकर मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन को चिट्ठी लिखकर विस्तार से समझाया था कि कैसे अंग्रेजी व हिन्दी के कारण गुजराती में तैयारी कर रहे छात्रों को परेशानियां हो रही है. इसलिए उन्होंने उनसे आग्रह किया था कि इस पत्र पर विचार करते हुए इसपर कोई ठोस कदम उठाया जाय. आइये जानें मोदी ने अपनी चिट्ठी में कौन-कौन सी मांग रखी थी और अभी के संदर्भ में छात्रों की मांग से वह कहां तक मेल खाता है-
कहा था कि यह गुजराती के साथ भेदभाव है
नरेंद्र मोदी ने 17 अप्रैल 2014 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री को यूपीएसी के नयी पैटर्न (सीसैट पैटर्न) मामले पर हस्तक्षेप करना चाहिए और उसमें परिवर्तन करना चाहिए क्योंकि यह गुजराती के साथ यह भाषायी भेदभाव है.
-वर्तमान समय में सीसैट का विरोध कर रहे छात्रों का भी यही मांग है कि यह हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ भेदभाव है.
कई गुजराती भाषायी छात्रों के सपने चकनाचूर हो रहे हैं.
अपने चिट्ठी में मोदी ने क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा और भेदभाव का विरोध किया था. मोदी ने कहा था कि सीसैट के निर्णय से गुजरात के हजारों छात्रों के सपने चकनाचूर हो रहें हैं इसलिए प्रधानमंत्री को कोई ठोस कदम उठाया जाना चाहिए.
यहां भी यही स्थिति है. जब से सीसैट लागू हुआ है मेहनत करने वाले वैसे गरीब छात्र जो सबकुछ त्यागकर कुछ करने के लिए संघर्षरत हैं सीसैट के आ जाने से उनके सपने चकनाचूर हो रहें है. उनका प्रतिशत सीसैट आने के बाद से लगातार गिरा है.
-उनकी चिन्ता थी कि हिन्दी या अंग्रेजी में ही देना होगा जवाब
मोदी ने चिट्ठी में लिखा था कि अब कोई उम्मीदवार गुजराती या कोई क्षेत्रीय भाषा में कोई लेख नहीं लिख सकता है उसे केवल अंग्रेजी या हिन्दी में ही लेख लिखना होगा.
अब जिस तरह मोदी को चिन्ता थी की गुजराती अच्छी तरह हिन्दी या अंग्रेजी नहीं लिख सकते तो उसी तरह की मांग तो इन छात्रों की है कि वे अंग्रेजी नहीं लिख सकते. जब वे किसी क्षेत्र विशेष की भाषा के लिए इतनी हिमायत कर सकते हैं तो हिन्दी जो देश की राष्ट्रभाषा है इसके लिए क्यों नहीं.
-क्षेत्रीय भाषाओं में हीं सभी पेपर दिये जाने की सुविधा हो
अगर कोई छात्र किसी स्वीकृत क्षेत्रीय भाषा से स्नातक किया है तो उसे उसी क्षेत्रीय भाषा में सभी पेपर ( अंग्रेजी के भाग वाला छोडकर) लिखने की अनुमति दी जानी चाहिए.
ऐसा मोदी ने इसलिए कहा था ताकि गुजरातियों को भाषा संबंधी प्रोब्लम नहीं हो. अगर छात्र भाषा संबंधी अपनी मांग को लेकर हिन्दी को सरल बनाने या फिर उस कठिन प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहें हैं तो इसमें क्या समस्या है.
-अपनी भाषा में विचार व्यक्त करना आसान है
उन्होंने पत्र में फिर दुहराया है कि नयी प्रणाली गुजराती भाषा के साथ पक्षपात है. गुजरात में बहुत से ऐसे छात्र हैं जो स्कूली शिक्षा गुजराती में ग्रहण करते हैं और अपनी विचारों को वे जितनी अच्छी तरह से गुजराती में व्यक्त करते हैं उतनी अच्छी तरह से अंग्रेजी व हिन्दी में नहीं कर सकते हैं.
वर्तमान में प्रदर्शन कर रहे छात्रों का भी तो यही कहना है कि अंग्रेजी प्रणाली के आधार पर अर्थात अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के हितों को देखते हुए तैयार की गयी सीसैट को समाप्त किया जाय.
इस पत्र से तो यही पता चलता है कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनते ही छात्रों का दुख भूल गये. जो मांग वह प्रधानमंत्री के सामने रख रहे थे आज वही मांग उनके सामने रखा जा रहा है. इसके बावजूद वे इतने दिनों से चले आ रहे मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाये हैं.
हालांकि ताजा हालात यह है कि अभी राजनाथ के घर में वर्मा कमेटी पर चर्चा हो रही है. हो सकता है चर्चा के बाद आज भी कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा. हालांकि सरकार ने फैसला के लिए कल की समयसीमा तय की है.