‘चंद्रयान-2′ के लैंडर ‘विक्रम’ का बीती रात चांद पर उतरते समय जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया. सपंर्क तब टूटा जब लैंडर चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था. भारत का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 भारत के लिए सफलता की ऐसी कहानी है, जिसे इसरो के संघर्ष ने गौरवान्वित किया है. साइकिल से रॉकेट ले जाने से लेकर चांद पर कदम रखने का सफर इसरो ने अपने दम पर पूरा किया है. इसरो की इस सफलता से दुनिया दंग हो गयी.
चर्च में बनाया स्पेस स्टेशन
15 अगस्त, 1969 को डॉ विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की थी. 21 नवंबर, 1963 को केरल में तिरुअनंतपुरम के करीब थुंबा से पहले रॉकेट के लॉन्च के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू हुआ. नारियल के पेड़ों के बीच स्टेशन का पहला लॉन्च पैड था. एक स्थानीय कैथोलिक चर्च को वैज्ञानिकों के लिए मुख्य दफ्तर में बदला गया. बिशप हाउस को वर्कशॉप बना दिया गया और मवेशियों के रहने की जगह को प्रयोगशाला. यहां मिसाइल मैन अब्दुल कलाम आजाद जैसे युवा वैज्ञानिकों ने काम किया.
साइकिल से ले जाया गया रॉकेट
इसरो के सफर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 21 नवंबर, 1963 को थुंबा से पहले रॉकेट की पहली लॉन्चिंग के लिए रॉकेट को लॉन्च पैड तक एक साइकिल से ले जाया गया था.
बैलगाड़ी से गया दूसरा रॉकेट
1981 में जब इसरो के दूसरे सेटेलाइट एप्पल को लॉन्च किया गया था, तो उसे लॉन्चपैड तक बैलगाड़ी पर लाया गया था. अंतरिक्ष यात्रा एक बहुत बड़ा पड़ाव था साल 1984 में, जब भारतीय एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा ने रूस की मदद से सोयूज कैप्सूल में आठ दिनों तक अंतरिक्ष का सफर किया था. इसका एक खास किस्सा है. जब अंतरिक्ष से राकेश शर्मा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बातचीत की थी. इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा था कि अंतरिक्ष में अपने कैप्सूल में बैठ कर आपको भारत कैसा दिखता है? शर्मा का जवाब था, सारे जहां से अच्छा.
पहला मून मिशन था चंद्रयान-1
22 जुलाई, 2019 को इसरो ने मिशन चंद्रयान-2 के सफलतापूर्वक लॉन्च के जरिये इतिहास रच दिया.