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तमिलनाडु : करुणानिधि-जयललिता के निधन के बाद पहला लोस चुनाव, दोनों बड़े राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहारे

नयी दिल्ली :तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान है. दो साल बाद ही विधानसभा चुनाव होंगे. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में तमिलनाडु में कहा था कि भाजपा विधानसभा चुनाव भी अन्नाद्रमुक के साथ लड़ेगी. इस दौरान प्रदेश के सीएम पलानीसामी भी मंच पर थे. वहीं, कांग्रेस और डीएमके गठबंधन […]

नयी दिल्ली :तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान है. दो साल बाद ही विधानसभा चुनाव होंगे. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में तमिलनाडु में कहा था कि भाजपा विधानसभा चुनाव भी अन्नाद्रमुक के साथ लड़ेगी. इस दौरान प्रदेश के सीएम पलानीसामी भी मंच पर थे.
वहीं, कांग्रेस और डीएमके गठबंधन में कांग्रेस को तमिलनाडु की नौ और पुड्डुचेरी की एक सीट मिली है. तमिलनाडु के रणक्षेत्र में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहारे हैं. भाजपा जहां दक्षिण में आधार की तलाश में है वहीं, डीएमके-कांग्रेस पुरानी जमीन पाने की जुगत में हैं.
दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक दो धड़ों में बंट चुकी है. वहीं, 2011 में प्रदेश की सत्ता से बाहर हुई डीएमके भी वापसी के लिए पूरी क्षमता से प्रयास नहीं कर पा रही, अगस्त 2018 में उसने भी अपने प्रमुख नेता करुणानिधि को खो दिया. दोनों क्षेत्रीय पार्टियां ऐसे दलों के साथ मिलकर लड़ रही हैं, जिनके विरोध में ही उनका जन्म हुआ. अन्नाद्रमुक ने 1999 में 13 माह की भाजपा सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, आज वे साथ हैं. वहीं, तमिल अस्मिता के नाम पर कांग्रेस की खिलाफत करने वाली डीएमके आज उसे साथ लेकर मैदान में उतरी है.
…और प्रदेश कीसत्ता के लिए
1. एआइएडीएमके ने भाजपा को पांच लोस सीटें दी, विस चुनाव में भी साझेदारी की तैयारी
2. कांग्रेस को लोकसभा में 10 सीटें देकर डीएमके ने विस में लगायी है दोगुनी उम्मीदें
एआइएडीएमके-भाजपा
पिछली बार से कम सीटों पर भगवा चुनौती
एआइएडीएमके के शिवकाशी विधायक राजेंद्र भालाजी ने ‘अम्मा (जयललिता) के जाने के बाद अब ‘नरेंद्र मोदी हमारे डैडी’ बयान देकर दोनों दलों में गठबंधन का शुरुआती संकेत दिया. 20 फरवरी को गठबंधन हुआ. भाजपा को पांच सीटें दी गयी हैं, यानी वह 2014 के मुकाबले दो कम सीटों पर लड़ने जा रही है.
शशिकला को पार्टी से निकाला, तो भतीजा निर्दलीय लड़कर जीता
एआइएडीएमके ने शशिकला और उनके भतीजे दिनाकरन को पार्टी से निकाल दिया था. दिनाकरण ने इसका हिसाब दिसंबर 2017 में चुकता किया, जब राधाकृष्णन नगर का विधानसभा उपचुनाव निर्दलीय लड़कर जीता. उन्होंने एआइडीएमके के प्रत्याशी ई. मधुसूदनन को 40 हजार से अधिक वोटों से हराया. यह जीत इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि निधन से पूर्व यह जयललिता की सीट थी.
दिनाकरन ने जयललिता के नाम के साथ मार्च 2018 अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कषगम (एएमएमके) पार्टी बनायी जो 38 सीटों पर प्रत्याशी उतार रहा है. इनमें से तीन एआइएडीएमके के अयोग्य घोषित किये गये विधायक हैं. वहीं सहयोगी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को चेन्नई की सीट पर लड़ाने का अवसर दिया है. खुद दिनाकरन चुनाव में सीएम पन्नीसेल्वम के बेटे पी रविंद्रनाथ के सामने उतर रहे हैं.
डीएमके और कांग्रेस एलटीटीइ समर्थक वीसीके भी साथ
भाजपा-एआइएडीएमके के गठबंधन के अगले ही दिन डीएमके-कांग्रेस ने गठबंधन का एलान किया. कांग्रेस नौ और डीएमके 30 सीटों पर लड़ेगी. पुडुचेरी सीट कांग्रेस को दी गयी है. इस गठबंधन को दोनों वाम दल, प्रतिबंधित संगठन एलटीटीइ की खुली समर्थक रही वीसीके और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समर्थन दे रहे हैं. इन दलों को डीएमके ने अपने हिस्से में से 10सीटें दी है. खुद 20 पर लड़ रही है.
आज के चुनाव की पृष्ठभूमि
2014 में क्या हुआ था
कांग्रेस
अकेले चुनाव लड़ी, लेकिन एक भी सीट नहीं मिली. कुल 4.37 फीसदी वोट ही मिले. वोट के लिहाज से वह भाजपा से पीछे, पांचवें स्थान पर रही थी.
डीएमके
चार अन्य पार्टियों के साथ लोकतांत्रिक प्रगतिशील गठबंधन किया. खुद 34 सीटों पर लड़ी, लेकिन पूरे गठबंधन को एक भी सीट नहीं मिली. 18 सांसद वाली डीएमके खुद शून्य पर सिमट गयी. उसे 23.6 फीसदी, गठबंधन को 26.8 फीसदी वोट मिले.
भाजपा
एनडीए के तहत 7 सीटों पर लड़ी. कन्याकुमारी में पी. राधाकृष्णन के रूप में एकमात्र सांसद मिला. पार्टी को 5.56 फीसदी वोट मिले. वहीं, सहयोगी पट्टाली मक्कल काटची (पीएमके) 8 सीटों पर लड़ी और एक जीती. उसे 4.4 फीसदी वोट मिले जो कांग्रेस से अधिक थे. दोनों के 2009 में प्रदेश में कोई सांसद नहीं थे.
एआइएडीएमके
सभी 39 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये और 37 पर जीते. कुल 44.3 फीसदी वोट मिले. कुछ सदस्यों ने तो पार्टी प्रमुख जयाललिता को पीएम प्रत्याशी भी घोषित कर दिया था. 2009 में उसके 9 सांसद थे.
मौजूदा स्थितियां : डीएमके
अध्यक्ष एमके स्टालिन राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने का दावा कर चुके हैं. वे मानते हैं कि राहुल ही मोदी को मात दे सकते हैं. लेकिन, डीएमके के लिए इस साथ की असली वजह राज्य में भी अपनी स्थिति मजबूत करना है. इसलिए अगर यह गठबंधन हारता है, तो 2011 से राज्य की सत्ता से बाहर रहने और 2014 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद उसकी स्थिति बहुत खराब हो जायेगी.

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