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जमाखोरों के खिलाफ सरकार सख्त, आलू-प्याज एपीएमसी एक्ट से बाहर

नयी दिल्लीः खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर कमी लाने के लिए सरकार ने किसानों को एक बड़ी राहत दी है. किसानों के हितो का ध्यान रखते हुए सरकार ने आलू और प्याज को ऐग्रिकल्चर प्रड्यूस मार्केटिंग कमिटी(रेग्युलेशन) ऐक्ट (एपीएमसी ऐक्ट) से बाहर कर दिया है. अब किसान अपनी फसल को कहीं भी बेच सकता […]

नयी दिल्लीः खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर कमी लाने के लिए सरकार ने किसानों को एक बड़ी राहत दी है. किसानों के हितो का ध्यान रखते हुए सरकार ने आलू और प्याज को ऐग्रिकल्चर प्रड्यूस मार्केटिंग कमिटी(रेग्युलेशन) ऐक्ट (एपीएमसी ऐक्ट) से बाहर कर दिया है. अब किसान अपनी फसल को कहीं भी बेच सकता है. किसान अब आलू और प्याज की बिक्री के लिए मंडी पर निर्भर नहीं रहेगा.

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज कैबिनेट की बैठक के बाद इसकी घोषणा करते हुए कहा कि सरकार मंहगाई कम करने के लिए प्रतिबद्ध है. हम महंगाई पर काबू करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं जमाखोरों पर कड़ी कार्रवाई के लिए सरकार पूरी तरह तैयार है. राज्य में जमाखोरी पर जांच के आदेश दिये है. एपीएमसी एक्ट से आलू और प्याज को बाहर करने के बाद राज्य सरकार को आदेश दिया गया है कि वह अपने स्टॉक का ध्यान रखें.

सरकार ने एक साल के लिए इसे लागू करने का मन बनाया है. जल्द ही इसकी अधिसूचना जारी कर दी जायेगी. सरकार के इस कदम का किसानों ने स्वागत किया है. किसानों को प्याज औऱ आलू मंडी में लाने का खर्च बचेगा. हालांकि उन्होंने मांग की अन्य खाद्य पदार्थों पर भी सरकार को इस तरह की पहल करनी चाहिए .

क्या है एपीएमसी ऐक्ट

ऐग्रिकल्चर प्रड्यूस मार्केटिंग कमिटी (रेग्युलेशन) ऐक्ट (एपीएमसी ऐक्ट) के तहत किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए1970 के दशक मेंकृषि विपणन समितियां बनाई गईं थीं. इन समितियों का मकसद बाजार की अनिश्चितताओं से किसानों को बचाना था, लेकिन नेताओं के दखल से इन समितियों के जरिए मंडियों पर थोक व्यापारियों का एकाधिकार बना रहा और बिचौलियों इस पर हावी हो गये. इसकी मुख्य वजह यह थी कि किसानों को मंडियों में सीधे अपना उत्पाद बेचने की इजाजत नहीं थी. केंद्र सरकार ने 2003 में एपीएमसी ऐक्ट में राज्यों से संशोधन के लिए कहा था, लेकिन कुछ राज्यों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसी का दुष्परिणाम है कि आज ये समितियां मनमाने दाम पर किसानों से उनका उत्पाद खरीदकर खुदरा बाजार के लिए मनमाना दाम तय कर देती है. उदाहरण के लिए वह किसानों से 10 रुपये आलू खरीदकर उसे खुदरा बाजार में 18 रुपये में बेचती है. जमाखोरी की स्थिति में यह दाम और भी अधिक हो जाता है. कहने का तात्पर्य है कि आलू मार्केट में कितने रुपये में बिकेगी यह मंडी के थोक व्यापारी व बिचौलिये तय करते हैं. अब आलू प्याज को इस एक्ट से बाहर कर देने के बाद किसान अपने उत्पाद को कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र हैं. इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो जाएगी. इससे जहां एक और उपभोक्ता को फायदा होगा वहीं किसानों को भी उनके उत्पाद का अधिक दाम मिलेगा. क्योंकि किसानों और उपभोक्ता के बीच का एक बहुत बडा भाग बिचौलिये के हिस्से चला जाता है.

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